चंद्रग्रहण के दौरान लाल क्यों दिखाई देता है चंद्रमा, इसे क्यों कहते हैं ब्लड मून?


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फुल ब्लड मून

सात सितंबर की रात चंद्रग्रहण होगा। यह पूरे देश में देखा जा सकेगा। यह 2022 के बाद भारत में दिखाई देने वाला सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। 27 जुलाई, 2018 के बाद यह पहली बार होगा जब देश के सभी हिस्सों से पूर्ण चंद्रग्रहण देखा जा सकेगा। भारतीय खगोलीय सोसाइटी (एएसआई) की जनसंपर्क और शिक्षा समिति (पीओईसी) की अध्यक्ष और नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे में एसोसिएट प्रोफेसर दिव्या ओबेरॉय के अनुसार आपको इसके बाद इतने लंबे चंद्रग्रहण को देखने के लिए 31 दिसंबर, 2028 तक इंतजार करना होगा। इस दौरान चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देगा। लाल रंग के कारण ही इसे ब्लड मून ही कहते हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है?

ब्लड मून का वैज्ञानिक कारण

ब्लड मून एक खगोलीय घटना है, जो पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान होती है। सूर्य और चंद्रमा के बीच जब पृथ्वी आती है, तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है, जिससे चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है। दरअसल, पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के प्रकाश को बिखेरता है। छोटी वेवलेंथ जैसे नीले और हरा रंग की रोशनी पूरी तरह से बिखर जाती हैं, जबकि लंबी वेवलेंथ जैसे लाल रंग वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। चंद्र ग्रहण के दौरान, सूर्य की लाल रोशनी ही पृथ्वी के वायुमंडल से होकर चंद्रमा तक पहुंच पाती है, जिससे चंद्रमा लाल दिखता है। सूर्य की किरणों का नीला रंग बिखरने के कारण ही आसमान नीला दिखाई देता है। वायुमंडल में धूल, प्रदूषण या ज्वालामुखी राख की मात्रा के आधार पर ब्लड मून का रंग गहरा या हल्का लाल हो सकता है।

मान्यता और कहानियां

हिंदू मान्यताओं में चंद्र ग्रहण को अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय राहु या केतु (राक्षस) चंद्रमा को निगलने की कोशिश करते हैं। इस दौरान लोग धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जैसे कि स्नान, दान और मंत्र जाप। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण देखने से मना किया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि यह बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। मेसोपोटामिया में ब्लड मून को राजा के लिए खतरे का संकेत माना जाता था। माया सभ्यता का मानना था कि ब्लड मून के दौरान जगुआर सूर्य को खाने की कोशिश करता है। इंका सभ्यता  में ब्लड मून को क्रोधित चंद्र देवी का प्रतीक माना जाता था, और लोग इसे शांत करने के लिए अनुष्ठान करते थे।

एएसआई प्रोफेसर दिव्या ओबेरॉय ने क्या कहा?

प्रोफेसर ओबेरॉय ने बताया कि ग्रहण दुर्लभ होते हैं और हर पूर्णिमा या अमावस्या को नहीं होते, क्योंकि चंद्रमा की कक्षा सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा से लगभग पांच डिग्री झुकी हुई है। चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, जिससे उसकी छाया चंद्र सतह पर पड़ती है। ग्रहण की शुरुआत सात सितंबर को रात 8.58 बजे शुरू होगी। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में विज्ञान, संचार, जनसंपर्क और शिक्षा (स्कोप) अनुभाग के प्रमुख निरुज मोहन रामानुजम ने बताया कि सूर्य ग्रहण के विपरीत, पूर्ण चंद्र ग्रहण देखने के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है और इसे नंगी आंखों, दूरबीन या टेलीस्कोप से सुरक्षित रूप से देखा जा सकता है। आंशिक चंद्र ग्रहण सात सितंबर को रात 9.57 बजे से देखा जा सकता है। जवाहरलाल नेहरू तारामंडल की पूर्व निदेशक बीएस शैलजा ने बताया कि पूर्ण चंद्रग्रहण 11.01 बजे शुरू होने की संभावना है। मोहन ने बताया, ‘‘पूर्ण चंद्र ग्रहण रात 11.01 बजे से रात 12.23 बजे तक रहेगा और इसकी अवधि 82 मिनट की होगी। आंशिक चरण रात 1.26 बजे समाप्त होगा और ग्रहण सात सितंबर देर रात 2.25 बजे समाप्त होगा।’’ 

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