साल 2024 खत्म हो रहा है और कुछ ही दिन बाद नया साल यानी 2025 शुरू हो जाएगा। शेयर मार्केट के लिहाज से देखें तो यह साल कुछ अच्छा नहीं रहा है। भू-राजनीतिक तनाव, हाई फेड रेट और उच्च वैल्यूएशन जैसे कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जिनके चलते इस साल मार्केट सिर्फ 10% के आसपास ही रिटर्न दे पा रहा है। हालांकि, इस साल स्मॉल और मिडकैप्स स्टॉक्स मार्केट में छाए रहे। लेकिन क्या साल 2025 में भी इनका जलवा कायम रहेगा? आइए जानते हैं।
बड़े बदलाव से गुजर रहा मार्केट
भारतीय शेयर बाजार एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। पहले निवेशक बड़ी कंपनियों के शेयरों में पैसा लगाना पसंद करते थे। अब मिड और स्मॉल कैप सेगमेंट को निवेशक ज्यादा पसंद करने लगे हैं। यही कारण है कि निफ्टी-50 और टॉप कंपनियों में निवेश लगातार गिरता दिखाई दे रहा है। उदाहरण के लिए, FPI के पास 4 साल पहले 1200 शेयरों की होल्डिंग थी, जो अब 1800 शेयरों से ज्यादा की हो गई है। इसी तरह घरेलू म्यूचुअल फंड्स भी अपने पोर्टफोलियो में रिकॉर्ड संख्या में छोटी कंपनियों के शेयर शामिल कर रहे हैं। इसके पीछे वजह है छोटी कंपनियों की आकर्षक वैल्यूएशन और ग्रोथ की बढ़ती संभावनाएं। ऐसे में लॉन्ग टर्म ग्रोथ की तलाश करने वाले निवेशकों के लिए ये शेयर बढ़िया ऑप्शन साबित हो रहे हैं।
Herfindahl-Hirschman Index (HHI) क्या है?
यह इंडेक्स मार्केट कंसनट्रेशन को बताती है। सरल शब्दों में अगर एचएनआई कम हो, तो इसका अर्थ है कि पोर्टफोलियो में शेयरों की अधिक संख्या के साथ लोअर कंसनट्रेशन है। आइए जानते हैं कि यह इंडेक्स इस समय क्या ट्रेंड बता रही है।
इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स : सितंबर तिमाही में एनएसई लिस्टेड कंपनियों में इंस्टीट्यूशनन पोर्टफोलियोज के लिए एचएनआई गिरकर 175 पर आ गई है। यह साल 2001 के बाद से सबसे कम है।
घरेलू म्यूचुअल फंड्स : यहां एचएनआई सिंतबर तिमाही में 137 पर था, जो 25 तिमाही का निम्न स्तर है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक : एफपीआई का एचएनआई सितंबर तिमाही में 217 पर था। यह साल 2001 के बाद से सबसे कम है।
विभिन्न इन्वेस्टर्स ग्रुप्स में एचएनआई में आ रही यह गिरावट मिड और स्मॉल कैप स्टॉक्स की तरफ एक रणनीतिक बदलाव का इशारा करती है, क्योंकि निवेशक मार्केट में ऑल टाइम हाई वैल्यूएशंस के बीच ग्रोथ की तलाश कर रहे हैं।
बढ़ रही है एफपीआई होल्डिंग्स
दिसंबर 2020 से सितंबर 2024 तक एफपीआई ने भारत में अपने निवेश दायरे का काफी विस्तार किया है। इन्होंने अपनी होल्डिंग्स को 1,200 कंपनियों से बढ़ाकर 1,800 से अधिक कंपनियों तक कर दिया है। इस बीच उन कंपनियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, जिनमें एफपीआई की 5% से अधिक हिस्सेदारी है। घरेलू म्यूचुअल फंड्स भी विभिन्न मार्केट कैप्स की कंपनियों में अपने निवेश को लगातार बढ़ा रहे हैं।
क्यों बदल रहा ट्रेंड?
इस नए ट्रेंड के पीछे वजह स्मॉलकैप्स और मिडकैप्स का बेहतर अर्निंग्स ग्रोथ और आकर्षक वैल्यूएशन ऑफर करना है। हालांकि, मिड और स्मॉलकैप्स के वैल्यूएशंस अभी भी बढ़े हुए हैं। लेकिन वे उम्मीद से अधिक अर्निंग्स ग्रोथ और मजबूत ROE से इसकी भरपाई कर देते हैं।
क्या कह रहा है फंड फ्लो?
आइए अब फंड फ्लो को भी देख लेते हैं। अक्टूबर में एफपीआई ने रिकॉर्ड स्तर पर शुद्ध बिकवाली की थी। यह बिकवाली विशेष रूप से टॉप-100 स्टॉक्स में हुई थी। जबकि मार्केट के दूसरे सेगमेंट्स में कुछ खरीदारी देखी गई। यह दिखाता है कि विदेशी निवेशक रणनीतिक डायवर्सिफिकेशन के माध्यम से स्मॉल कैप्स और मिडकैप्स के साथ भारतीय बाजारों में अपने जोखिम को बढ़ा रहे हैं।
निष्कर्ष
भारतीय शेयर बाजार में डायवर्सिफिकेशन का यह ट्रेंड निवेश रणनीतियों की परिपक्वता को दर्शाता है। जहां घरेलू और विदेशी दोनों निवेशक ट्रेडिशनल लार्जकैप स्टॉक से इतर संभावनाएं देख रहे हैं। यह ट्रेंड न केवल बाजार की स्टेबिलिटी को सपोर्ट करता है, बल्कि मिड और स्मॉल कैप सेगमेंट में भी ग्रोथ को बढ़ावा देता है। हालांकि, निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि कुछ उद्योगों में सेक्टोरल कंसनट्रेशन अलग-अलग बाजार स्थितियों में पोर्टफोलियो मैनेजमेंट के लिए रिसर्च का काम बढ़ा देती है।