
Thailand–Cambodia Border Row
Thailand–Cambodia Border Row: थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद पुराना है। विवाद क्या है और अब तक क्या हुआ है इस बारे में हम आपको आगे बताएंगे। शुरुआत अब 28 मई 2025 की तारीख से करते हैं जब दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर भिड़ गईं। इस झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत भी हो गई। सैनिक की मौत के बाद मामला बढ़ गया। इस बीच थाईलैंड की सेना ने बॉर्डर क्रॉस करने पर रोक लगा दी और देश में आने-जाने वालों पर प्रतिबंध लगा दिया। यह प्रतिबंध सिर्फ थाई लोगों के लिए नहीं बल्कि विदेशी नागरिकों पर भी लागू हुआ। थाईलैंड की इस हरकत पर कंबोडिया भड़क गया और जवाब में कंबोडिया ने थाई फिल्मों पर रोक लगा दी। फल-सब्जियां, गैस और फ्यूल जैसे तामाम समानों के इंपोर्ट पर रोक लगा दी। व्यापार ठप, रास्ते बंद हुए तो अब यहां चीन की एंट्री हुई।
चीन ने की मध्यस्थता की पेशकश
थाईलैंड में एक फोन कॉल को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। इस फोन कॉल के बारे में हम आपको आगे बताएंगे लेकिन उससे पहले जान लीजिए कि इस विवाद में चीन क्यों ‘चौधरी’ बनने लगा। दरअसल, सैन्य गतिरोध से शुरू हुआ विवाद टकराव कूटनीतिक और राजनीतिक संकट में बदल गया। दोनों पक्षों की ओर से बयानबाजी की बाढ़ आ गई। ऐसे समय में चीन ने मध्यस्थता की पेशकश की है और बातचीत का आह्वान किया। चीन ने खुद को एक तटस्थ पक्ष के रूप में पेश किया और कहा कि वह दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
चीन ने कंबोडिया में किया है भारी निवेश
कुआलालंपुर में आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने कंबोडियाई और थाई समकक्षों के साथ अलग-अलग वार्ता की। दोनों बैठकों में, उन्होंने संयम बरतने का आग्रह किया और कहा कि बीजिंग “निष्पक्ष रुख बनाए रखने” और बातचीत को सुगम बनाने के लिए तैयार है। इस बीच थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद में चीन की एंट्री को दक्षिण पूर्व एशिया में प्रभाव बढ़ाने और अस्थिरता को रोकने के उसके व्यापक प्रयास के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। वैस बता दें कि, चीन ने कंबोडिया में भारी निवेश किया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर, बंदरगाहों, सड़क परियोजनाओं और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में। यह निवेश चीन को एक रणनीतिक लाभ देता है ताकि वह कंबोडिया की विदेश नीति को प्रभावित कर सके। थाईलैंड के मुकाबले चीन की पकड़ कंबोडिया पर कहीं अधिक मजबूत है। चीन कंबोडिया को हथियारों की आपूर्ति करता है और संयुक्त सैन्य अभ्यास भी आयोजित करता है। यह थाईलैंड के लिए चिंता का विषय रहा है, जो स्वयं अमेरिका का परंपरागत सहयोगी है।
क्या है सीमा विवाद
चलिए अब आपको बताते हैं कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद क्या है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 817 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसे फ्रांस ने तय किया था। 1863 से 1953 तक कंबोडिया पर फ्रांस का शासन था। जब फ्रांसीसी गए तो अपनी मर्जी के हिसाब से बॉर्डर भी तय कर गए और पीछे छोड़ दिया विवाद। 1907 में दोनों देशों की सीमा से जुड़ा मैप जारी किया गया लेकिन थाईलैंड ने इसे मानने से इनकार कर दिया क्योंकि इस मैप में 11वीं सदी के प्रेह विहियर टेंपल को कंबोडिया में दिखाया गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में 800 सीढ़ियां हैं और यह फिलहाल UNESCO की हेरिटेज साइट में भी आता है। थाईलैंड का कहना था कि मंदिर हमारी सीमा के अंदर होना चाहिए। कंबोडिया का कहना है कि मंदिर हमारा है।
इंटरनेशनल कोर्ट पहुंचा मामला
साल 1959 में कंबोडिया इस मामले को इंटरनेशनल कोर्ट तक ले गया। 1962 में फैसला आया कि मंदिर कंबोडिया की ही सीमा में आएगा। थाईलैंड ने यह फैसला मान लिया लेकिन यह भी कहा कि आसपास के इलाके अभी भी विवादित ही हैं। सबकुछ ठीक चल रहा था कि 2008 में इस मंदिर को UNESCO से वर्ल्ड हेरिटेज की मान्यता मिल गई। इसके बाद दोनों देशों के बीच विवाद फिर बढ़ गया। 2011 तक सीमा पर टकराव देखने को मिला जिसके चलते 30 हजार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।
वो फोन कॉल जिसने मचा दिया बवाल
सीमा विवाद और चीन वाला एंगल तो आपने जान लिया। चलिए अब आपको उस फोन कॉल के बारे में बताते हैं जिससे थाईलैंड का सियासी पारा चढ़ गया। दरअसल, थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद बढ़ा तो थाईलैंड की पीएम पाइतोंग्तार्न शिनवात्रा ने कंबोडिया के नेता हुन सेन को फोन घुमा दिया। हुन सेन पीएम हुन मानेट के पिता हैं और सरकार में अच्छा खासा दबदबा रखते हैं। लेकिन, मोड़ तब आया जब दोनों की कॉल रिकॉर्डिंग लीक हो गई और बस फिर यही बवाल का कारण बन गया। इस बातचीत में शिनवात्रा बेहद विनम्र नजर आईं। उन्होंने हुन सेन को ‘अंकल’ कह दिया और कहा कि वो जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा। इतना ही नहीं शिनवात्रा ने देश के मिलिट्री कमांडर की आलोचना भी कर दी। इस कॉल रिकॉर्डिंग ने लोगों में गुस्से को भड़का दिया।
जानें क्या है चीन का खेल?
अब बात वहीं आती है है कि चीन की मंशा क्या है तो इसे ऐसे समझते हैं। थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद में चीन की भूमिका बैकडोर डिप्लोमेसी जैसी है। वह सीधे हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन झुकाव कंबोडिया की ओर होना लाजमी है। चीन की मंशा साफ है, दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना दबदबा बनाए रखना, अमेरिका की मौजूदगी को चुनौती देना और क्षेत्रीय राजनीति को अपने पक्ष में मोड़ना।
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