
शिबू सोरेन
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। 81 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। शिबू सोरेन को देश का सबसे दमदार आदिवासी नेता माना जाता है। झारखंड से बिहार को अलग करने की लड़ाई भी उन्होंने लड़ी थी और इसमें सफल भी रहे। झारखंड बनने के बाद वह यहां के मुख्यमंत्री भी बने। उन्होंने तीन बार राज्य की बागडोर संभाली, लेकिन कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। यहां हम उनके पहली बार मुख्यमंत्री बनने का दिलचस्प किस्सा सुना रहे हैं।
81 सीट वाले झारखंड में साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। सबसे ज्यादा 30 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं। इस समय बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन भी था। जेडीयू को छह सीटें मिली थीं। ऐसे में एनडीए गठबंधन के पास कुल 36 विधायक थे, लेकिन सरकार बनाने के लिए कम से कम 41 विधायक चाहिए थे। ऐसे में पेंच फंस गया।
राज्यपाल ने किया खेला
हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा को सिर्फ 17 सीटें मिली थीं और गठबंधन के दल कांग्रेस को नौ सीटें मिली थीं। इस गठबंधन के पास कुल 26 सीटें थीं और बहुमत का आंकड़ा 15 सीट दूर था। इस समय झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी थे। सबसे पहले बीजेपी के अर्जुन मुंडा सरकार बनाने का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंचे। इसी बीच शिबू सोरेन ने भी सरकार बनाने का दावा कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके पास 42 विधायकों का समर्थन है। ऐसे में राज्यपाल ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्यौता दे दिया। शिबू सोरेन ने दो मार्च 2005 को मुख्यमंत्री की शपथ भी ले ली। उनके मुख्यमंत्री बनते ही हंगामा शुरू हो गया।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
राज्यपाल ने शिबू सोरेन को बहुमत साबित करने के लिए 21 मार्च तक का समय दिया था। हालांकि, नियमों के अनुसार पहले बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिलना चाहिए था। ऐसे में बीजेपी ने राज्यपाल के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया तो राज्यपाल ने बहुमत की तारीख 21 मार्च की जगह 11 मार्च कर दी। शिबू सोरेन ने अपने समर्थकों से भावुक अपील कर विधानसभा में समर्थन मांगा, लेकिन वह बहुमत साबित नहीं कर सके और 10 दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।