
लद्दाख में भड़की हिंसा
देश के शांति प्रिय इलाके में शामिल लेह लद्दाख में बुधवार को शुरू हुए आंदोलन ने अचानक हिंसक रूप ले लिया जिसमें शाम तक कम से कम चार प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की खबर है, 30 से ज्यादा लोग घायल हैं। आंदोलन शुरू होने से पहले से ही लद्दाख में प्रदर्शनकारी केंद्र सरकार से छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा और राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) की युवा शाखा ने मंगलवार की शाम भूख हड़ताल पर बैठे दो लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के बाद बुधवार को विरोध प्रदर्शन और बंद का आह्वान किया था।
लद्दाख में क्यों भड़की हिंसा
लेह में CRPF और पुलिस की गाड़ियों को जला दिया गया और भाजपा के ऑफ़िस में आग लगा दी गई। लद्दाख एडमिनिस्ट्रेटिव काउंसिल के दफ़्तर में भी तोड़-फोड़ की गई। प्रदर्शनकारियों ने पुलिसवालों पर पथराव शुरू कर दिया। जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया तो नाराज़ लोगों ने पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। हालात को काबू करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी, जिसमें चार लोग मारे गए। लेह में CRPF की सात कंपनियां पहले से ही तैनात हैं, चार एडिशनल कंपनियों को कश्मीर से लद्दाख भेजा गया हैं।
अचानक भड़की हिंसा, जानें क्या है वजह
केंद्र और लद्दाख के प्रतिनिधियों, जिनमें LAB और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के सदस्य शामिल हैं, के बीच 6 अक्टूबर को बातचीत का एक नया दौर निर्धारित किया गया था। केंद्र द्वारा एकतरफा तौर पर यह तारीख तय करना बुधवार के विरोध प्रदर्शन के तात्कालिक कारणों में से एक था। अब हिंसा को लेकर सरकार ने कहा है कि इसमें राजनीति और निजी लाभ से प्रेरित साज़िश की बू आती है, लेकिन युवाओं को दोष नहीं दिया जाना चाहिए। कांग्रेस नेताओं के बयान पथराव, बंद और आगजनी के निर्देश जैसे लग रहे थे।
हिंसा पर उतारू भीड़
दरअसल, लद्दाख अपेक्स बॉडी का अनशन चल रहा था और अनशन में शामिल दो लोगों की अचानक तबीयत बिगड़ गई और अनशनकारियों के बीमार होने से युवा भड़क गए। लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं और लद्दाख में 6वीं अनुसूची लागू करने की भी मांग कर रहे हैं। इसी के साथ लद्दाख में विधानसभा बनाने की भी मांग हो रही है, साथ ही दो लोकसभा सीटें बनाने की भी मांग की जा रही है।
लद्दाख में विभिन्न मांग कर रहे और फिर आंदोलन करने वालों के साथ बातचीत के लिए केंद्र सरकार ने कई दिन पहले 6 अक्टूबर की तारीख तय कर दी थी और इससे पहले दो दिन बाद 26 सितंबर को बातचीत होनी थी। उसके बावजूद लेह में तोड़फोड़ और आगजनी हुई।
क्या ये हिंसा प्री प्लान्ड थी?
भाजपा का आरोप है कि ये सब कांग्रेस ने करवाया है, क्योंकि कांग्रेस भारत में नेपाल जैसे हालात पैदा करना चाहती है। लद्दाख के एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक का दावा है कि लेह लद्दाख में कांग्रेस में इतना दम ही नहीं है कि वो ये सब करवा पाए। वांगचुक ने हिंसा की निंदा की है, लेकिन साथ साथ उन्होंने लोगों के गुस्से को जायज ठहराया है। कुछ लोगों ने इसका मतलब ये निकाला कि वांगचुक ने पहले तोड़फोड़ करने वालों को भड़काया और बाद में उनसे शांति कायम करने की अपील की।
सोनम वांगचुक
वहीं, विपक्षी दलों ने लेह की हिंसा को मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी का नतीजा बताया है। नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि लद्दाख की जनता पिछले पांच साल से शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी मांगों के लिए आंदोलन चला रही है, पर जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो लोगों का ग़ुस्सा भड़क गया। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख़ बशीर अहमद ने कहा कि, सरकार को लद्दाख की जनता की बातें सुननी चाहिए।
लोगों की क्या है मांग
हिंसा के बाद, प्रशासन ने बिना मंज़ूरी के लेह में कोई रैली या प्रोटेस्ट करने पर रोक लगा दी है और ये भी तय हुआ कि केन्द्र सरकार के कुछ अफसर कल लेह जाकर सोनम वांगचुक से बात करेंगे। असल में लद्दाख के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा चाहते हैं। उनकी मांग है कि कारगिल और लेह को अलग अलग लोकसभा सीट बनाया जाए, सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की भर्ती हो। लेह के लोग सरकार से ठोस आश्वासन चाहते हैं। इसीलिए, सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की अध्यक्षता में 35 दिनों का अनशन फिर शुरू किया गया था।