गुरु दत्त, एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्माता और एक्टर थे, जो कैमरे के क्लोज-अप, लाइटिंग तकनीक और भावनाओं के हृदयस्पर्शी चित्रण के अपने अनूठे उपयोग के लिए जाने जाते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुरु दत्त ने कई फिल्मों में एक्टिंग से लोगों का मन मोह लिया और 8 हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें 1957 में आई ‘प्यासा’ भी शामिल है। इसे 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में सूचीबद्ध भी किया गया है। 9 जुलाई 1925 को पैदा हुए गुरु दत्त 39 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गए। आज उनकी बर्थ एनिवर्सरी है, ऐसे में हम गुरुदत्त के भारत के महान फिल्म निर्माताओं और एक्टर्स में से एक बनने की यात्रा और उन दुखद परिस्थितियों पर चर्चा करेंगे जिनके कारण उनकी अकेलेपन से मृत्यु हो गई।
वसंत कुमार कैसे बने गुरु दत्त
वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण का जन्म 9 जुलाई 1925 को भारत के वर्तमान कर्नाटक के पादुकोण कस्बे में चित्रपुर सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में हुई एक दुर्घटना के बाद उनका नाम बदलकर गुरु दत्त पादुकोण रख दिया गया, जिसे एक शुभ निर्णय माना जाता है। उनके पिता शिवशंकर राव पादुकोण एक प्रधानाध्यापक और बैंकर थे, जबकि उनकी मां वसंती एक शिक्षिका और लेखिका थीं। मूल रूप से कारवार के रहने वाले गुरु दत्त अपने बचपन में ही भवानीपुर, कोलकाता चले गए, जहां वे बड़े हुए और बांग्ला भाषा में पारंगत हो गए।
टेलीफोन ऑपरेटर से फिल्मों का सफर
1942 में गुरु दत्त ने अल्मोड़ा में उदय शंकर के नृत्य और कोरियोग्राफी स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू की। हालांकि कंपनी की प्रमुख महिला के साथ जुड़ाव के कारण उन्होंने 1944 में पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद उन्हें कोलकाता में लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में नौकरी मिल गई, लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी। कुछ वक्त के बाद वो बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए, जिसके बाद गुरु दत्त के चाचा ने उन्हें तीन साल के अनुबंध के तहत पुणे में प्रभात फिल्म कंपनी में नौकरी दिलवाई। यहीं पर उनकी दोस्ती अभिनेता रहमान और देव आनंद से हुई।
इन फिल्मों ने बनाया क्लासिक एक्टर
साल 1945 में गुरु दत्त ने विश्राम बेडेकर की फिल्म ‘लखरानी’ में अपने अभिनय की शुरुआत की और 1946 में पी.एल. संतोषी की फिल्म हम एक हैं में सहायक निर्देशक और कोरियोग्राफर के रूप में काम किया, जो देव आनंद के अभिनय की शुरुआत थी। बाद में वे देश के सबसे महान फिल्म निर्माताओं में से एक बन गए। ‘कागज के फूल’ (1959), ‘चौदहवीं का चांद’ (1960) और ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम’ (1962) जैसी उनकी उल्लेखनीय फिल्में भारतीय सिनेमा में क्लासिक मानी जाती हैं। गुरु दत्त को साल 2012 में CNN के शीर्ष 25 एशियाई अभिनेताओं में से एक के रूप में माना गया।
कैसी रही मैरिड लाइफ
साल 1953 में गुरु दत्त ने गीता रॉय चौधरी से शादी की, जो एक प्रसिद्ध प्लेबैक सिंगर थीं और उनसे उनकी मुलाकात बाजी (1951) के निर्माण के दौरान हुई थी। परिवार के काफी विरोध के बावजूद, शादी से पहले वे तीन साल तक सगाई के बाद साथ रहे। वे मुंबई के पाली हिल में एक बंगले में रहने लगे और उनके तीन बच्चे हुए, तरुण, अरुण और नीना। हालांकि, उनकी शादी में कुछ परेशानियां थीं, गुरु दत्त की अत्यधिक धूम्रपान, शराब पीने और अनियमित जीवनशैली ने उनके रिश्ते को खराब कर दिया। अभिनेत्री वहीदा रहमान के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों ने मामले को और जटिल बना दिया, जिससे उनका अलगाव हो गया।
जल्दी ही दुनिया को कहा अलविदा
10 अक्टूबर 1964 को गुरु दत्त को बॉम्बे के पेडर रोड पर अपने किराए के अपार्टमेंट में अपने बिस्तर पर मृत पाया गया। रिपोर्टों से पता चला कि उन्होंने शराब में नींद की गोलियां मिला दी थीं, जिससे उनकी मौत हुई। इसे इसके कुछ वक्त बाद ही गीता दत्त का 1972 में 41 वर्ष की आयु में अत्यधिक शराब पीने से लीवर खराब होने के कारण निधन हो गया। गुरु और गीता की मृत्यु के बाद, उनके बच्चों का पालन-पोषण गुरु के भाई आत्मा राम और गीता के भाई मुकुल रॉय ने किया