Explainer: मुहम्मद बिन तुगलक को क्यों कहा गया “संत और शैतान”, क्या वह दोहरे व्यक्तित्व का शख्स था?


मुहम्मद बिन तुगलक- India TV Hindi
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मुहम्मद बिन तुगलक

दिल्ली सल्तनत ने 14वीं सदी में एक ऐसे शासक को भी देखा, जिसने इतिहास में खुद को एक पहेली की तरह स्थापित कर दिया। हम बात कर रहे हैं मोहम्मद बिन तुगलक की, जिसे इतिहासकार ‘संत और शैतान’ के दोहरे व्यक्तित्व वाला शख्स मानते हैं। दरअसल, एक ओर जहां वह एक विद्वान, उदार और दूरदर्शी शासक था, तो दूसरी तरफ उसके फैसलों और बर्ताव में क्रूरता और हठधर्मिता की पराकाष्ठा भी झलकती थी। इतिहासकार लिखते हैं कि वह व्यवहारवादी बिल्कुल नहीं था।

इतिहासकारों ने मुहम्मद बिन तुगलक के व्यक्तित्व के कई पहलू का जिक्र किया है। मोरक्को के यात्री इब्न बतूता, जिन्होंने उनके दरबार में 10 साल बिताए, अपनी किताब ‘रिहला’ में लिखते हैं, “यह बादशाह एक तरफ उपहार देने का शौकीन था, तो दूसरी तरफ खून बहाने का भी। उसके दरवाजों पर एक ओर गरीबों को अमीर बनाया जाता था, तो दूसरी ओर कुछ लोगों को मौत के घाट भी उतारा जाता था।”

इतिहासकार रॉबर्ट सेवेल अपनी किताब ‘ए फॉरगॉटन एम्पायर’ में उसे एक ऐसा संत बताते हैं, जिसका हृदय शैतान का था, और एक ऐसा शैतान, जिसकी आत्मा संत की थी।” वह अरबी और फारसी का विद्वान था, और खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, और तर्कशास्त्र में भी पारंगत था। उसके पास दूसरे धर्मों को समझने की उत्सुकता थी और वह जैन साधुओं और योगियों को भी संरक्षण देता था। वह योग्यता को धर्म से ऊपर रखता था, जिसके चलते उसने कई हिंदुओं को भी ऊंचे पदों पर नियुक्त किया था।

मुहम्मद बिन तुगलक की प्रतीकात्मक तस्वीर

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मुहम्मद बिन तुगलक की प्रतीकात्मक तस्वीर

उस दौर के इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि मोहम्मद बिन तुगलक की ज्यादातर योजनाएं उसके और उसकी प्रजा के लिए भयानक दु:स्वप्न बनकर रह गईं। लेकिन उसने कभी भी अपनी नाकामयाबी को अपनी नाकामयाबी नहीं माना और इसके लिए हमेशा अपने लोगों को दोषी ठहराया।

राजधानी बदलने का विवादास्पद फैसला 

दिल्ली से अपनी राजधानी को महाराष्ट्र के दौलताबाद ले जाने का उसका फैसला सबसे विवादास्पद था। वह सिर्फ राजधानी ही नहीं, बल्कि दिल्ली की पूरी आबादी को भी दौलताबाद ले जाना चाहता था। इतिहासकारों के अनुसार, जो लोग जाने से इंकार करते थे, उन्हें कठोर सजा दी जाती थी। इब्न बतूता ने लिखा है कि एक बार सुल्तान के आदेश पर एक अंधे व्यक्ति को दिल्ली से दौलताबाद तक घसीटा गया, जिससे रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई। इस फैसले से दिल्ली पूरी तरह से उजड़ गई। बाद में जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने लोगों को वापस दिल्ली लौटने की अनुमति दी, लेकिन दिल्ली अपनी पुरानी रौनक कभी वापस नहीं पा सकी।

तांबे के सांकेतिक सिक्के चलाए

14वीं शताब्दी में चांदी की कमी के कारण उसने तांबे के सांकेतिक सिक्के चलाए, जिनकी कीमत चांदी के सिक्कों के बराबर मानी गई। यह विचार चीन और ईरान से प्रेरित था, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के कारण यह योजना भी बुरी तरह से विफल हो गई। लोगों ने बड़े पैमाने पर नकली सिक्के बनाना शुरू कर दिए, जिससे अर्थव्यवस्था चरमरा गई। जब सुल्तान को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने घोषणा की कि लोग तांबे के सिक्कों के बदले सरकारी खजाने से सोने और चांदी के सिक्के ले सकते हैं। इस कदम से राज्य का खजाना लगभग खाली हो गया और सुल्तान की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा।

जनता और सुल्तान के बीच की खाई

मुहम्मद बिन तुगलक की क्रूरता ने उसकी जनता और उसके बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी थी। मध्यकालीन इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी ने अपनी किताब ‘तारीख़-ए-फिरोजशाही’ में लिखा है कि सुल्तान ने इस्लाम की उदार शिक्षाओं को अनदेखा किया। इब्न बतूता के अनुसार, उसके महल के सामने रोज खून बहाया जाता था और मारे गए लोगों के शव चेतावनी के तौर पर फेंक दिए जाते थे।

हालांकि, उसके अंदर न्याय और उदारता की भावना भी मौजूद थी। इब्न बतूता ने लिखा है कि एक बार जब एक हिंदू दरबारी ने सुल्तान के खिलाफ शिकायत की, तो सुल्तान नंगे पैर काजी की अदालत में गया और उसके फैसले का पालन किया। उसने सूखे के समय दिल्ली के लोगों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था भी करवाई। उसने आदेश दिया कि दिल्ली के हर गरीब-अमीर आदमी को प्रति व्यक्ति 750 ग्राम के हिसाब से छह महीने तक रोज भोजन सामग्री उपलब्ध कराई जाए।

 गुजरात में विद्रोहियों को कुचलने के लिए दिल्ली से बाहर निकला

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गुजरात में विद्रोहियों को कुचलने के लिए दिल्ली से बाहर निकला

मोहम्मद बिन तुगलक को किसी पर भरोसा नहीं था। इसलिए वह विद्रोह को कुचलने के लिए देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से जाता रहता था। उसके इस फैसले ने उसकी सेना को बुरी तरह से थका दिया था। सन् 1345 में मोहम्मद बिन तुगलक गुजरात में विद्रोहियों को कुचलने के लिए दिल्ली से बाहर निकला और फिर उसकी दिल्ली वापसी कभी नहीं हुई। इस अभियान के दौरान सुल्तान की सेना में प्लेग की महामारी फैल गई थी। गुजरात में सुल्तान ने विद्रोही मोहम्मद तागी को हरा दिया, लेकिन वह उसे पकड़ नहीं पाया, क्योंकि विद्रोही सिंध की तरफ भाग गए थे। 

मुहम्मद बिन तुगलक का शासनकाल विरोधाभासों से भरा रहा। उसके अच्छे विचार अक्सर उसके बुरे स्वभाव और हठधर्मिता के कारण असफल हो गए। उसने 1351 में अपनी अंतिम सांस ली और उस समय के इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा, “सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को सुल्तान से मुक्ति मिल गई।”





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