ट्रंप का लंच मुनीर को पड़ने लगा भारी, अमेरिका ने गाजा में मांग ली पाकिस्तान से सेना; हां किया तो जीना मुश्किल…ना किया तो ठनी दुश्मनी


ह्वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अगल-बगल खड़े पाकिस्तानी पीएम शहबाज (दाएं) और बाएं आर्मी - India TV Hindi
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ह्वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अगल-बगल खड़े पाकिस्तानी पीएम शहबाज (दाएं) और बाएं आर्मी चीफ असीम मुनीर।

वाशिंगटनः पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर को ह्वाइट में जाकर कुछ महीने पहले लंच करना अब भारी पड़ने वाला है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने असीम मुनीर से अब ऐसी मांग कर दी है, जिसे न तो वह इनकार कर पा रहे हैं और न ही स्वीकार कर पा रहे हैं। पाकिस्तान के लिए ट्रंप की इस मांग को पूरा करना या उससे पीछे हटना एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाईं वाली स्थिति पैदा करता है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर सीडीएफ बनने के बाद पहली बार सबसे कठिन लिटमस टेस्ट से गुजर रहे हैं। दरअसल अमेरिका ने पाकिस्तान से गाजा में अपना 20 सूत्रीय शांति प्लान लागू करने के क्रम में मुनीर से अपनी सेना भेजने की मांग कर दी है।

क्या करेंगे मुनीर?

मुनीर के सामने ट्रंप ने अब करो या मरो वाली स्थिति पैदा कर दी है, क्योंकि वाशिंगटन इस्लामाबाद पर गाज़ा स्थिरीकरण बल में सैनिक भेजने का दबाव डाल रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम पाकिस्तान में शहबाज और मुनीर के खिलाफ में भारी विरोध पैदा कर सकता है। सूत्रों के अनुसार मुनीर इस संकट से निपटने और सहूलियत पाने की इच्छा से आने वाले हफ्तों में वाशिंगटन जाने वाले हैं, जहां वह राष्ट्रपति ट्रंप से छह महीनों में तीसरी बार मुलाकात करेंगे। बता दें कि ट्रंप की 20-सूत्री गाज़ा योजना में मुस्लिम देशों से सुरक्षा बलों की मांग की गई है जो युद्ध में तबाह हुए फिलिस्तीनी क्षेत्र में पुनर्निर्माण और आर्थिक पुनरुद्धार के लिए संक्रमण काल की देखरेख करेगा। कई देश हमास को निरस्त्रीकरण के मिशन से सावधान हैं, जो उन्हें संघर्ष में खींच सकता है और उनकी फिलिस्तीन-समर्थक जनता को क्रोधित कर सकता है। इसलिए मुनीर के लिए ट्रंप का यह प्रस्ताव बड़ी चुनौती बन गया है।


पाकिस्तान ने गाजा में नहीं भेजी सेना तो क्या होगी

अगर मुनीर ट्रंप के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं तो यह पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी होगा। पाकिस्तान के इनकार से ट्रंप नाराज हो सकते हैं। ऐसे में पाकिस्तान को मिलने वाली सभी तरह की सहायता और सहूलियतें अमेरिका की ओर से खत्म की जा सकती हैं। साथ ही पाकिस्तान पर फिर कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं। पाकिस्तान लंबे समय से अमेरिकी निवेश और सुरक्षा सहायता चाहता है, जो पहले निलंबित रही। मगर अब ट्रंप-मुनीर के संबंधों से यह बहाल होने लगी थी। ऐसे में पाकिस्तान को निवेश और सुरक्षा सहायता में बड़ा झटका लग सकता है। 


गाजा में उतरी मुनीर की सेना तो पाकिस्तान को होगा क्या नुकसान

अब अगर मुनीर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बात मान लेते हैं तो इसका सबसे बड़ा नुकसान अपने देश में ही इस्लामिस्ट पार्टियों के विरोध का उठाना पड़ेगा। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान में फिलिस्तीन-समर्थक भावनाएं मजबूत हैं। ऐसे में अमेरिका-समर्थित योजना, जिसमें हमास को निरस्त्रीकरण करने का प्रस्ताव है…इसमें पाकिस्तान के शामिल होने से इस्लामिस्ट पार्टियों के व्यापक प्रदर्शन से हिंसा भड़क सकती है। इसके अलावा इस फैसले से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी और जनता का गुस्सा मुनीर के खिलाफ बढ़ेगा। इसके अलावा रणनीतिक रूप से पाकिस्तान की अफगानिस्तान सीमा पर चल रही उग्रवाद-विरोधी लड़ाई प्रभावित होगी। साथ ही ऐसा करने पर पाकिस्तान को मुस्लिम दुनिया में आलोचना का शिकार भी होना पड़ेगा, क्योंकि कई मुस्लिम देश इस ट्रंप के इस मिशन से सतर्क हैं। वजह साफ है अमेरिका का इजरायल से लगावा ज्यादा है। ऐसे में पाकिस्तान अकेला इस राह पर आगे बढ़ा तो अपने देश समेत मुस्लिम देशों में भी उसे भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में पाकिस्तान अपनों के ही बीच अलग-थलग पड़ सकता है। 

मुनीर का लिटमस टेस्ट

ऐसे में ट्रंप के प्रस्ताव को स्वीकार करना या इसे इनकार करना मुनीर के लिए “दोहरी तलवार” है। यह मुनीर का सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट है, जिसमें मुनीर को दोनों तरफ से फेल ही होना है। पाकिस्तान ट्रंप की बात को इनकार भी नहीं कर पाएगा, क्योंकि ऐसा करने पर वह अमेरिकी समर्थन से होने वाले दीर्घकालिक लाभ को खो देगा। ऐसे में पाकिस्तान को बड़े आर्थिक और तत्काल घरेलू संकट का जोखिम हो जाएगा। वहीं दूसरी तरह गाजा में सेना भेजने से उसकी इस्लामवादी छवि कमजोर पड़ेगी। वह अपने ही मुस्लिम देशों के बीच और पाकिस्तान में भारी विरोध की आग में जल उठेगा। 

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