Pakistan:न्यायपालिका और सरकार में चरम पर तकरार, CDF बिल पर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों का इस्तीफा


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी। - India TV Hindi
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी।

इस्लामाबाद:पाकिस्तान में सैन्य वर्चस्व को संवैधानिक मान्यता देने वाले 27वें संविधान संशोधन (सीडीएफ बिल) पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की मंजूरी के कुछ घंटों बाद ही बवाल मच गया है। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट और सरकार में खुलकर तकरार हो गई है। बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों ने इस्तीफा दे दिया। 

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने िल को बताया संविधान पर  “घातक हमला”

राष्ट्रपि जरदारी द्वारा पाकिस्तान के 27वें संविधना संशोधन विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट और सरकार में ठन ई। इस्तीफा देने वाले जस्टिस मंसूर अली शाह और जस्टिस अतहर मिनल्लाह ने इसे संविधान पर “घातक हमला” बताते हुए विरोध जताया। बता दें कि यह संशोधन संसद की निचली सभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित हुआ, जो सेना अधिनियम में बदलाव लाता है। इससे वर्तमान सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (सीडीएफ) का पद मिलेगा, जिसमें नौसेना और वायुसेना पर नियंत्रण होगा। 

आजीवन मुनीर रह सकते हैं सीडीएफ

वैसे तो नए संशोधन के अनुसार असीम मुनीर का सीडीएफ का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा और उन्हें राष्ट्रीय सामरिक कमान के कमांडर की नियुक्ति का अधिकार मिलेगा। मगर अन्य प्रावधानों के मुताबिक वह सरकार और सुप्रीम कोर्ट सबे ताकतवर हो जाएंगे। उन्हें फिर इस पद से हटाना मुश्किल होगा। ऐसे में मुनीर आजीवन स्वेच्छा से इस पद पर बने रह सकते हैं। इसमें किसी मामले में उन पर आपराधिक मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकेगा, क्योंकि यह संशोधन उच्च सैन्य पदों (फील्ड मार्शल, एयर मार्शल आदि) को आजीवन मानदंड देता है, जिसमें आपराधिक मुकदमों से स्थायी छूट शामिल है। 


बिल से सुप्रीम कोर्ट की शक्ति हो जाएगी कमजोर

संवैधानिक मामलों के लिए नया फेडरल संवैधानिक कोर्ट (एफसीसी) गठित होगा, जो सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कमजोर करेगा। मौजूदा संवैधानिक बेंच भंग हो जाएंगी और एफसीसी का चीफ जस्टिस प्रधानमंत्री की सिफारिश पर नियुक्त होगा। जस्टिस शाह ने इस्तीफे में कहा, “यह संविधान को खोखला करता है, न्यायपालिका को कार्यपालिका के अधीन कर देता है।” उन्होंने इसे “संवैधानिक लोकतंत्र पर प्रहार” बताया, जो न्यायिक स्वतंत्रता को कुचलता है। जस्टिस मिनल्लाह ने चेताया कि संविधान अब “मृत प्रेत” बन गया है और न्यायपालिका की चुप्पी ऐतिहासिक विश्वासघात है। सरकार ने इसे “संस्थागत सामंजस्य” का कदम बताया, जबकि विपक्षी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने बहिष्कार किया और बिल की प्रतियां फाड़ीं।

पाकिस्तान में तख्तापटल और भारी आंदोलन की आशंका बढ़ी

इस बिल के आने से पाकिस्तान में तख्तापलट और भारी आंदोलन की आशंका भी बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बिल सैन्य वर्चस्व को मजबूत करेगा, लोकतंत्र को कमजोर करेगा। पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने इसे “न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रहार” कहा। यह घटना पाकिस्तान की नाजुक सिविल-मिलिट्री बैलेंस को और असंतुलित कर सकती है, जहां सुप्रीम कोर्ट पहले सरकार पर अंकुश का माध्यम था।

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