
के शिवराम।
सिनेमा की चमक-दमक और ग्लैमर हर किसी को लुभाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो इसकी रौशनी में निखरते हुए देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में भी अपनी अलग पहचान बना पाते हैं। के. शिवराम ऐसी ही एक प्रेरणादायक शख्सियत रहे हैं। एक नाम जिसने भारतीय प्रशासनिक सेवा, कन्नड़ सिनेमा और राजनीति, तीनों ही क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने पहले आईएएस अधिकारी बनने का सपना पूरा किया, फिर फिल्मों में कदम रखा और अंत में राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई। हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले के शिवराम का सफर कैसा रहा, चलिए आपको बताते हैं।
शुरुआती जीवन और पहली नौकरी
6 अप्रैल 1953 को कर्नाटक के रामनगर ज़िले के छोटे से गांव उरगाहल्ली में जन्मे शिवराम का बचपन संघर्षों से भरा था, पर सपने विशाल थे। स्थानीय स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि आगे बढ़ने के लिए कौशल और अनुशासन दोनों जरूरी हैं। इसी वजह से उन्होंने टाइपिंग और शॉर्टहैंड जैसे कौशल सीखे ताकि सरकारी नौकरी हासिल कर जीवन को संवार सकें। वर्ष 1973 में उन्होंने कर्नाटक राज्य पुलिस की खुफिया इकाई में काम शुरू किया, लेकिन उनकी मंजिल इससे कहीं आगे थी।
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ऐसे पूरा किया IAS बनने का सपना
शिवराम का असली लक्ष्य था UPSC परीक्षा पास करके आईएएस बनना। निरंतर मेहनत और दृढ़ता के बल पर उन्होंने 1986 में यह परीक्षा उत्तीर्ण की। खास बात यह रही कि वे कन्नड़ भाषा में UPSC पास करने वाले पहले अभ्यर्थी बने, जो कन्नड़ भाषी समुदाय के लिए भी गौरव का क्षण था। अपनी सेवा अवधि में उन्होंने बीजापुर, बेंगलुरु, मैसूर, कोप्पल और दावणगेरे जैसे जिलों में काम किया। जन शिक्षा आयुक्त, खाद्य आयुक्त और कर्नाटक सरकार की एमएसआईएल कंपनी के प्रबंध निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्होंने उत्कृष्ट प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया।
फिल्मों में अभिनय
प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ वे जनता से करीब जुड़े रहे, लेकिन उनकी प्रतिभा केवल दफ्तरों तक सीमित नहीं थी। 1993 में उन्होंने कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में ‘बा नल्ले मधुचंद्रके’ से डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने ‘वसंत काव्य’, ‘कलानायक’, ‘नागा’, ‘जय’, और ‘टाइगर’ जैसी फिल्मों में काम किया। उनका अभिनय सहज और प्रभावी था, जो दर्शकों को बेहद पसंद आया।
राजनीतिक सफर और निधन
सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा। शुरुआत कांग्रेस से की, फिर जनता दल (सेक्युलर) से जुड़े और 2014 में बीजापुर से लोकसभा चुनाव भी लड़ा। हालांकि वे चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन राजनीति से पीछे नहीं हटे और बाद में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, जहां उन्हें राज्य कार्यकारी समिति का सदस्य बनाया गया। फरवरी 2024 में 70 वर्ष की आयु में के. शिवराम का निधन हो गया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत से एक व्यक्ति एक नहीं, बल्कि कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल कर सकता है। उनकी कहानी आज भी अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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