अफगानिस्तान पर भारत की कूटनीति से चीन-पाकिस्तान हो जाएंगे हैरान, तालिबान के विदेश मंत्री आने वाले हैं नई दिल्ली


तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी - India TV Hindi
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तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी

काबुलः अफगानिस्तान पर भारत की अचानक बदली हुई रणनीति से चीन और पाकिस्तान को झटका लग सकता है। पिछले कुछ महीनों से भारत ने तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंध बहाल करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इस बीच तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के जल्द भारत दौरे पर आने की खबर सामने आ रही है। वह नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण बैठकें कर सकते हैं। बता दें कि 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद यह पहली उच्च-स्तरीय बैठक होगी। 

भारत-अफगानिस्तान के संबंध फिर से होंगे बहाल

तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी का भारत दौरा भारत और अफगानिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक विकास को चिह्नित करेगा। यह दौरा खास है क्योंकि मुत्ताकी पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिसमें यात्रा प्रतिबंध भी शामिल है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री  अमीर खान मुत्ताकी का भारत दौरा अगले हफ्ते होने की उम्मीद है। अगर मुत्ताकी का दौरा होता है, तो यह दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक विकास होगा। 

अब तक भारत का तालिबान से रहा है सीमित संपर्क

अब तक भारत ने तालिबान शासन के साथ सीमित संपर्क रखा है। भारत ने मुख्य रूप से अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और जन-जन संपर्क पर ध्यान केंद्रित किया है, जबकि अफगानिस्तान में आतंकवाद, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर अपनी चिंताओं पर जोर दिया है। ऐसे वक्त में मुत्ताकी का दौरा खास इसलिए है, क्योंकि मुत्ताकी पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध लगे हुए हैं। ऐसे में उन्हें विदेश यात्रा करने के लिए विशेष छूट की आवश्यकता होती है। अतीत में, ऐसे प्रतिबंधों ने उनके कूटनीतिक प्रयासों को प्रभावित किया है। इस साल अगस्त में, पाकिस्तान की यात्रा का प्रस्ताव भी उस समय रद्द कर दिया गया था, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में छूट को रोक दिया था। 

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे ने बदल दिया था राजनीतिक परिदृश्य

2021 में तालिबान का सत्ता में लौटने की घटना ने अफगानिस्तान के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को नाटकीय रूप से बदल दिया था। अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं की वापसी के बाद, तालिबान ने देश भर में कब्जा किया और 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ घनी को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब से, तालिबान सरकार को वैश्विक मंच पर आधिकारिक मान्यता प्राप्त नहीं हुई है, हालांकि कई देशों ने सुरक्षा और मानवीय चिंताओं के समाधान के लिए संवाद के चैनल बनाए रखे हैं। इनमें भारत भी शामिल है। गत जुलाई में तालिबान शासन को आधिकारिक रूप से मान्यता देने वाला रूस पहला देश बना।

 

भारत ने पिछली सरकारों में अफगानिस्तान पर किया था बड़ा निवेश

भारत ने काबुल में पिछली सरकारों के दौरान अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारी निवेश किया था, जिसमें बुनियादी ढांचे, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण शामिल था। मगर तालिबान के सत्ता में आने के बाद नई दिल्ली ने अपने राजनयिकों और नागरिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया। इसके बाद, भारत ने 2022 में काबुल में एक “तकनीकी मिशन” फिर से खोला, जो मानवीय सहायता वितरण की निगरानी करने और न्यूनतम राजनयिक उपस्थिति बनाए रखने के लिए था। (एएनआई)

 

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