
1983 में सोवियत संघ और अमेरिका परमाणु युद्ध के मुहाने पर थे।
26 सितंबर 1983 की रात दुनिया एक ऐसी तबाही के कगार पर खड़ी थी जिसके बारे में सोचकर ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। यह वह रात थी जब रूस और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध होते-होते रह गया। इस घटना के केंद्र में थे एक सोवियत सैन्य अधिकारी स्टैनिस्लाव पेत्रोव, जिनके एक फैसले ने पूरी दुनिया को बर्बादी से बचा लिया। यह कहानी दिखाती है कि तकनीक पर आंख मूंदकर भरोसा करना कितना खतरनाक हो सकता है।
गलती से मार गिराया था कोरियाई प्लेन
1983 में शीत युद्ध अपने चरम पर था। रूस (तब सोवियत संघ) और अमेरिका एक-दूसरे को शक की नजरों से देखते थे। दोनों देशों के पास हजारों परमाणु हथियार थे, जो पूरी दुनिया को कई बार तबाह करने की ताकत रखते थे। इस घटना से कुछ दिन पहले ही, 1 सितंबर 1983 को सोवियत सेना ने गलती से कोरियन एयरलाइंस की उड़ान 007 को मार गिराया था, जिसमें 269 लोग मारे गए थे। इस घटना ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। सोवियत संघ को लग रहा था कि अमेरिका कभी भी हमला कर सकता है, और अमेरिका को भी रूस पर भरोसा नहीं था। ऐसे में दोनों तरफ की सेनाएं हर पल चौकन्ना थीं।
मिसाइल हमले के अलार्म ने मचाया हड़कंप
26 सितंबर 1983 की आधी रात को मॉस्को के पास सर्पुखोव-15 नाम के एक गुप्त कमांड सेंटर में लेफ्टिनेंट कर्नल स्टैनिस्लाव पेत्रोव ड्यूटी पर थे। वह सोवियत संघ की ‘ओको’ सैटेलाइट प्रणाली की निगरानी कर रहे थे, जो अमेरिका से छोड़ी गई मिसाइलों का पता लगाने के लिए बनाई गई थी। तभी अचानक अलार्म बजा। स्क्रीन पर संदेश आया कि अमेरिका ने एक परमाणु मिसाइल दागी है। कुछ ही पलों में सिस्टम ने दिखाया कि 4 और मिसाइलें सोवियत संघ की ओर आ रही हैं। कुल मिलाकर पांच मिसाइलें सोवियत संघ की ओर बढ़ती नजर आईं जो लाखों लोगों की जान ले सकती थीं।
हर शख्स के चेहरे पर छा गया था खौफ
मिसाइलों को सोवियत संघ की तरफ आते देख बंकर में मौजूद हर शख्स के चेहरे पर खौफ छा गया। प्रोटोकॉल के मुताबिक, पेत्रोव को तुरंत अपने सीनियर्स को सूचना देनी थी। अगर यह सूचना ऊपर पहुंचती, तो सोवियत संघ जवाबी परमाणु हमला कर देता, जिससे तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता था। लेकिन पेत्रोव ने जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाया। पेत्रोव के सामने एक मुश्किल हालात था। उनके पास फैसला लेने के लिए बस कुछ मिनट थे। अगर वे सीनियर्स को सूचना देते, तो शायद परमाणु युद्ध शुरू हो जाता। लेकिन अगर वे चुप रहते और हमला सचमुच हो रहा होता, तो सोवियत संघ को भारी नुकसान उठाना पड़ता।
कोल्ड वॉर के दौर में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच कई बार जंग होते-होते रह गई।
पेत्रोव ने लिया बहुत बड़ा फैसला
तनाव की इस घड़ी में पेत्रोव ने अपने दिमाग और दिल दोनों की सुनी। उन्होंने दो बातों पर गौर किया, पहली कि ओको सैटेलाइट सिस्टम नया था और इसमें खराबी की आशंका थी। पेत्रोव को इस पर पूरा भरोसा नहीं था। दूसरी बात ये कि सिस्टम सिर्फ 5 मिसाइलें दिखा रहा था। पेत्रोव की समझ कहती थी कि अगर अमेरिका हमला करता, तो वह सैकड़ों मिसाइलें दागता, न कि सिर्फ 5। इतनी कम मिसाइलों से कोई बड़ा हमला नहीं हो सकता था। पेत्रोव ने अपने तर्कों पर भरोसा किया और फैसला लिया कि यह अलार्म झूठा है। उन्होंने सीनियर्स को सूचना देने के बजाय सिस्टम में तकनीकी खराबी की शिकायत की।
अलार्म सिस्टम से हो गई थी गलती
कुछ मिनट बाद, जब कोई मिसाइल नहीं पहुंची, तो साफ हो गया कि उनका फैसला सही था। बाद में जांच से पता चला कि सैटेलाइट ने बादलों पर सूरज की रोशनी के प्रतिबिंब को गलती से मिसाइल समझ लिया था। अगर पेत्रोव ने अलार्म सिस्टम पर भरोसा कर लिया होता तो दुनिया एक बड़ी मुसीबत में फंस जाती। दोनों देशों के बीच जंग छिड़ने पर न जाने कितने परमाणु बमों का इस्तेमाल होता और लाखों-करोड़ों लोगों की जानें जाती। लेकिन क्या आपको पता है कि इतनी बड़ी मुसीबत टालने के बाद पेत्रोव के साथ क्या सलूक किया गया?
2017 में करीब 77 साल की उम्र में पेत्रोव का निधन हो गया।
पेत्रोव को बदले में क्या मिला?
आपको लग सकता है कि पेत्रोव को इस समझदारी भरे फैसले के लिए हीरो का दर्जा मिला होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था। सोवियत सेना ने उनके फैसले को प्रोटोकॉल का उल्लंघन माना और उन्हें जमकर फटकार लगाई। उनके इस काम को गुप्त रखा गया, और कई सालों तक दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। पेत्रोव चुपचाप रिटायर हो गए और मॉस्को के एक छोटे से घर में जिंदगी गुजारने लगे। 2017 में करीब 77 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनकी कहानी तब सामने आई जब जर्मन फिल्ममेकर कार्ल शूमाकर ने उन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। स्टैनिस्लाव पेत्रोव एक गुमनाम नायक थे, जिन्होंने उस रात अपने दिल की आवाज सुनी और दुनिया को परमाणु तबाही से बचा लिया।