
बाल गंगाधर तिलक।
Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: भारत की आजादी की लड़ाई में कई ऐसे मौके आए जब नायकों ने एक-दूसरे का साथ दिया और ब्रिटिश हुकूमत के सामने डटकर मुकाबला किया। ऐसा ही एक वाकया था जब मुहम्मद अली जिन्ना ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का अदालत में बचाव किया। देश की आजादी की लड़ाई में इसे एक अनूठी घटना के रूप में देखा जाता है क्योंकि जहां एक तरफ तिलक ने गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती जैसे सार्वजनिक आयोजनों को समाज के साथ जोड़ दिया तो दूसरी तरफ जिन्ना ने आगे चलकर पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। आज हम आपको बाल गंगाधर तिलक के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में बता रहे हैं।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुई था तिलक का जन्म
बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें ‘लोकमान्य’ तिलक के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। उन्होंने एक शिक्षक, पत्रकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सुधारक के रूप में आधुनिक भारत के निर्माण में अहम योगदान दिया। उनका मशहूर नारा ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा’ उस दौर में हर हिंदुस्तानी के दिल में आजादी की चिंगारी बन गया था। तिलक ने 1880 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की और फर्ग्यूसन कॉलेज शुरू किया, ताकि भारतीय युवाओं को राष्ट्रवादी शिक्षा मिले। उन्होंने ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेजी) अखबारों के जरिए ब्रिटिश हुकूमत की नीतियों की खुलकर आलोचना की।
मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी।
जब जिन्ना ने लड़ा था तिलक का मुकदमा
1908 में तिलक को ब्रिटिश सरकार ने ‘केसरी’ में छपे उनके लेखों के लिए राजद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार किया। इन लेखों में तिलक ने खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जैसे क्रांतिकारियों के बम हमले का समर्थन किया था। उन्हें 6 साल की सजा सुनाई गई और बर्मा (अब म्यांमार) की मांडले जेल भेज दिया गया। इस मुकदमे में एक युवा वकील मुहम्मद अली जिन्ना ब्रिटिश शासन के खिलाफ तिलक का जोरदार बचाव किया। जिन्ना, जो उस वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे, ने तिलक के पक्ष में दलीलें दीं और ब्रिटिश अदालत की मनमानी का विरोध किया। जिन्ना की जोरदार पैरवी के बावजूद ब्रिटिश अदालत ने तिलक को इस मामले में सजा सुना दी थी।
हालांकि जिन्ना तिलक को सजा से बचा नहीं पाए, लेकिन इसके बाद तिलक और उनके रिश्तों की शुरुआत हो गई। 1916 में तिलक और जिन्ना ने मिलकर लखनऊ समझौता करवाया, जिसके तहत कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एकजुट होकर स्वराज की मांग की। यह समझौता हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक था और आजादी की लड़ाई में एक अहम पड़ाव साबित हुआ।
गांधी और नेहरू के साथ भी तिलक के अच्छे रिश्ते थे।
कैसे थे तिलक और गांधी के रिश्ते?
तिलक और महात्मा गांधी के रिश्ते में गहरा सम्मान था, लेकिन उनके तौर-तरीके अलग थे। तिलक उग्र राष्ट्रवाद के पक्षधर थे और स्वराज के लिए आक्रामक रास्ता अपनाने में यकीन रखते थे। दूसरी ओर, गांधी अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते पर चलते थे। गांधी ने तिलक को ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा था और उनकी मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। तिलक ने 1916 में होम रूल लीग की स्थापना की, जिसने गांधी के असहयोग आंदोलन की जमीन तैयार की। हालांकि तिलक की मृत्यु 1 अगस्त 1920 को हो गई, लेकिन उनके विचारों ने गांधी को प्रेरित किया।
शुरुआत में तिलक से काफी प्रभावित थे नेहरू
जवाहरलाल नेहरू ने तिलक को ‘भारतीय क्रांति का जनक’ कहा था। नेहरू उस दौर में युवा थे जब तिलक स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई कर रहे थे। तिलक के उग्र राष्ट्रवाद और जन-जागरण के तरीकों ने नेहरू जैसे युवा नेताओं को प्रभावित किया। हालांकि नेहरू बाद में गांधी के अहिंसक दृष्टिकोण के करीब आए, लेकिन तिलक की बेबाकी और स्वराज की मांग ने उनके विचारों को आकार दिया। तिलक ने गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती जैसे सार्वजनिक आयोजनों को सामाजिक और राजनीतिक मंच में बदला, जिससे समाज में एकता और राष्ट्रवाद की भावना जागी। तिलक ने जातिवाद और अस्पृश्यता का विरोध किया और सामाजिक सुधारों पर जोर दिया।