
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया।
ढाका: बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और मुस्लिम दुनिया की दूसरी महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया ने दशकों तक अपने देश की राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा। उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना के साथ सियासी लड़ाई हमेशा चर्चा में रही। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी कि BNP की लंबे समय से प्रमुख रहीं खालिदा जिया 3 बार प्रधानमंत्री बनीं। उन्होंने मंगलवार सुबह ढाका में लंबी बीमारी के बाद 80 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उनके समर्थक उन्हें 1975 से चले सैन्य या अर्ध-सैन्य शासन के बाद देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिए याद करते हैं। खालिदा जिया ने 1990 के दशक और 2000 की शुरुआत में बांग्लादेश की राजनीति पर खासा प्रभाव डाला था।
4 दशकों से ज्यादा लंबी रही सियासी यात्रा
खालिदा जिया की राजनीतिक यात्रा 4 दशकों से ज्यादा लंबी रही, जिसमें कभी वह ऊंचाइयों पर पहुंची तो कभी उन्हें गिरावट का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने एक बड़ी पार्टी का नेतृत्व किया, देश की सत्ता संभाली, लेकिन उनकी पहचान भ्रष्टाचार से भी हुई। खालिदा जिया का सार्वजनिक जीवन में आना एक संयोग माना जाता है। 35 साल की उम्र में विधवा होने के एक दशक बाद वह प्रधानमंत्री बनीं, लेकिन राजनीति में उनका प्रवेश किसी प्लानिंग के तहत नहीं हुई थी। सियासत से खालिदा का परिचय उनके पति राष्ट्रपति जियाउर रहमान की 30 मई 1981 को हुए एक असफल सैन्य विद्रोह में हत्या के बाद हुआ।
तेजी से BNP के शीर्ष पर पहुंची थीं खालिदा
जियाउर रहमान एक सैन्य तानाशाह से राजनेता बने थे। इससे पहले खालिदा सिर्फ एक जनरल की पत्नी और फिर फर्स्ट लेडी के रूप में जानी जाती थीं। लेकिन जल्द ही वह अपने पति द्वारा 1978 में बनाई गई पार्टी BNP की शीर्ष नेता बन गईं। 3 जनवरी 1982 को वह पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं। इसके बाद मार्च 1983 में उपाध्यक्ष और मई 1984 में चेयरपर्सन बनीं। चेयरपर्सन का पद उन्होंने अपनी मौत तक संभाला। सियासत की दुनिया में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना रहीं, जो अवामी लीग की प्रमुख हैं। 1982 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एचएम इरशाद के सैन्य तख्तापलट के बाद, खालिदा ने लोकतंत्र बहाल करने के लिए आंदोलन शुरू किया।
चुनाव के बहिष्कार ने बना दिया लोकप्रिय
1986 में इरशाद ने राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा की, जिसके खिलाफ खालिदा की बीएनपी गठबंधन और हसीना की अवामी लीग के 15-पार्टी गठबंधन ने विरोध किया। दोनों गठबंधनों ने शुरू में चुनाव का बहिष्कार किया, लेकिन अवामी लीग, कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य दलों ने बाद में इसमें हिस्सा ले लिया। खालिदा के गठबंधन ने बहिष्कार जारी रखा। इरशाद ने हसीना को घर में नजरबंद कर दिया और मार्च के चुनाव में जबरदस्त धांधली के बाद राष्ट्रपति बने। वह जतिया पार्टी के उम्मीदवार थे।’ इधर खालिदा की लोकप्रियता 1986 के चुनाव बहिष्कार के बाद बहुत बढ़ गई थी।

खालिदा जिया की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना रहीं।
1991 के चुनावों में दर्ज की शानदार जीत
दिसंबर 1990 में इरशाद शासन के जाने के बाद मुख्य न्यायाधीश शहाबुद्दीन अहमद की अगुवाई वाली कार्यवाहक सरकार ने फरवरी 1991 में चुनाव कराए। इन चुनावों में बहुमत के साथ BNP की जीत ने तमाम सियासी पंडितों को हैरान कर दिया क्योंकि उनकी नजर में अवामी लीग जीत की सबसे प्रबल दावेदार थी। नई संसद ने संविधान में बदलाव किया, राष्ट्रपति प्रणाली से संसदीय प्रणाली में बदलाव हुआ, और खालिदा बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वह मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो के बाद दूसरी महिला प्रधानमंत्री थीं।
जब भ्रष्टाचार के आरोप गिरफ्तार हुईं खालिदा
1996 में BNP फिर सत्ता में आई, लेकिन सरकार सिर्फ 12 दिन चली क्योंकि अवामी लीग ने सड़क पर जोरदार विरोध किया। खालिदा की सरकार ने कार्यवाहक सरकार का सिस्टम शुरू करके इस्तीफा दे दिया। जून 1996 के नए चुनाव में BNP हार गई, लेकिन 116 सीटें जीतकर देश के सियासी इतिहास की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी। 1999 में खालिदा ने 4-पार्टी गठबंधन बनाया और तत्कालीन सत्ताधारी अवामी लीग सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया। 2001 में वह फिर प्रधानमंत्री चुनी गईं। 2006 में खालिदा ने पद छोड़ दिया और कार्यवाहक प्रशासन को सत्ता सौंप दी। सितंबर 2007 में खालिदा को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया जिसे उनकी पार्टी ने निराधार करार दिया।
1960 में की कैप्टन जियाउर रहमान से शादी
खालिदा का जन्म 15 अगस्त 1946 को अविभाजित भारत के दीनाजपुर जिले में तैया और इस्कंदर मजूमदार के घर हुआ। उनके पिता जलपाईगुड़ी से चाय का कारोबार चलाते थे और विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान या आज के बांग्लादेश चले गए। 1960 में उन्होंने कैप्टन जियाउर रहमान से शादी की, जो बाद में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। 1983 में जब खालिदा BNP की प्रमुख बनीं, तो पार्टी के कई नेता और समर्थक नई चेयरपर्सन को लेकर अनिश्चित थे। 1982 के तख्तापलट से पार्टी राजनीतिक अलगाव में थी, लेकिन उन्होंने पार्टी को मजबूत किया और अवामी लीग के साथ मिलकर इरशाद शासन के खिलाफ लंबा आंदोलन चलाया।
कभी किसी सीट पर चुनाव नहीं हारीं खालिदा
खालिदा जिया चुनावी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगता है कि वह कभी किसी चुनाव में अपनी सीट नहीं हारीं। वह 1991, 1996 और 2001 के चुनावों में 5 अलग-अलग संसदीय क्षेत्रों से चुनी गईं, जबकि 2008 में वह उन तीनों क्षेत्रों से जीतीं जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा। 2008 के चुनाव से पहले, नामांकन पत्र के साथ दिए गए हलफनामे में खालिदा ने खुद को स्व-शिक्षित बताया। हालांकि, BNP की वेबसाइट पर लिखा गया है कि उन्होंने दीनाजपुर गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल और सुरेंद्र नाथ कॉलेज में पढ़ाई की थी। अपने आखिरी 15 सालों में खालिदा मुख्य विपक्षी नेता के तौर पर शेख हसीना के शासन को ‘तानाशाही’ करार देती रहीं और भ्रष्टाचार के आरोपों से भी लड़ती रहीं।

खालिदा जिया का बांग्लादेश की सियासत में असर लंबे समय तक रहा।
राष्ट्रपति से माफी मिलने के बाद रिहा हुईं खालिदा
8 फरवरी 2018 को उन्हें जिया ऑर्फनेज ट्रस्ट मामले में 5 साल की सजा सुनाई गई और बाद में जिया चैरिटेबल ट्रस्ट मामले में 7 साल की सजा मिली। 2024 में, हसीना के सत्ता से हटने के एक दिन बाद, खालिदा को राष्ट्रपति से माफी मिल गई और वह रिहा हो गईं। अगले दिन खराब सेहत के बावजूद उन्होंने एक बड़ी रैली के साथ राजनीति में वापसी की, जिससे BNP में नई जान आ गई। उनके बेटे और उत्तराधिकारी तारिक रहमान, जो फिलहाल BNP के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, हाल ही में 2008 से लंदन में स्व-निर्वासन के बाद घर लौटे हैं। उनके दूसरे बेटे आराफात रहमान की 2015 में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी।
PM के रूप में 2 बार भारत आई थीं खालिदा
खालिदा के 1991-1996 के पहले कार्यकाल में भारत से संबंधों कभी कूटनीति को कभी तनाव नजर आया। उनकी सरकार ने ‘लुक ईस्ट’ पॉलिसी अपनाई, जो चीन और इस्लामी देशों से रणनीतिक जुड़ाव की ओर इशारा करती थी, न कि भारत से। उनके दूसरे कार्यकाल में द्विपक्षीय संबंध बहुत बुरी हालत में पहुंच गए और एक तरह से दोनों देशों के रिश्ते लगभग टूटे ही रहे। भारत ने कई मौकों पर बांग्लादेश से चल रहे उग्रवादी समूहों और सीमा पार घुसपैठ पर गहरी चिंता जताई थी। खालिदा ने प्रधानमंत्री के रूप में 1992 और 2006 में 2 बार भारत का दौरा किया और 2012 में विपक्षी नेता के रूप में भारतीय सरकार के निमंत्रण पर एक बार आईं। 2006 की उनकी राजकीय यात्रा में व्यापार और सुरक्षा पर समझौते हुए थे जबकि 2012 की यात्रा का उद्देश्य BNP और नई दिल्ली के बीच संबंध सुधारना था।
