
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।
दुनिया के दो बड़े इस्लामिक मुल्कों से दो खबरें आईं, एक बुरी और दूसरी अच्छी। अच्छी खबर ये है कि सऊदी अरब ने कफाला सिस्टम को खत्म कर दिया है, अब सऊदी अरब में नौकरी देने वाली कोई भी कंपनी विदेशी मजदूरों का पासपोर्ट जब्त नहीं कर पाएगी, काम के घंटे तय होंगे, वेतन तय होगा, मजदूर अपनी मर्जी से नौकरी बदल सकेंगे और जब मन करेगा अपने वतन लौट सकेंगे। इसके लिए वीजा स्पॉन्सर करने वाली कंपनी या शेख की इजाज़त की जरूरत नहीं होगी। अब कोई उनसे बंधुआ मजदूरी नहीं करा सकेगा।
बुरी खबर ईरान से आई। पता ये चला कि ईरान मे बड़े नेताओं की बेटियों के लिए और आम लोगों की बहू-बेटियों के लिए हिजाब पहनने या न पहनने के दोहरे मापदंड है। या यूं कहें, तो हिप्पोक्रेसी। जो नेता शरीयत की दुहाई देकर, इस्लामिक परंपराओं के नाम पर महिलाओं पर जुल्म करते हैं, उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर करते हैं, नियम तोड़ने वाली महिलाओं को मौत के घाट उतार देते हैं, वही नेता अपनी बेटी की शादी में हिजाब और नकाब को भूल जाते हैं। उनकी बीवी, बेटी और शादी में आई मेहमान औरतों के लिए हिजाब और पर्दे का नियम लागू नहीं होता।
तेहरान के एक बड़े होटल में पिछले साल अप्रैल में ईरान के पूर्व रक्षा मंत्री अली शामखानी की बेटी की शादी का वीडियो अब सामने आया है। इस वीडियो की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। अली शामखानी ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के राजनीतिक सलाहकार हैं, ख़ामेनेई ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील पर बात करने की ज़िम्मेदारी अली शामख़ानी को दी थी। अली शामख़ानी ने इस्लाम का हवाला देकर ईरान में महिलाओं के लिए कड़े नियम लागू किए। बगैर हिजाब के घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं पर जुल्म करवाए लेकिन खुद अपनी बेटी की शादी में अली शामखानी सारे इस्लामिक नियमों को भूल गए।
जिस वीडियो की बात हो रही है उसमें अली शामख़ानी की बेटी सेताएश अपनी शादी की रस्म के वक्त सफ़ेद strap-less गाउन पहनी हुई है। अली शामख़ानी की बीवी भी बैकलेस ड्रेस में हैं। शादी में शामिल दूसरी महिलाओं ने भी सिर नहीं ढके हैं। अगर ईरान में कोई आम महिला इस तरह नज़र आती, तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता, कोड़े बरसाए जाते, लेकिन इस्लामिक नियमों की वकालत करने वाले अली शामख़ानी शादी में अपनी बेटी को उसी तरह हाथ पकड़कर ले जा रहे हैं जैसा western culture में होता है। जबकि पब्लिक लाइफ में अली शामख़ानी इन सभी पश्चिमी तौर-तरीक़ों को इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ बताते हैं, शरीयत की हिमायत करते हैं।
इस वीडियो को देखकर ईरान में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या ईरान में आम लोगों के लिए अलग नियम हैं? और सत्ता में बैठे इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिए अलग नियम हैं? 2022 में जब ईरान में महिलाओं ने पब्लिक प्लेस पर हिजाब पहनने के फ़रमान के ख़िलाफ़ आंदोलन किया था, तब इन्हीं अली शामख़ानी ने सड़क पर उतरी महिलाओं को सजा देने के लिए हजारों हथियारबंद पुलिस वालों को मैदान में उतार दिया था। ईरान में ये नियम है कि महिलाएं बिना सिर ढके सार्वजनिक स्थानों पर नहीं निकल सकती, ग़ैर मर्दों के सामने बिना हिजाब के नहीं जा सकतीं, चुस्त, sleeveless कपड़े नहीं पहन सकतीं। अगर कोई महिला ये नियम तोड़ती है तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता है, कोड़े मारे जाते हैं और अगर दूसरी बार ये गलती की तो जेल में डाल दिया जाता है।
2022 में एक कुर्द युवती महसा अमीनी ने ईरान में सिर ढकने के इस नियम का विरोध किया था। वो बिना सिर ढके बाहर निकलीं तो ईरान की moral police ने महसा अमीनी को उठा लिया, उसका इतना टॉर्चर किया कि उसकी मौत हो गई। इसके बाद पूरे ईरान में प्रदर्शन हुए। महिलाओं की आवाज दबाने के लिए ईरान की पुलिस, रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और ख़ामेनेई के मातहत काम करने वाली moral police ने प्रदर्शनकारी महिलाओं पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे। तब अली शामख़ानी ने कहा था कि जब तक ये महिलाएं विरोध प्रदर्शन बंद नहीं करतीं, अपने घरों को नहीं लौटतीं, तो पुलिस की सख़्ती जारी रहेगी, किसी भी क़ीमत पर इस्लामिक परंपराओं का पालन कराया जाएगा।
आयतुल्लाह अली खामनेई के सलाहकार शामख़ानी की बेटी ने अपनी शादी में Strapless Gown पहना, इससे किसी को कोई problem नहीं है। शामखानी की बीवी ने Backless dress पहनी, इस पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं है। ये उनका अधिकार है। वो जो चाहे पहनें, ये उनकी ज़िंदगी है, उनका फैसला है। ईरान में सवाल इसलिए उठे, क्योंकि ख़ामेनेई ने सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब न पहनने वाली महिलाओं को कोड़े लगवाए, सिर न ढकने पर लड़कियों को जेल में डाल दिया, Moral Police ने सिर ढकने का विरोध करने वाली लड़कियों को Torture किया, जुल्म के कारण कई लड़कियों की मौत हो गई। क्या ईरान का ये कानून सिर्फ आम लड़कियों और औरतों के लिए है? क्या औरतों की आज़ादी पर पाबंदी सिर्फ साधारण जनता के लिए है? क्या ताकतवर लोगों के लिए कायदे-कानून अलग हैं? शामख़ानी की बेटी की शादी के वीडियो ने ईरान के पूरे सिस्टम को expose कर दिया। पर्दे के नाम पर चल रहे दोहरे मापदंडों का पर्दाफाश कर दिया।
सऊदी अरब में मजदूरों को आज़ादी
ईरान अपनी रूढ़िवादी सोच को लोगों को थोपने पर अड़ा है लेकिन सऊदी अरब वक्त के साथ बदल रहा है, पुराने कानूनों को बदल रहा है। सऊदी अरब की सरकार ने कफाला सिस्टम ख़त्म कर दिया है। इस फैसले से सऊदी अरब में काम करने वाले एक करोड़ तीस लाख से ज़्यादा विदेशी नागरिकों को राहत मिलेगी। सऊदी अरब में कफाला सिस्टम 50 साल से लागू था। अब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने अपने विज़न 2030 के तहत 50 साल से लागू बंधुआ मज़दूरी के इस सिस्टम को ख़त्म कर दिया है। अब सऊदी अरब में काम करने वाले विदेशी नागरिक, अपनी मर्ज़ी से नौकरी बदल सकेंगे, अपनी शर्तों पर नौकरी कर सकेंगे और इसके लिए उनको अपने employer की इजाज़त की ज़रूरत नहीं होगी।
लखनऊ, मुरादाबाद, सहारानपुर और मेवात क्षेत्र में कई गांव ऐसे हैं, जहां के सैकड़ों नोजवान नौकरी के चक्कर में सऊदी अरब गए और अब वहां बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं या फिर झूठे इल्जामों में जेल में बंद हैं। सऊदी अरब में क़रीब 27 लाख भारतीय काम करते हैं। कफाला सिस्टम ख़त्म होने से उन सबको फ़ायदा मिलेगा। क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तक उनका मुल्क तेल की आमदनी पर निर्भर था लेकिन अब दूसरे उद्योग धंधों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए विदेशी पूंजी, विदेशी professional और skilled worker चाहिए।
जो लोग सऊदी अरब के कफाला सिस्टम की वजह से अब तक सऊदी अरब में काम करने से बचते थे, वे बेखौफ होकर सऊदी अरब में काम करने के लिए जा सकेंगे। कफाला सिस्टम की जगह अब सऊदी अरब में contract based रोज़गार मिल सकेगा। क्राउन प्रिंस के इस फैसले का फायदा विदेशी मजदूरों के साथ साथ सऊदी अरब को भी होगा। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 22 अक्टूबर, 2025 का पूरा एपिसोड