
रावण पूर्व जन्म में क्या था
दशहरा पर्व आने में अब कुछ ही दिन बाकी बचे हैं। इस साल ये पर्व 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। ऐसे में रावण को लेकर तरह-तरह की चीजें सर्च की जा रही हैं। जिसमें से लोग रावण के पिछले जन्म के बारे में खूब सर्च कर रहे हैं। कम ही लोग जानते हैं कि रावण अपने पूर्व जन्म में कोई राक्षस नहीं था बल्कि वह भगवान विष्णु का सेवक था। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय थे जो भगवान के अद्वितीय भक्त और सेवक थे। एक बार सनक, सनंदन आदि ऋषि मुनि विष्णु जी के दर्शन के लिए वैकुंठ आए लेकिन जय-विजय ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। ऋषियों को उनका ऐसा व्यवहार अपमानजनक प्रतीत हुआ और उन्होंने उन्हें शाप दे दिया कि दोनों द्वारपाल तीन जन्मों तक असुर योनि में जन्म लेंगे।
इस श्राप के कारण हुआ रावण का जन्म
श्राप का सुनते ही दोनों द्वारपाल ऋषि मुनियों से क्षमा याचना करने लगे। तब ऋषिगण कहते हैं कि अब श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता है। काफी सोच विचार के बाद ऋषि मुनि ने कहा कि तुम 3 जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लोगे लेकिन हर जन्म में तुम्हारी मृत्यु विष्णु जी के ही अवतार के हाथों होगी, तब जाकर तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिलेगी। कहते हैं इसी श्राप के कारण जय-विजय ने तीन बार राक्षस योनी में जन्म लिया। जिसमें से इन दोनों का एक जन्म रावण और कुंभकरण के रूप में था।
पहला जन्म हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष के रूप में
श्राप के अनुसार, जय-विजय का पहला जन्म हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष नामक दैत्यों के रूप में हुआ था। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर किया तो वहीं उसके भाई हिरण्यकशिपु का वध भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया।
दूसरा जन्म रावण और कुंभकरण के रूप में
जय-विजय का दूसरा जन्म रावण और कुंभकर्ण के रूप में हुआ। रावण और कुंभकरण का वध प्रभु श्री हरि के 7वें अवतार भगवान श्री राम के हाथों हुआ।
तीसरे जन्म में जाकर मिली मुक्ति
श्राप के अनुसार जय-विजय का तीसरा और आखिरी जन्म शिशुपाल व दंतवक्र के रूप में हुआ। दोनों का वध भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने किया।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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