कौन है तारिक रहमान, जिन्हें कहा जा रहा बांग्लादेश की राजनीति का ‘क्राउन प्रिंस’, जानें भारत के बारे में कैसी है उनकी सोच?


तारेक रहमान, चेयरमैन (बीएनपी)- India TV Hindi
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तारेक रहमान, चेयरमैन (बीएनपी)

ढाका: बांग्लादेश की राजनीति में उस्मान हादी की हत्या के बाद फिर बृहस्पतिवार को एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक चेयरमैन तारिक रहमान 17 वर्षों के लंबे निर्वासन के बाद लंदन से स्वदेश लौट आए हैं। उन्हें बांग्लादेश की तेजी से बदलती परिस्थितियों के बीच देश का “क्राउन प्रिंस” कहा जा रहा है। आइये जानते हैं कि तारिक रहमान हैं कौन और भारत के बारे में वह किस प्रकार की सोच रखते हैं?

कौन हैं तारिक रहमान

तारिक रहमान बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति रहे जियाउर रहमान और तीन बार प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया के बड़े बेटे हैं। तारिक रहमान को बांग्लादेश की राजनीति का ‘क्राउन प्रिंस’ कहा जा रहा है। वैसे तो उनकी वापसी फरवरी 2026 में संसदीय चुनावों के दौरान होने वाली थी, लेकिन बदली परिस्थितियों के बीच वह 25 दिसंबर को ही ब्रिटेन से वापस आ गए। बांग्लादेश वापसी करने से पहले तारिक रहमान 17 साल का निर्वसन झेल चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग पर बैन लगाए जाने और चुनावों में उनकी गैर-मौजूदगी की संभावनाओं के साथ खालिदा जिया की गंभीर हालत के चलते अब तारिक रहमान को ही देश का अगला किंग माना जा रहा है। ऐसे में बांग्लादेश की राजनीति में उनका कद बढ़ गया है।

बीएनपी के हाथ सत्ता जाने का अनुमान

आवामी लीग पर बैन के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि बीएनपी बांग्लादेश की नई सत्ताधारी पार्टी बन सकती है। बीएनपी की अध्यक्ष खालिदा जिया लंबे समय से बीमार हैं और उनकी हालत लगातार नाजुक बनी है। ऐसे में उनके बेटे तारिक रहमान को पार्टी का कार्यवाहक चेयरमैन बना दिया गया है। इस बार के चुनाव में बीएनपी को मजबूत दावेदार माना जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद बीएनपी का कद और बढ़ गया है। ऐसे में तारिक रहमान को अगला प्रधानमंत्री बनने का प्रबल दावेदार बताया जा रहा है।

कब से राजनीति में सक्रिय हुए तारिक

तारिक रहमान का जन्म 20 नवंबर 1965 को हुआ था। उनके पिता जियाउर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेताओं में से एक थे, जिन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में राष्ट्रपति बने। हालांकि 1981 में उनकी हत्या कर दी गई, जब तारेक मात्र 15 वर्ष के थे। पति की हत्या के बाद तारिक की मां खालिदा जिया ने बीएनपी की कमान संभाली और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। तारिक ने ढाका विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पढ़ाई की और 23 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया। 2000 के दशक में वे बीएनपी के प्रमुख चेहरा बनकर उभरे और मां के कार्यकाल में पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बने। उन्हें पार्टी का उत्तराधिकारी माना जाता था। 


बांग्लादेश के लिए तारिक रहमान क्यों हो गए इतने महत्वपूर्ण? 

बांग्लादेश की राजनीति मुख्य रूप से दो पार्टियों बीएनपी और अवामी लीग के इर्द-गिर्द घूमती है। 2024 में छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद शेख हसीना की सरकार गिर गई और वे भारत भाग आईं। इसके बाद अंतरिम सरकार के तहत अवामी लीग पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंध लगा दिया गया। इस परिस्थिति में बीएनपी सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। अभी तक तारिक रहमान 2008 से लंदन में निर्वासन में थे, जहां से उन्होंने पार्टी का नेतृत्व किया।

2018 से ही वे पार्टी के कार्यवाहक चेयरमैन हैं। निर्वासन के दौरान उनपर भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और 2004 के ग्रेनेड हमले जैसे कई मामले दर्ज थे, लेकिन 2024-2025 में अदालतों ने उन्हें सभी 84 मामलों में उनको बरी कर दिया। उनकी वापसी को बीएनपी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरने वाला बताया जा रहा है। पार्टी का दावा है कि लाखों समर्थक उनकी अगवानी के लिए जुटे। विश्लेषक मानते हैं कि तारेक की मौजूदगी चुनाव में बीएनपी को बहुमत दिला सकती है, क्योंकि वे युवा और उदारवादी छवि वाले नेता हैं। उनकी मां खालिदा जिया की स्वास्थ्य स्थिति खराब है, इसलिए तारेक ही पार्टी का मुख्य चेहरा होंगे।

भारत के बारे में क्या सोचते हैं तारिक रहमान? 

बांग्लादेश-भारत संबंध हमेशा संवेदनशील रहे हैं। अभी तक बांग्लादेश की सत्ता में रही अवामी लीग पार्टी और शेख हसीना को भारत समर्थक माना जाता था, जबकि बीएनपी के साथ संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। शेख हसीना के भारत में शरण लेने के बाद दोनों देशों के संबंध और खराब हो गए। तारिक रहमान ने हाल के साक्षात्कारों में स्पष्ट कहा है कि उनकी विदेश नीति “बांग्लादेश फर्स्ट” पर आधारित होगी। उन्होंने नारा दिया: “न दिल्ली, न पिंडी, बांग्लादेश सबसे पहले।” इसका मतलब है कि वे न भारत और न पाकिस्तान के साथ अंधाधुंध गठबंधन चाहते हैं, बल्कि बांग्लादेश के हित सर्वोपरि होंगे। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “अगर भारत एक तानाशाह को शरण देकर बांग्लादेशी लोगों की नाराजगी मोल लेता है, तो हम कुछ नहीं कर सकते।” वे तीस्ता जल बंटवारे जैसे मुद्दों पर बांग्लादेश के अधिकारों की बात करते हैं। हालांकि, हाल के संकेत सकारात्मक हैं। 

क्या बीएनपी की भारत के प्रति बदल सकती है सोच

अभी तक बीएनपी की सोच भारत के प्रति कट्टर रही है। ऐसे में सवाल यह है कि अगर वह सत्ता में आई तो क्या भारत के प्रति बीएनपी की सोच बदल सकती है?…बता दें कि बांग्लादेश में तेजी से बदल रही परिस्थितियों पर भारत भी पैनी नजर रख रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खालिदा जिया के स्वास्थ्य पर चिंता जताने के साथ मदद की पेशकश भी कर चुके हैं। इस पर बीएनपी भी आभार व्यक्त कर चुकी है। कई भारतीय विश्लेषक मानते हैं कि अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के बाद बीएनपी एक उदार और लोकतांत्रिक विकल्प हो सकती है।

ऐसे भारत को उम्मीद है कि तारिक की सरकार क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग बनाए रखेगी। तारेक की वापसी बांग्लादेश की राजनीति में नया अध्याय खोलेगी। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस से उनकी लंदन में मुलाकात हो चुकी है। चुनाव सुधार और लोकतंत्र की बहाली उनके एजेंडे में हैं। लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। क्योंकि जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी दल प्रतिद्वंद्वी हैं और देश में अस्थिरता कायम है। 

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