
प्रतीकात्मक तस्वीर
हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने मंडीखेडा सिविल अस्पताल में प्रसव के दौरान कथित चिकित्सकीय लापरवाही के कारण एक नवजात का हाथ कट जाने के मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है। आयोग ने कहा कि यह घटना ‘बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ का गंभीर उल्लंघन है। आयोग ने पांच अगस्त को पारित आदेश में कहा कि यह घटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का भी उल्लंघन है। आयोग ने कहा कि यह मामला मीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के जरिए सामने आया, जिसमें बताया गया कि 30 जुलाई को एक गर्भवती महिला को मंडीखेडा सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
आयोग ने कही ये बात
आयोग ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि प्रसव के दौरान, उपस्थित चिकित्सीय कर्मचारी की कथित लापरवाही के कारण नवजात का हाथ पूरी तरह शरीर से अलग हो गया। यह आरोप है कि जब पीड़ित परिवार ने अस्पताल कर्मियों से सवाल किए, तो उनके साथ बदसलूकी की गई और उन्हें जबरन वार्ड से बाहर निकाल दिया गया। बाद में नवजात को नल्हड़ अस्पताल रेफर कर दिया गया। आयोग ने कहा, “प्रसव के दौरान नवजात शिशु के हाथ को कथित तौर पर काट दिए जाने की घटना प्रथम दृष्टया गंभीर चिकित्सा लापरवाही का मामला प्रतीत होता है।”
आयोग ने बताया मानवाधिकारों का उल्लंघन
आयोग ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में मानक संचालन प्रक्रिया का पालन न करना न केवल जीवन को खतरे में डालता है, बल्कि सार्वजनिक संस्थानों में जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है। आयोग ने कहा कि इसके अलावा अस्पताल कर्मियों के कथित दुर्व्यवहार को भी मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया गया है। आयोग ने नूंह के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिया है कि वह घटना से संबंधित सभी तथ्यात्मक और चिकित्सीय जानकारी, ड्यूटी पर तैनात चिकित्सकों और नर्सिंग कर्मचारियों के नाम, बच्चे के उपचार की जानकारी और अब तक की गई विभागीय कार्रवाई और नवजात के परिजनों के साथ किए गए कथित दुर्व्यवहार के संबंध में रिपोर्ट 15 दिन के भीतर प्रस्तुत करें। मामले की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।
(इनपुट-भाषा)