
जस्टिस सूर्यकांत
नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्र सरकार से जस्टिस सूर्यकांत को अगला प्रधान न्यायाधीश (CJI) नियुक्त करने की सिफारिश की है। वर्तमान सीजेई गवई के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण कर सकते हैं। प्रधान न्यायाधीश गवई 23 नवंबर को रिटायर होंगे।
कितने महीने का होगा कार्यकाल?
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में 24 मई, 2019 को पदोन्नत हुए जस्टिस सूर्यकांत का प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल करीब 15 महीने होगा। वह 9 फरवरी, 2027 को रिटायर होंगे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति के दिशानिर्देश संबंधी प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को चुना जाना चाहिए, जिन्हें पद धारण करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
इसके अनुसार केंद्रीय कानून मंत्री, ‘उचित समय पर’, निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए अनुशंसा प्राप्त करेंगे। परंपरागत रूप से, यह पत्र वर्तमान प्रधान न्यायाधीश के 65 वर्ष की आयु होने पर रिटायर होने से एक महीने पहले भेजा जाता है।
कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वे ऐसे परिवार से नहीं थे जहां कानून का बोलबाला हो। उन्होंने अपना बचपन सुविधाओं से दूर, एक साधारण ग्रामीण जीवन जीते हुए बिताया। उन्होंने अपने गांव पेटवार से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और 1984 में MDU से एलएलबी की। उन्होंने हिसार जिला अदालत में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया, फिर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए चंडीगढ़ चले गए। 38 साल की उम्र में, जस्टिस सूर्यकांत हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता बने। वह 24 मई, 2019 को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बने।

जस्टिस सूर्यकांत और CJI बीआर गवई
जस्टिस सूर्यकांत की प्रमुख टिप्पणियां और चर्चित केस-
जस्टिस सूर्यकांत बेंच में दो दशक के अनुभव के साथ देश के शीर्ष न्यायिक पद को ग्रहण करेंगे, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता से संबंधित ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं। यहां हम सबसे पहले उन चार चर्चित केस के बारे में बताएंगे जिनमें उनकी टिप्पणी और रुख सुर्खियों में रहा।
- रणवीर अल्लाहबादिया केस- फेमस यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था, “इस व्यक्ति के दिमाग में कुछ गंदा है जो समाज में फैल गया है। वह माता-पिता का भी अपमान कर रहा है। अदालत क्यों उसका पक्ष ले?” जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट कहा था कि लोकप्रियता किसी को समाजिक मर्यादाएं तोड़ने का अधिकार नहीं देती।
- नूपुर शर्मा केस- बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान के बाद देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच जस्टिस सूर्यकांत ने कोर्ट में कहा था, “वह देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी अकेली जिम्मेदार हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा था कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को अपने शब्दों के असर को समझना चाहिए क्योंकि एक गलत बयान समाज में बड़ा विभाजन पैदा कर सकता है।
- स्वाति मालीवाल केस- आप सांसद स्वाति मालीवाल पर हमले के मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था, “क्या यह मुख्यमंत्री का आवास है या किसी गुंडे का अड्डा?” उन्होंने आरोपी विभव कुमार से सवाल किया कि “क्या उसे एक महिला के साथ ऐसा करने में शर्म नहीं आई?” कोर्ट में उन्होंने यह भी कहा कि “जब एक महिला रो रही थी और अपनी शारीरिक स्थिति बता रही थी, तब भी उसे नहीं रोका गया, यह निंदनीय है।”
- मोहम्मद जुबैर केस- 2022 में फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा की दिशा में ऐतिहासिक रुख अपनाते हुए कहा था, “किसी नागरिक को अपनी राय रखने से रोकना असंवैधानिक है। सोशल मीडिया पर राय व्यक्त करने से रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।” बता दें कि यह फैसला तब आया जब मोहम्मद जुबैर पर कई राज्यों में धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में FIR दर्ज की गई थीं।
अन्य प्रमुख फैसलें-
- जस्टिस सूर्यकांत उस बेंच का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी और निर्देश दिया था कि सरकार की ओर से समीक्षा होने तक इसके तहत कोई नई एफआईआर दर्ज न की जाए। चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को रेखांकित करने वाले एक आदेश में, उन्होंने निर्वाचन आयोग को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण देने को कहा था।
- जस्टिस सूर्यकांत को यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं। उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (OROP) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा और सेना में स्थायी कमीशन में समानता की मांग करने वाली सशस्त्र बलों की महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।
- जस्टिस सूर्यकांत सात-न्यायाधीशों की उस बेंच में शामिल थे जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था।
- वह पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक पैनल नियुक्त किया था।
- जस्टिस सूर्यकांत उस बेंच का हिस्सा रहे जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों के लिए ‘‘न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग’’ की आवश्यकता होती है।
