
असदुद्दीन ओवैसी
हैदराबाद: एआईएमआईएम (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एसआईआर (SIR) विवाद पर बयान दिया। ओवैसी ने कहा कि वह अपनी पार्टी की ओर से एसआईआर के खिलाफ बोल सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि इस एसआईआर प्रक्रिया से कई असली मतदाताओं के नाम हटा दिए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग (EC) द्वारा जारी की गई अंतरिम सूची में यह नहीं बताया गया है कि कितने लोगों ने सिर्फ फॉर्म पर हस्ताक्षर किए हैं और जरूरी दस्तावेज जमा नहीं किए हैं। ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी ने ऐसे कई मतदाताओं के नाम अपने वकील निजाम पाशा को दिए हैं, जिनके नाम इस सूची में शामिल नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने SIR को बताया ‘मतदाता-अनुकूल’
बता दें कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया का बचाव करते हुए कहा कि इसमें दस्तावेजों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ाई गई है, जो इसे मतदाता-अनुकूल बनाती है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में SIR आयोजित करने के निर्वाचन आयोग (EC) के 24 जून के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। पीठ ने कहा कि पहले बिहार में हुए संक्षिप्त पुनरीक्षण में दस्तावेजों की संख्या 7 थी, जबकि SIR में यह 11 है।
अदालत ने कहा, “राज्य में पहले किए गए संक्षिप्त पुनरीक्षण में दस्तावेजों की संख्या 7 थी और SIR में यह 11 है, जो दर्शाता है कि यह मतदाता-अनुकूल है। हम आपकी दलीलों को समझते हैं कि आधार को स्वीकार न करना अपवादात्मक है, लेकिन दस्तावेजों की अधिक संख्या वास्तव में समावेशी स्वरूप की है।”
अभिषेक सिंघवी ने जताई असहमति
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने इस पर असहमति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि भले ही दस्तावेजों की संख्या बढ़ी हो, लेकिन उनका कवरेज कम है। सिंघवी ने बिहार में पासपोर्ट धारकों की कम संख्या का हवाला दिया और कहा कि राज्य में स्थायी निवासी प्रमाण पत्र देने का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे अधिकांश लोगों के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता है।
इसके जवाब में पीठ ने कहा कि अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों से फीडबैक लेने के बाद ही आमतौर पर दस्तावेजों की सूची तैयार की जाती है।
यह सुनवाई ऐसे समय में हो रही है जब संसद के अंदर और बाहर SIR के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। गत 12 अगस्त को शीर्ष अदालत ने कहा था कि मतदाता सूची में नागरिकों या गैर-नागरिकों को शामिल करना या बाहर करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है। अदालत ने SIR में आधार और मतदाता पहचान पत्र को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करने के चुनाव आयोग के रुख का भी समर्थन किया था।
अदालत ने यह भी कहा था कि यह विवाद काफी हद तक विश्वास की कमी का मुद्दा है, क्योंकि चुनाव आयोग ने दावा किया है कि बिहार में कुल 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 6.5 करोड़ लोगों को कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में थे। (इनपुट- भाषा)
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