
VIP नेता मुकेश सहनी, RJD नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी।
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और आखिरी चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया 20 अक्टूबर को खत्म हो जाएगी, लेकिन महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर उलझन का माहौल अब भी कायम है। महागठबंधन के दल अभी तक सीटों के तालमेल पर कोई ठोस फैसला नहीं कर पाए हैं, जिसके चलते कई सीटों पर आपसी टकराव की स्थिति बन रही है। इस बीच, झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी कि JMM ने गठबंधन से अलग होकर अकेले 6 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, जिससे गठबंधन की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
आरजेडी और कांग्रेस में हो रहा टकराव
गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटों पर दावा कर रहे राष्ट्रीय जनता दल यानी कि RJD ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों को टिकट दे दिया है। लेकिन कई जगहों पर उसने गठबंधन के सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के खिलाफ भी अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। RJD ने अभी तक अपनी सभी सीटों की पूरी लिस्ट जारी नहीं की है, जिससे गठबंधन के अंदर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। वहीं, कांग्रेस ने कुछ दिन पहले 48 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी।
कांग्रेस ने शुक्रवार को एक और नाम का ऐलान किया गया, और अब शनिवार देर शाम 5 और सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की गई। इनमें किशनगंज सीट शामिल है, जहां मौजूदा विधायक इजहारुल हुसैन को हटाकर कमरुल होदा को टिकट दिया गया है। होदा पहले AIMIM के टिकट पर 2019 में उपचुनाव जीत चुके हैं, लेकिन 2020 में तीसरे स्थान पर रहे थे। दो साल पहले वह RJD में शामिल हुए थे और अब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
RJD नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी।
कांग्रेस की नई लिस्ट में कस्बा से इरफान आलम को उम्मीदवार बनाया गया है। पहले इस सीट से पूर्व राज्य मंत्री अफाक आलम को चौथी बार मैदान में उतारने की बात थी, लेकिन पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के दबाव में इरफान आलम को टिकट दिया गया। इरफान आलम पहले JDU में थे और अब पप्पू यादव के करीबी माने जाते हैं। इसके अलावा, पूर्णिया सीट से जितेंद्र यादव और गया टाउन से उपमहापौर महेंद्र कुमार श्रीवास्तव को टिकट मिला है।
इन सीटों पर आपस में भिड़ा महागठबंधन
कम से कम 8 सीटों पर इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। इनमें से 3 सीटों पर RJD और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है। कुटुंबा सीट पर भी तनाव की खबरें हैं, जहां से राज्य कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार राम दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। अफवाहें हैं कि RJD ने यहां भी अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। इस बात से नाराज राम ने सोशल मीडिया पर कई तीखे पोस्ट किए, जिनकी वजह से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने नाराजगी जताई है।
पटना में कांग्रेस के कुछ नाराज नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पार्टी के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु पर टिकट बेचने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि गठबंधन में अव्यवस्था के लिए अल्लावरु जिम्मेदार हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘हम सीट बंटवारे पर समझौते के बहुत करीब हैं। मांग और आपूर्ति में थोड़ा अंतर जरूर है, लेकिन नामांकन वापसी की तारीख तक सब कुछ साफ हो जाएगा।’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह।
NDA ने भी अंतिम वक्त में किए बदलाव
उधर, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी कि NDA में भी काफी कुछ अंतिम समय में तय हुआ है। भले ही एनडीए के सभी दलों ने अपनी सीटों और उम्मीदवारों की घोषणा समय पर कर दी हो, लेकिन कुछ जगहों पर आखिरी वक्त में बदलाव किए गए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड), जो 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, ने अमौर सीट पर पहले घोषित उम्मीदवार सबा जफर को हटाकर पूर्व राज्यसभा सांसद साबिर अली को टिकट दे दिया। साबिर अली को 2014 में नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी के चलते JDU से निकाल दिया गया था।
साबिर बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे और अब फिर से JDU के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा, मरहौरा सीट पर NDA को झटका लगा है। यहां लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार और भोजपुरी अभिनेत्री सीमा सिंह का नामांकन तकनीकी कारणों से रद्द हो गया। अब इस सीट पर मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री जितेंद्र कुमार राय का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। उनके खिलाफ जन सुराज पार्टी के अभय सिंह ही कुछ हद तक चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी ने चुनाव आयोग से इस ‘छोटी सी चूक’ पर दोबारा विचार करने की अपील की है।
क्या है बिहार चुनावों में आगे की राह?
बिहार विधानसभा चुनाव में अब नामांकन की आखिरी तारीख 20 अक्टूबर है। इंडिया गठबंधन के लिए यह समय बेहद अहम है, क्योंकि अगर सीट बंटवारे पर जल्द फैसला नहीं हुआ तो आपसी टकराव गठबंधन की संभावनाओं को और कमजोर कर सकता है। वहीं, एनडीए भी अपनी छोटी-मोटी परेशानियों को जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश में है। सियासी पंडितों की नजर अब इस बात पर है कि दोनों गठबंधन आखिरी मौके पर अपनी रणनीति को कितना मजबूत कर पाते हैं।