बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट में बोला चुनाव आयोग- ‘याचिकाकर्ता चुनाव प्रक्रिया में रुकावट डालना चाहते हैं’


Supreme Court- India TV Hindi
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सुप्रीम कोर्ट

बिहार एसआईआर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि याचिका लगाने वाले लोग चुनाव प्रक्रिया में रुकावट डालना चाहते हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर सब जानते हैं और संतुष्ट हैं, लेकिन एडीआर को एनालिटिक्स के लिए सब तुंरत चाहिए। आयोग ने कहा क एक भी अपील नहीं आई है। पहले फेस की प्रक्रिया 17 अक्टूबर और 20 अक्टूबर को दूसरे चरण की प्रक्रिया पूरी होगी। तब सूची वेबसाइट पर जारी की जाएगी। 

भूषण ने कहा कि जिनके नाम हटाए गएं हैं, उनकी लिस्ट भी जारी की जानी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि आयोग अपनी जिम्मेदारी निभाएगा। भूषण ने कहा कि उन्हें प्रकाशित करना ही होगा, हम इस मामले को बंद नहीं कर रहे हैं।

मतदाता सब जानते हैं

भूषण ने कहा कि 65 लाख लोगों को हटाने के बाद उन्होंने कुछ और लोगों को हटा दिया है, लेकिन सूची जारी नहीं की है। जस्टिस कांत ने कहा कि यह एक सतत प्रक्रिया है, अभी तक सूची तैयार नहीं हुई है। भूषण ने कहा कि नियमों के अनुसार इस संबंध में वास्तविक समय में पारदर्शिता जरूरी है। नए नाम भी शामिल नहीं किए गए हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता सब जानते हैं। वह डेटा विश्लेषण का इंतजार कर सकते हैं और भविष्य में चुनाव आयोग को मार्गदर्शन दे सकते हैं।

चुनाव आयोग ने 10 दिन का समय मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया कि चुनाव आयोग ने कहा कि व्यापक स्तर पर दाखिल हलफनामे में इस मुद्दे को संबोधित किया गया है, लेकिन इस पर अलग से जवाब दे देंगे और उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय मांगा है और उन्हें यह समय प्रदान किया गया है। चुनाव आयोग ने कहा कि हमने अपने हलफनामे में बताया है कि कैसे वे लगातार जाली दस्तावेज बना रहे हैं। झूठे दस्तावेज दाखिल किए गए हैं। अगर वे जवाब देना चाहें, तो दे सकते हैं।

ड्रॉप डाउन में गलती हुई

भूषण ने कहा कि पिछली बार उन्होंने एक हलफनामा लिया था, जिसमें कहा गया था कि ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, कोई ईपीआईसी नंबर नहीं है। हमने पुष्टि की है, सब कुछ सही था, सिवाय एक बात के कि उनका नाम ड्राफ्ट रोल में नहीं था। जनवरी 2025 के ड्राफ्ट रोल में था। ड्रॉप डाउन मेनू कॉमन है, इसलिए उस संबंध में एक गलती हुई। इस मामले में अगली सुनवाई 4 नवंबर को होगी।

याचिकाकर्ता चुनाव प्रक्रिया में रुकावट डालना चाहते हैं

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि याचिकाकर्ता बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन  प्रक्रिया को “भटकाने और रोकने” की कोशिश कर रहे हैं। आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के हलफनामों में गलत और झूठी बातें लिखी गई हैं और उनका असली मकसद है कि ये प्रक्रिया दूसरे राज्यों में भी न हो सके। आयोग ने बताया कि योगेंद्र यादव ने अपने दावे में अखबारों की रिपोर्ट और खुद बनाए चार्ट्स का इस्तेमाल किया है, जो उनके हलफनामे का हिस्सा नहीं थे। आयोग ने कहा कि ये थोड़े से डेटा का गलत उपयोग है ताकि यह दिखाया जा सके कि वोटर लिस्ट से नाम गायब हैं।

मुस्लिम वोटरों के नाम कटने की बात गलत

आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों से की गई जनसंख्या अनुमान का गलत इस्तेमाल किया है और इन्हें फाइनल वोटर लिस्ट की सटीकता तय करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कथित तौर पर मुस्लिम वोटरों के नाम ज्यादा हटाए जाने के आरोप पर आयोग ने कहा कि यह “साम्प्रदायिक और निंदनीय” सोच है, क्योंकि आयोग के डेटाबेस में धर्म से जुड़ी कोई जानकारी नहीं रखी जाती।

3.66 लाख नाम हटाए गए

चुनाव आयोग ने बताया कि पहले की वोटर लिस्ट में 7.89 करोड़ मतदाता थे। इनमें से 7.24 करोड़ ने फॉर्म भरा, जबकि 65 लाख लोगों ने नहीं भरा। इनमें से 22 लाख की मृत्यु हो चुकी थी, 36 लाख स्थायी रूप से दूसरी जगह चले गए और 7 लाख का नाम कहीं और दर्ज है। आयोग ने बताया कि 3.66 लाख नाम हटाए गए, लेकिन यह सब नोटिस और सुनवाई के बाद हुआ और अब तक किसी ने अपील नहीं की है। अजीबोगरीब नामों के मुद्दे पर चुनाव आयोग ने कहा कि ये गलती हिंदी ट्रांसलेशन सॉफ्टवेयर से हुई थी, जबकि अंग्रेजी रिकॉर्ड सही थे और इन्हें बूथ लेवल अफसरों ने चेक किया था। 

वोटर लिस्ट की सफाई का लक्ष्य पूरा

काल्पनिक हाउस नंबर” पर आयोग ने बताया कि घर का विवरण मतदाता खुद देते हैं और अस्थायी नंबर सिर्फ परिवारों को एक साथ दिखाने के लिए दिए जाते हैं। एसआईआर 2025 में कोई नया निशान नहीं लगाया गया। एसआईआर प्रक्रिया ने वोटर लिस्ट की सफाई का लक्ष्य पूरा कर लिया है। फाइनल रोल 30 सितंबर 2025 को जारी किया गया और अब याचिकाएं बेअसर हो गई हैं। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार की वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी तरीके से हुई है और याचिकाकर्ताओं के आरोप गलत और भ्रामक हैं।

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