
भारत के पास है थोरियम का खजाना
World Nuclear Association के मुताबिक, भारत, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में थोरियम के सबसे बड़े भंडार हैं। लेकिन इसे वरदान कह सकते हैं कि भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा थोरियम का भंडार है, जो मुख्य रूप से केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में पाए जाते हैं। थोरियम के विशाल भंडार के साथ, भारत आने वाले भविष्य में एक प्रमुख ऊर्जा महाशक्ति बनने की क्षमता रखता है। बता दें कि एक किलो थोरियम से एक वर्ष में लगभग एक मेगावाट बिजली उत्पन्न होगी, जो 1,000 घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है, जिसकी कीमत $1.5 मिलियन है।
तो सबसे पहले जान लें कि थोरियम है क्या
पृथ्वी पर थोरियम यूरेनियम से ज्यादा पाया जाता है। सबसे बड़ी बात है कि इसका बार बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल परमाणु रिएक्टरों में किया जा सकता है। World Nuclear Association के अनुसार, थोरियम (Th) एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला, रेडियोधर्मी धातु है जो बिल्कुल चांदी की तरह दिखती है। इसकी खोज सबसे पहले 1828 में जोंस जैकब बर्जेलियस ने की थी। यह पृथ्वी पर मिट्टी, चट्टानों और पानी में मौजूद होता है, खासकर मोनाज़ाइट जैसे खनिजों में। अपनी रेडियोधर्मिता के कारण, यह परमाणु ऊर्जा उत्पादन में एक संभावित ईधन स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे यूरेनियम-233 में परिवर्तित किया जा सकता है, जो परमाणु रिएक्टरों को शक्ति प्रदान कर सकता है।

क्या होता है थोरियम
भविष्य में इसका यूरेनियम की जगह होगा इस्तेमाल
इसका इस्तेमाल फिलहाल लालटेन मेंटल, सिरेमिक ग्लेज और वेल्डिंग रॉड में किया जाता है, लेकिन यह भविष्य में उन्नत परमाणु रिएक्टरों में इसके उपयोग की संभावना है। माना जाता है कि थोरियम-आधारित ईंधन चक्र कम दीर्घकालिक अपशिष्ट पैदा करते हैं और वर्तमान यूरेनियम-आधारित प्रणालियों की तुलना में अधिक सुरक्षा और दक्षता प्रदान कर सकते हैं। भारत सरकार परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम आधारित रिएक्टरों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रही है, ताकि ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जा सके।

भारत में थोरियम
थोरियम के इस्तेमाल से ऊर्जा क्षेत्र में आ जाएगी क्रांति
थोरियम का इस्तेमाल फिलहाल मुख्य रूप से चीन और अमेरिका में हो रहा है। भारत का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करना है। सीसीटीई ने 17 अगस्त को इस सफलता की घोषणा के तुरंत बाद भारतीय परमाणु भौतिक विज्ञानी और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोडकर ने X पर पोस्ट किया-बधाई हो @cleancoreenergy। थोरियम-आधारित ANEEL ईंधन में लगभग 45 गीगावाट प्रति टन बर्न-अप तक पहुंचने से एक व्यवहार्य PHWR ईंधन सुनिश्चित होता है जो थोरियम पिघले हुए लवण वाले छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों ( SMR ) को कल्पना से भी पहले वास्तविकता में ला सकता है।
अभी इसमें लगेगा वक्त, जानिए वजह
वर्तमान में, भारत परमाणु ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए यूरेनियम का आयात करता है। क्योंकि थोरियम की भौतिक विशेषताओं के कारण अकेले इसका उपयोग करके परमाणु रिएक्टर बनाना संभव नहीं है। थोरियम को ईंधन के रूप में उपयोग करने से पहले रिएक्टर में यूरेनियम-233 में परिवर्तित करना पड़ता है। यही वजह है कि भारत अब तक थोरियम का सीधा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। लेकिन जब इसका प्रयोग होने लगेगा तो भारत इस मामले में सुपर पावर बन जाएगा। बता दें कि 20वीं सदी के उत्तरार्ध में थोरियम के रेडियोधर्मी गुणों को लेकर चिंताओं के कारण इसका उपयोग बंद कर दिया गया था।
