
बेजुबानों की आवाज़
“जो अपना दर्द समझा नहीं सकते, उनकी सुनो।
जो अपने लिए लड़ नहीं सकते, उनके लिए लड़ो”
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक सवाल खड़ा कर दिया है। एक तरफ इंसानों की चिंता, दूसरी तरफ़ बेजुबान जानवरों की ज़िन्दगी। हटाना या मिटाना समस्या का हल नहीं हो सकता। फिर रास्ता क्या है? क्या करें?
इंडिया टीवी को समाधान की तलाश है। आप भी मदद कर सकते हैं।
एक ऐसा तरीका जो मानवीय भी हो और व्यावहारिक भी
अभी तो न शेल्टर हैं, न फंड्स हैं, न कोई प्लान—तो क्या किया जाए ? आप बताइये
हम उन्हें सड़कों पर छोड़ नहीं सकते, और उन्हें मरने भी नहीं दे सकते! उन्हें कहाँ रखें? उनकी देखभाल कैसे करें? कोई रास्ता सुझाइए।
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