
महावतार नरसिम्हा ही नहीं हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु को लेने पड़े थे कई अवतार
आपने भी बचपन में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कहानियां जरूर सुनी होंगी लेकिन कम ही लोग ये जानते होंगे कि भगवान विष्णु ने राक्षस हिरण्यकश्यप को मारने के लिए तीन बार धरती पर जन्म लिया था। ऐसा राक्षस हिरण्यकश्यप को पिछले जन्म में मिले एक श्राप के कारण हुआ था। पौराणिक कथाओं अनुसार राक्षस हिरण्यकश्यप और उसका भाई हिरण्याक्ष पिछले जन्म में बैकुंठ धाम के दो द्वारपाल जय और विजय थे जो भगवान विष्णु की सेवा में लगे रहते थे। कहते हैं कि एक दिन उन्होंने भगवान ब्रह्मा के चार मानस पुत्रों को वैकुंठ में जाने से रोक दिया था तब उन्हें श्राप मिला था कि वे तीन जन्म तक असुर कुल में जन्म लेंगे और भगवान विष्णु के हाथों उनका वध होगा।
श्राप के कारण हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का जन्म
इसी श्राप के चलते जय-विजय अपने अगले जन्म में राक्षस हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में पैदा हुए। इनके पिता महर्षि कश्यप थे और माता का नाम दिति था। महर्षि कश्यप की कई पत्नियों में से एक पत्नी दिति थीं। कहा जाता है कि एक दिन दिति कामातुर हो उठी थीं और उन्होंने महर्षि कश्यप के मना करने के बाद भी गलत समय पर उनके साथ संबंध बना लिया। जिसके परिणामस्वरुप दो दैत्यों हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का जन्म हुआ। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने भाई हिरण्याक्ष के साथ मिलकर दैत्य नगरी बसाई और वहां का राजा बन गया था। दोनों भाईयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया और इंद्र का भी आसन छीन लिया। वह स्वयं को भगवान मानने के लिए लोगों को बाध्य करने लगा और जो ऐसा नहीं करता वो उसे मार देता।
इनके वध के लिए भगवान विष्णु ने लिया वराह और नरसिंह अवतार
तब भगवान विष्णु ने धरती को इन राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए दो अवतार लिए। जिसमें भगवान ने अपना तीसरा अवतार वराह के रूप में लिया और इस अवतार में भगवान ने हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध किया। इसके बाद भगवान ने नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप को मारा।
हिरण्यकश्यप को अगला जन्म रावण के रूप में मिला
पिछले जन्म में मिले श्राप के कारण हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ने फिर से धरती पर जन्म लिया। इस बार हिरण्यकश्यप का जन्म महर्षि विश्रवा के कुल में रावण के रूप में हुआ तो वहीं उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष का जन्म कुंभकरण के रूप में हुआ। फिर त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने श्री राम के रूम में इनका वध किया।
द्वापर युग में शिशुपाल के रूप में लिया जन्म, श्री कृष्ण ने किया अंत
फिर द्वापर युग में जय का जन्म शिशुपाल के रूप में हुआ तो वहीं विजय का जन्म दंतवक्र के रूप में हुआ। इस जन्म में इन दोनों के वध के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण का रूप लिया।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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