
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग।
नई दिल्ली: वैश्विक मंच पर पिछले कुछ दिनों से एक नया इतिहास रचा जा रहा है। BRICS यानी कि ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका ने पश्चिमी देशों के दबाव के खिलाफ एकजुट होकर दुनिया को चौंका दिया है। ये देश, जो पहले अपनी आपसी मतभेदों की वजह से अलग-थलग दिखते थे, अब एक साथ मिलकर पश्चिमी दुनिया के सामने एक मजबूत ताकत बनकर उभरे हैं। ये कोई साधारण कूटनीतिक कदम नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और सत्ता के समीकरण को बदलने वाला एक बड़ा परिवर्तन है। आइए, इस ऐतिहासिक मोड़ की पूरी कहानी को समझने की कोशिश करते हैं।
2022 में रूस के साथ शुरू हुई थी कहानी
पिछले कुछ सालों में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने BRICS देशों पर तरह-तरह का दबाव बनाया। 2022 में रूस के लगभग 300 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को पश्चिमी देशों ने जब्त कर लिया, जिससे पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया। इससे ग्लोबल साउथ यानी कि विकासशील देशों को एक बड़ा झटका लगा और उन्हें एहसास हुआ कि पश्चिमी देशों में उनकी संपत्तियां सुरक्षित नहीं हैं। इस घटना ने BRICS देशों को एक नई दिशा दी और उन्होंने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की मुहिम, यानी ‘डी-डॉलराइजेशन’, को तेज कर दिया।

BRICS देशों ने पिछले कुछ महीनों में मजबूत एकजुटता दिखाई है।
चीन और भारत पर लगाए भारी-भरकम टैरिफ
अमेरिका ने इसी बीच चीन के खिलाफ अपनी व्यापारिक जंग को और तेज किया, जिसमें चीनी सामानों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाए गए। जवाब में, चीन ने भी अमेरिका के खिलाफ उसी तरह के कदम उठाए। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल खरीदने के लिए पहले 25 फीसदी और फिर 50 फीसदी टैरिफ थोप दिया, जबकि पहले उसने भारत को वैश्विक बाजार को स्थिर करने के लिए रूस से तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था। ब्राजील पर भी 50 फीसदी टैरिफ लगाया गया, जिसके जवाब में ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने साफ कहा कि उनका देश इस ‘सजा’ को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेगा।
साउथ अफ्रीका और ब्राजील को भी दी धमकी
साउथ अफ्रीका के खिलाफ अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें वहां नस्लीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया। साउथ अफ्रीका ने इसकी कड़ी आलोचना की और इसे ‘विरोधाभासी’ करार दिया। इसके अलावा, NATO के प्रमुख ने भारत, चीन और ब्राजील को धमकी दी कि वे यूक्रेन मुद्दे पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करें, वरना प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। यूरोपीय संघ ने भी भारत पर रूसी तेल न खरीदने का दबाव बनाया, जबकि वह खुद रूस से ऊर्जा संसाधनों का आयात कर रहा है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और विदेश मंत्री एस. जयशंकर।
BRICS ने पूरी ताकत से दिया हर बात का जवाब
पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका की तरफ से इन तमाम दबावों के जवाब में BRICS देशों ने अपनी एकता को और मजबूत किया। हाल ही में कुछ ही दिनों के भीतर कई बड़े कूटनीतिक कदम उठाए गए, जो इस बात का सबूत हैं कि BRICS अब पहले से कहीं ज्यादा संगठित और ताकतवर है।
- भारत की सक्रियता: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने अचानक रूस का दौरा किया और राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा से फोन पर बात की और दोनों देशों के बीच व्यापार को 2030 तक 20 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा। इसके अलावा, मोदी जल्द ही शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के लिए चीन जाएंगे, जो 7 साल में उनका पहला चीन दौरा होगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी मॉस्को में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की और द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर चर्चा की।
- रूस की पहल: रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 24 घंटे के भीतर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा से फोन पर बात की। ये बातचीत BRICS देशों के बीच आपसी सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम थी।
- चीन का रुख: चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कई सालों बाद भारत का दौरा किया, जो इस बात का संकेत है कि दोनों देश अमेरिकी दबाव के खिलाफ एक साथ खड़े हैं। चीन ने भी BRICS के मंच पर साफ किया कि यह संगठन टकराव के लिए नहीं, बल्कि सहयोग के लिए बना है।
- ब्राजील और साउथ अफ्रीका की प्रतिक्रिया: ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने अमेरिकी दबाव को खारिज करते हुए कहा, ‘हमें कोई शहंशाह नहीं चाहिए।’ उन्होंने BRICS की अध्यक्षता का इस्तेमाल करते हुए भारत और चीन के नेताओं के साथ टैरिफ के प्रभावों पर चर्चा करने की योजना बनाई। साउथ अफ्रीका ने भी अमेरिका के आरोपों का जवाब देते हुए अपनी संप्रभुता पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा।
ग्लोबल इकोनॉमी में नया मोड़ है डी-डॉलराइजेशन
BRICS देशों का सबसे बड़ा कदम है अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना। ये देश अब अपने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, भारत और रूस के बीच तेल का व्यापार रुपये में हो रहा है, जबकि चीन और रूस ने अपने 80 फीसदी व्यापार को रूबल और युआन में निपटाना शुरू कर दिया है। BRICS ने अपनी न्यू डेवलपमेंट बैंक और BRICS पे जैसे सिस्टम को मजबूत करने की दिशा में काम शुरू किया है, ताकि SWIFT जैसे पश्चिमी वित्तीय तंत्र से बच सकें। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर का दबदबा जल्दी खत्म नहीं होगा, क्योंकि यह अभी भी वैश्विक व्यापार का 80% हिस्सा संभालता है। फिर भी, BRICS वैश्विक अर्थव्यवस्था को और समावेशी बनाने की दिशा में तेज से बढ़ रहा है।
क्यों ऐतिहासिक माना जा रहा BRICS का ये उभार?
BRICS अब सिर्फ एक आर्थिक गठजोड़ नहीं, बल्कि एक ऐसी ताकत बन चुका है, जो पश्चिमी देशों के एकध्रुवीय विश्व को चुनौती दे रहा है। ये देश एक मल्टीपोलर वर्ल्ड की दिशा में काम कर रहे हैं, जहां कोई एक देश पूरी दुनिया पर हावी न हो। भारत, रूस, चीन, ब्राजील और साउथ अफ्रीका की यह एकता न केवल उनकी संप्रभुता की रक्षा कर रही है, बल्कि ग्लोबल साउथ के अन्य देशों को भी प्रेरित कर रही है। BRICS की यह एकता वैश्विक व्यापार, कूटनीति और अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव ला सकती है। अब देखना यह है कि क्या BRICS देश अपनी एकजुटता से इस कहानी को अंजाम तक पहुंचा पाते हैं या नहीं।
