
सुनील आनंद।
बॉलीवुड के सुनहरे दौर की बात हो और देव आनंद का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। उनकी स्टाइल, उनकी मुस्कान, उनका अंदाज, हर चीज में एक अलग ही चमक थी। देव आनंद न केवल एक बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि एक प्रतिभाशाली लेखक, निर्देशक और निर्माता भी रहे। उन्होंने अपने समय से कहीं आगे की सोच रखते हुए ऐसी फिल्में बनाईं जो आज भी दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। सामाजिक मुद्दों से लेकर रोमांस तक, हर विषय पर उन्होंने प्रयोग किए और एक के बाद एक यादगार फिल्में दीं। देव आनंद की लोकप्रियता इतनी थी कि उनका नाम ही फिल्म की सफलता की गारंटी माना जाता था। इस कदर पहचान और सफलता हासिल करने के बाद जब उन्होंने अपने बेटे को फिल्मों में लॉन्च करने का फैसला किया तो जाहिर था कि दर्शकों की उम्मीदें भी आसमान छू रही थीं।
देव आनंद ने बेटे को अनोखे अंदाज में किया लॉन्च
जहां सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय दत्त को ‘रॉकी’ से और धर्मेंद्र ने सनी देओल को ‘बेताब’ से लॉन्च किया, वहीं देव आनंद ने इस चलन से हटकर अपने बेटे सुनील आनंद को 1984 में अपनी निर्देशित फिल्म ‘आनंद और आनंद’ से फिल्मों में लॉन्च किया। इस फिल्म में देव आनंद खुद मुख्य भूमिका में थे, जबकि सुनील को सहायक भूमिका में पेश किया गया। फिल्म में राखी और स्मिता पाटिल जैसी बड़ी अभिनेत्रियां भी थीं। हालांकि फिल्म ‘आनंद और आनंद’ बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई। यह पिता-पुत्र की जोड़ी दर्शकों से जुड़ नहीं पाई और फिल्म बिना कोई खास प्रभाव छोड़े सिनेमा घरों से उतर गई।

पत्नी और बच्चों के साथ देव आनंद।
मुख्य भूमिकाओं में भी नहीं मिली सफलता
पहली फिल्म की असफलता के बाद सुनील आनंद ने अगली फिल्म ‘कार थीफ’ में मुख्य अभिनेता के तौर पर काम किया। इस फिल्म में उनके साथ विजयता पंडित थीं। लेकिन यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिरी। न तो फिल्म को सराहना मिली और न ही सुनील के अभिनय को। लगातार दो फ्लॉप फिल्मों के बाद उनके करियर की राह और मुश्किल हो गई। अपने बेटे के डूबते करियर को संभालने के लिए देव आनंद ने अपने भाई विजय आनंद की मदद ली। विजय आनंद के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मैं तेरे लिए’ में सुनील ने एक बार फिर मुख्य भूमिका निभाई और इस बार उनकी हीरोइन थीं मीनाक्षी शेषाद्रि। बावजूद इसके, फिल्म दर्शकों को लुभाने में नाकाम रही।
लंबा ब्रेक और असफल वापसी
देव आनंद ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक और फिल्म बनाई, जिसमें आशा पारेख और राजेंद्र कुमार जैसे कलाकार भी जुड़े। मकसद सिर्फ एक था, सुनील आनंद को एक सफल अभिनेता के रूप में स्थापित करना। लेकिन नतीजा फिर वही रहा- नाकामी। लगातार असफलताओं से थक हारकर सुनील आनंद ने फिल्मों से लंबा ब्रेक ले लिया। उन्होंने खुद को तराशने की कोशिश की और अपने हुनर को नए सिरे से परखने का प्रयास किया। कई सालों बाद 2001 में उन्होंने मार्शल आर्ट्स पर आधारित फिल्म ‘मास्टर’ से वापसी की। इस फिल्म में उन्होंने न केवल अभिनय किया, बल्कि निर्देशन की जिम्मेदारी भी खुद उठाई। लेकिन दर्शकों ने इस बार भी उन्हें स्वीकार नहीं किया। फिल्म फ्लॉप हुई और सुनील आनंद को एक बार फिर निराशा हाथ लगी।
देव आनंद का नाम बड़ा, पर बेटा नहीं चला
सुनील आनंद ने आखिरकार स्वीकार किया कि शायद फिल्मी दुनिया में सफलता उनकी किस्मत में नहीं लिखी थी। देव आनंद जैसा स्टार बनना आसान नहीं था। उन्होंने जो ऊंचाई पाई, वहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं। सुनील आनंद को इंडस्ट्री में कई मौके मिले, पिता और चाचा दोनों का साथ मिला, लेकिन उनका करियर कभी उड़ान नहीं भर सका। आज, दशकों बाद भी लोग देव आनंद को याद करते हैं, लेकिन सुनील आनंद केवल एक भूली-बिसरी कोशिश बनकर रह गए हैं।
