
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक नया आदेश जारी किया, जिसके तहत अब कंपनियों को H-1B वीजा के जरिए विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने के लिए हर साल 100,000 डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) का शुल्क देना होगा। अमेरिका की सरकार के मुताबिक, इस बदलाव का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि यह वीजा प्रोग्राम अपने असली उद्देश्य को पूरा करे, यानी टेक्नोलॉजी, साइंस, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स जैसे क्षेत्रों में दुनिया के सबसे काबिल लोगों को अमेरिका लाने में मदद करे। माना जा रहा है कि ट्रंप सरकार के इस कदम का भारतीयों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
क्यों होती है H-1B वीजा की आलोचना?
H-1B वीजा एक ऐसा प्रोग्राम है, जिसके जरिए कंपनियां उन विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में नौकरी दे सकती हैं, जिनके पास खास स्किल्स हैं और जिनके जैसी प्रतिभा अमेरिका में आसानी से नहीं मिलती। लेकिन कई सालों से इस प्रोग्राम की आलोचना हो रही है। कुछ लोग कहते हैं कि कंपनियां इसका गलत फायदा उठाती हैं और कम सैलरी पर विदेशी कर्मचारियों को नौकरी देती हैं। उदाहरण के लिए, जहां अमेरिकी टेक कर्मचारी को 6 अंकों की सैलरी (लगभग 1 लाख डॉलर या उससे ज्यादा) मिलती है, वहीं H-1B वीजा पर आने वाले कई कर्मचारियों को 60,000 डॉलर से भी कम सैलरी दी जाती है।
क्या बोले अमेरिकी अधिकारी?
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा, ‘H-1B वीजा प्रोग्राम का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है। यह प्रोग्राम उन अति-कुशल कर्मचारियों के लिए है, जो ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं जहां अमेरिकी कर्मचारी उपलब्ध नहीं हैं। नया नियम कंपनियों से H-1B कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने के लिए 100,000 डॉलर का शुल्क लेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वही लोग आएंगे जो वाकई बहुत काबिल हैं और जिनकी जगह अमेरिकी कर्मचारी नहीं ले सकते।’
वहीं, अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा, ‘अब बड़ी टेक कंपनियां या अन्य बड़ी कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को ट्रेनिंग नहीं दे पाएंगी। उन्हें पहले सरकार को 100,000 डॉलर देना होगा, फिर कर्मचारी की सैलरी देनी होगी। इससे यह आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं रहेगा। अगर ट्रेनिंग देनी है, तो अमेरिका के बेहतरीन विश्वविद्यालयों से निकले ग्रेजुएट्स को दी जाए। अमेरिकियों को नौकरियां दी जाएं, न कि विदेशियों को लाकर हमारी नौकरियां छीनी जाएं। यही हमारी नीति है और बड़ी कंपनियां इसके साथ हैं।’
H-1B वीजा में क्या बदलाव हुआ?
ट्रंप के नए आदेश का सबसे बड़ा बदलाव है 100,000 डॉलर का सालाना शुल्क। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि केवल वही कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल करें, जिन्हें वाकई हाई-स्किल्ड कर्मचारियों की जरूरत है। हर साल 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम के जरिए दिए जाते हैं। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल और गूगल जैसी कंपनियां इस साल सबसे ज्यादा वीजा लेने वालों में शामिल हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में सबसे ज्यादा H-1B कर्मचारी काम करते हैं।
भारतीय कर्मचारियों पर क्या असर?
यह नया नियम खास तौर पर भारतीय कर्मचारियों को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि H-1B वीजा पाने वालों में 71 फीसदी भारतीय हैं, जबकि 11.7 प्रतिशत चीनी नागरिक हैं। यह वीजा आमतौर पर 3 से 6 साल के लिए दिया जाता है। ट्रंप का कहना है कि टेक इंडस्ट्री इस बदलाव का स्वागत करेगी, क्योंकि यह प्रोग्राम अब सिर्फ हाई-स्किल्ड कर्मचारियों के लिए होगा, न कि कम सैलरी वाले एंट्री-लेवल जॉब्स के लिए। यह बदलाव ट्रंप प्रशासन के उस बड़े प्लान का हिस्सा है, जिसमें वे कानूनी इमिग्रेशन को या तो सीमित करना चाहते हैं या इससे कमाई करना चाहते हैं।
वीजा मामले में बदल रही US की पॉलिसी
पिछले महीने ही अमेरिका ने एक पायलट प्रोग्राम शुरू किया था, जिसमें टूरिस्ट और बिजनेस वीजा के लिए 15,000 डॉलर तक का बॉन्ड लागू किया गया। यह नियम उन देशों के लिए है, जहां से लोग वीजा की अवधि खत्म होने के बाद भी अमेरिका में रुक जाते हैं या जहां की वीजा जांच प्रक्रिया कमजोर है। H-1B वीजा में यह नया शुल्क कंपनियों को यह सोचने पर मजबूर करेगा कि क्या उन्हें वाकई विदेशी कर्मचारियों की जरूरत है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देगा और प्रोग्राम का दुरुपयोग रोकेगा। लेकिन भारतीय कर्मचारियों और टेक कंपनियों के लिए यह एक नई चुनौती हो सकती है।