
शारिब हाशमी और नसरीन हाशमी।
‘द फैमिली मैन 3’ में शारिब हाशमी उर्फ जेके तलपडे भले ही एक अकेले यानी सिंगल, अरेंज-मेरेज डेट्स से थके हुए, मिडिल क्लास इंटेलिजेंस ऑफिसर के रूप में नजर आते हों, लेकिन असल जिंदगी में उनकी कहानी बिल्कुल उलट है। स्क्रीन पर मनोज बाजपेयी के किरदार श्रीकांत तिवारी के बेस्ट फ्रेंड जेके अपनी तन्हाई का दर्द हल्के-फुल्के अंदाज में सुनाते हैं। जेल वाले सीन में उनकी झुंझलाहट भरी आवाज आज भी दर्शकों के कानों में गूंजती है, ‘तेरे को क्या प्रॉब्लम है? तूने तो जीवन के सारे सुख देख लिए… बीवी, बच्चे, गर्लफ्रेंड, लड़ाइयां… अकेला कौन मरेगा? मैं! सिंगल आना, सिंगल जाना, इससे बड़ा श्राप ही क्या होगा!’ लेकिन पर्दे के बाहर हमारे जेके तो 2003 से अपनी जिंदगी के हसीन पल जी रहे हैं। उन्हें जीवन संगिनी मिल चुकी हैं।
नसरीन ने दिया हर मोड़ पर साथ
शारिब और नसरीन ने साल 2003 में शादी की और 2009 आते-आते शारिब ने अपनी MTV की आरामदायक नौकरी छोड़ दी, सिर्फ इसलिए कि दिल में छुपा ‘एक्टर’ आखिरकार बाहर आना चाहता था। मगर किस्मत ने शुरुआती दौर में उनके साथ थोड़ी भी नरमी नहीं बरती। ‘धोबी घाट’ के लिए फाइनल होने के बावजूद जब उन्हें आखिरी पल में रिजेक्ट कर दिया गया, तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई। ऑडिशन बढ़े, काम कम हुआ और घर की बचतें धीरे-धीरे रेत की तरह उंगलियों से फिसलने लगीं। दोस्त भी किनारा कर गए। ऐसे वक्त में जो शख्स उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा, वह थीं नसरीन।
चार सर्जरी के बाद भी पति का देती रहीं साथ
शारिब बताते हैं, ‘मेरी पत्नी ने उस मुश्किल समय में मेरा अविश्वसनीय साथ दिया। उसने अपनी ज्वेलरी तक बेच दी ताकि घर में खाना आ सके। हमारे पास इतना भी नहीं बचा था कि अगले खाने का भरोसा हो। यहां तक कि हमने अपना घर तक बेच दिया। लेकिन उसने कभी मेरा हाथ नहीं छोड़ा।’ जैसे ही शारिब की प्रोफेशनल लाइफ में रोशनी आने लगी, जिंदगी ने एक और प्रहार किया, नसरीन को मुंह का कैंसर हो गया, लेकिन वह केवल एक सर्वाइवर नहीं हैं, वह एक योद्धा हैं। चार बड़ी सर्जरी…फिर भी तीन-चार दिनों में बच्चों के लिए, पति के लिए, घर के लिए फिर से खड़ी हो जाना, यह हिम्मत हर किसी के बस की बात नहीं होती। शारिब आज भी भावुक होकर कहते हैं कि उनकी पत्नी की जीने की इच्छा पहाड़ जैसी है।
सपनों की राख से उठा एक अभिनेता
कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने जब शारिब को नोटिस किया तो उन्हें YRF की फिल्म ‘जब तक है जान’ (2012) में कास्ट कर लिया गया और वही था उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट, लेकिन यह सफर यूं ही नहीं बना। बचपन से एक्टिंग का ख्वाब था, लेकिन मन कहीं और भटका हुआ था। MTV का ‘बकरा’ और स्पूफ कॉन्टेंट करते-करते सपना धुंधला पड़ चुका था, जब तक कि नसरीन ने उसे फिर से चमकाया। शारिब कहते हैं, ‘मेरी पत्नी ने मुझ पर यकीन न किया होता तो मैं कभी एक्टर नहीं बन पाता। हमारे बेटे के जन्म के बाद उसने नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन जब हालात बिगड़े, वही वापस नौकरी पर गई। उसने परिवार भी संभाला, मुझे भी और मेरे टूटे सपनों को फिर से जोड़ दिया।’
शारिब हाशमी की कहानी
यह सिर्फ एक स्ट्रगलिंग एक्टर की कहानी नहीं है। यह दो लोगों की साझेदारी का किस्सा है, जिन्होंने सबसे अंधेरे दिनों में एक-दूसरे की रोशनी बनकर जिंदगी जीती। शारिब शायद आज करोड़ों दिलों को हंसाते-रुलाते हों, लेकिन उनके लिए असली हीरो तो घर पर बैठी वह महिला है, जिसने भूख, कर्ज, बीमारी, सबके सामने खड़े होकर कहा, ‘अगर तुम करना चाहते हो तो मैं तुम्हारे साथ हूं।’ और बस…वहीं से शुरू हुई एक्टर शारिब हाशमी की असली कहानी।
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