
दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चों के भरण-पोषण को लेकर एक अहम फैसला दिया है।
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि अगर मां की कमाई ज्यादा है, तो भी पिता अपने नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से छूट नहीं सकता। अदालत ने कहा कि बच्चों का पालन-पोषण माता-पिता दोनों की कानूनी, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है। अदालत ने कहा कि किसी एक की ज्यादा कमाई से दूसरे की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती।
मां की दोहरी जिम्मेदारी पर कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर मां की कमाई ज्यादा है और बच्चों की कस्टडी उसके पास है, तो वह पहले से ही कमाने के साथ-साथ बच्चों की प्राथमिक देखभाल करने की दोहरी जिम्मेदारी निभा रही है। ऐसे में पिता अपनी कमाई छुपाकर या तकनीकी बहानों से जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। अदालत ने आगे कहा कि कानून किसी भी कामकाजी मां को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से इतना थकाने की इजाजत नहीं देता कि पिता अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाए।
आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट गया था पति
यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें एक व्यक्ति ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने दिसंबर 2023 में पति को अपने तीनों बच्चों के लिए हर महीने 30 हजार रुपए अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। इस आदेश को सत्र अदालत ने भी सही ठहराया था। हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखते हुए पिता की अपील खारिज कर दी। पति ने हाईकोर्ट में दावा किया कि उसकी मासिक कमाई सिर्फ 9 हजार रुपए है, जबकि पत्नी की कमाई 34,500 रुपए है। उसने कहा कि पत्नी की ज्यादा कमाई होने की वजह से बच्चों का पूरा भार उस पर डालना कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है। पति ने पत्नी पर कानून का दुरुपयोग करने का आरोप भी लगाया।
पत्नी ने अदालत के सामने दी ये दलील
वहीं, पत्नी ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बच्चों की पढ़ाई, देखभाल, इलाज और रोजमर्रा की जरूरतों की सारी जिम्मेदारियां पूरी तरह से उसी पर हैं। उसने तर्क दिया कि बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पिता से कभी खत्म नहीं हो सकती, चाहे मां कितनी भी कमाती हो। अदालत ने पत्नी के तर्कों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पत्नी का व्यवहार निर्भरता का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का भाव दिखाता है। पिता को अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य का एहसास कराना पत्नी का अधिकार है। कोर्ट ने इस फैसले से साफ संदेश दिया कि माता-पिता दोनों को बच्चों की परवरिश में बराबर हिस्सा लेना चाहिए, और कोई भी एकतरफा जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
