
भारत, रूस और चीन का एक होना अमेरिका के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।
रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय मंच को फिर से सक्रिय करने की कोशिशों के साथ तीनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग की चर्चा तेज हो गई है। दूसरी ओर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाकर और इसे और बढ़ाने की धमकी देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह टैरिफ भारत के रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर लगाया गया है। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया है कि भारत किसी भी कीमत पर अपने हितों, खासकर किसानों और डेयरी उद्योग के हितों, से समझौता नहीं करेगा। आइए, इस स्थिति को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि अगर भारत, रूस और चीन एक साथ आते हैं, तो इसका वैश्विक व्यवस्था और अमेरिका पर क्या असर पड़ सकता है।
RIC क्या है और इसका इतिहास?
RIC यानी रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय मंच की शुरुआत 1990 के दशक में रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने की थी। इसका उद्देश्य था अमेरिका और पश्चिमी देशों के एकध्रुवीय (unipolar) विश्व व्यवस्था को चुनौती देना और एक बहुध्रुवीय (multipolar) विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना। इस मंच का लक्ष्य तीनों देशों के बीच रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना था। 2002 से 2020 तक RIC ने 20 से अधिक मंत्रिस्तरीय बैठकें कीं, जिसमें विदेश नीति, व्यापार, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। 2020 के बाद भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी संघर्ष और कोविड-19 महामारी के कारण यह मंच निष्क्रिय हो गया।
रूस और चीन अब इस मंच को फिर से सक्रिय करने के पक्ष में हैं। भारत ने भी इस पर सकारात्मक लेकिन सतर्क रुख अपनाया है। भारत के NSA अजित डोवल ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगू से मुलाकात की। इस दौरान पुतिन की भारत यात्रा की तारीखें लगभग तय हो गईं, और रूस-भारत रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने पर जोर दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन।
भारत, रूस और चीन का साथ आने का क्या मतलब है?
भारत, रूस और चीन विश्व की सबसे बड़ी शक्तियों में शामिल हैं। इन तीनों देशों की सैन्य और आर्थिक ताकत साथ मिलकर वैश्विक व्यवस्था को बदल सकती है। RIC का पुनर्जन्म अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को कम कर सकता है। यह एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देगा, जिसमें गैर-पश्चिमी देशों की आवाज मजबूत होगी। यह संगठन संयुक्त राष्ट्र, BRICS, और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर मिलकर वैश्विक एजेंडे (जैसे जलवायु, विकास, आतंकवाद) को अपने हितों के अनुकूल ढाल सकता है।
अमेरिका को RIC से खतरा महसूस हो रहा है, क्योंकि यह उसकी वैश्विक सत्ता को चुनौती दे सकता है। ट्रंप ने पहले ही BRICS और भारत की रूस के साथ साझेदारी पर सवाल उठाए हैं। रूस और चीन के साथ सहयोग से भारत को ऊर्जा, रक्षा, और तकनीक जैसे क्षेत्रों में नए अवसर मिल सकते हैं। इससे चीन के साथ सीमा विवाद में स्थायी संवाद का मंच मिल सकता है, जिससे तनाव कम हो सकता है और भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए पश्चिम और पूर्व के बीच संतुलन बना सकता है।
अमेरिका की टैरिफ धमकियां और भारत का जवाब
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, जिसका कारण भारत का रूस से तेल और हथियार खरीदना बताया जा रहा है। इसके साथ ही भारत के उत्पादों पर 50% का टैरिफ लग गया है। ट्रंप ने इसे और बढ़ाने और सेकेंडरी सैंक्शन्स लगाने की धमकी भी दी है। टैरिफ से भारत के फार्मा, आईटी, टेक्सटाइल, और मोबाइल निर्यात की लागत बढ़ेगी, जिससे ये सेक्टर प्रभावित होंगे। साथ ही डेयरी उत्पाद, जैसे घी और दूध पाउडर, अमेरिका में महंगे हो सकते हैं, जिससे उनकी मांग घट सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया है कि भारत अपने किसानों और डेयरी उद्योग के हितों की रक्षा करेगा, चाहे कोई भी दबाव हो। साथ ही NSA अजित डोवल की मॉस्को यात्रा और पुतिन के भारत दौरे की पुष्टि से भारत ने अमेरिका को यह संदेश दिया है कि वह अपनी विदेश नीति में स्वतंत्र रहेगा।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
भारत-रूस की दोस्ती में दरार डालना चाहते हैं ट्रंप!
ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति भारत और रूस की गहरी दोस्ती में दरार डालने की एक रणनीतिक कोशिश के रूप में देखी जा सकती है। इस नीति का उद्देश्य न केवल भारत पर आर्थिक दबाव डालना है, बल्कि रूस को वैश्विक व्यापार में कमजोर करने की कोशिश भी हो सकती है। भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रणनीतिक और व्यापारिक रिश्ता रहा है, जिसमें रक्षा, ऊर्जा और व्यापार जैसे क्षेत्र शामिल हैं। दूसरी ओर, ट्रंप ने चीन पर भी टैरिफ लगाने की धमकी दी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिसके कारण भारत पर दबाव अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।
ट्रंप की टैरिफ धमकियों से अमेरिका को भी नुकसान
ट्रंप की टैरिफ धमकियां भारत पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन इनकी कुछ सीमाएं हैं। भारत अमेरिका को हर साल 87 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात करता है। टैरिफ बढ़ने से अमेरिका की अपनी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारतीय सामान महंगे होने से अमेरिकी उपभोक्ता प्रभावित होंगे। व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने भी माना है कि अमेरिका ऐसी नीतियों से बचना चाहता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाए। ट्रंप ने चीन पर अभी तक टैरिफ को लेकर सख्ती नहीं दिखाई, जबकि चीन रूस से भारत से 4 गुना ज्यादा तेल खरीदता है। यह सवाल उठाता है कि क्या ट्रंप की नीति में पक्षपात है।
अमेरिका का असर कम कर देगी RIC की सक्रियता
भारत, रूस और चीन का RIC गठजोड़ वैश्विक व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। यह एक बहुध्रुवीय विश्व को बढ़ावा देगा, जिसमें अमेरिका का एकतरफा प्रभुत्व कम हो सकता है। भारत के लिए यह एक रणनीतिक मौका है, जिससे वह अपनी स्वायत्तता बनाए रखते हुए रूस और चीन के साथ सहयोग बढ़ा सकता है। हालांकि, भारत-चीन सीमा विवाद और क्वाड जैसे पश्चिमी गठजोड़ों के साथ संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा। ट्रंप की टैरिफ धमकियां भारत पर दबाव बनाने की कोशिश हैं, लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपने हितों से समझौता नहीं करेगा। अगर RIC पूरी तरह सक्रिय होता है, तो यह न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई भूराजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की शुरुआत कर सकता है।