‘क्या घुसपैठियों का लाल कालीन बिछाकर स्वागत करें’, रोहिंग्याओं के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सख्त सवाल


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सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्याओं के मुद्दे को तीन हिस्सों में बांटकर सुनवाई का फैसला किया है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रोहिंग्याओं की भारत में कानूनी हैसियत पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने पूछा कि क्या ‘घुसपैठियों का लाल कालीन बिछाकर स्वागत’ किया जाए, जबकि देश के अपने लाखों गरीब नागरिक भुखमरी और बदहाली का शिकार हैं। चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की बेंच मानवाधिकार कार्यकर्ता रीता मांचंदा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मई महीने में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्याओं को पकड़ा था और अब उनके ठिकाने का कोई पता नहीं है।

‘क्या हम कानून को इस हद तक लचीला बना दें?’

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने तल्ख लहजे में कहा, ‘अगर उनके पास भारत में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वे घुसपैठिए हैं तो क्या हम लाल कालीन बिछाकर उनका स्वागत करें कि आइए, हम आपको सारी सुविधाएं देंगे? पहले आप अवैध तरीके से सीमा पार करते हैं। सुरंग खोदकर या तार काटकर भारत में घुसते हैं। फिर कहते हैं कि अब मैं आ गया हूं, तो अब भारत के कानून मेरे ऊपर लागू हों, मुझे खाना दो, रहने की जगह दो, मेरे बच्चों को पढ़ाई दो। क्या हम कानून को इस हद तक लचीला बना दें?’

‘हमारे देश में अपने लाखों गरीब लोग हैं’

चीफ जस्टिस ने देश के गरीब नागरिकों का हवाला देते हुए कहा, ‘हमारे देश में अपने लाखों गरीब लोग हैं। वे नागरिक हैं। क्या उन्हें सुविधाएं और लाभ नहीं मिलने चाहिए? पहले उन पर ध्यान दो। ये सच है कि अवैध घुसपैठिए भी हों तो उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर नहीं करना चाहिए, लेकिन आप हैबियस कॉर्पस मांग रहे हो कि उन्हें वापस लाओ।’ बेंच ने कहा कि अगर वापस लाकर दोबारा छोड़ने की बात होगी तो लॉजिस्टिक दिक्कतें आएंगी। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने 2020 के एक पुराने आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या को सिर्फ कानूनी प्रक्रिया के तहत ही डिपोर्ट किया जाए। 

कोर्ट ने रोहिंग्याओं को लेकर क्या सवाल उठाए?

केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका प्रभावित व्यक्ति ने नहीं, बल्कि किसी तीसरे पक्ष ने दाखिल की है, इसलिए याचिकाकर्ता का कोई लोकस (हक) नहीं बनता। कोर्ट ने रोहिंग्या से जुड़े सारे मामलों को 3 हिस्सों में बांट दिया है और प्रत्येक बुधवार को इस पर अलग-अलग सुनवाई होगी। कोर्ट ने मुख्य सवाल उठाए:

  1. क्या रोहिंग्या शरणार्थी (रिफ्यूजी) हैं या अवैध घुसपैठिए?
  2. अगर शरणार्थी हैं तो उन्हें क्या अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए?
  3. अगर अवैध घुसपैठिए हैं तो केंद्र और राज्यों का उन्हें डिपोर्ट करना सही है या नहीं?
  4. क्या उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत में रखा जा सकता है या जमानत पर छोड़ा जाए?
  5. जो कैंपों में रह रहे हैं, उन्हें पीने का पानी, शौचालय, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए या नहीं?

16 दिसंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई

कोर्ट ने पहले भी कई बार साफ कहा है कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी UNHCR का कार्ड भारत के कानून में कोई वैध दस्तावेज नहीं माना जाता। बीते 16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कुछ याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई थी, जिन्होंने दावा किया था कि 43 रोहिंग्याओं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, को म्यांमार डिपोर्ट करने के लिए अंडमान सागर में छोड़ दिया गया था। कोर्ट ने कहा था, ‘जब देश मुश्किल समय से गुजर रहा है, तो आप हवा-हवाई बातें लेकर आ रहे हैं।’ 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर देश में रोहिंग्या भारतीय कानूनों के तहत विदेशी पाए जाते हैं, तो उन्हें डिपोर्ट करना होगा। इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 दिसंबर को होगी। (PTI)

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