बिहार में ताबड़तोड़ हो रहा है नीलगायों का शिकार, जानें शिकारी को मिल रहे हैं कितने पैसे


Bihar nilgai hunting, Bihar farmers crop damage, Nilgai hunting Bihar- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV
बिहार में नीलगायों का शिकार करने के लिए शिकारी नियुक्त किए गए हैं।

पटना: बिहार के कई जिलों में नीलगायों को मारने का सिलसिला जारी है और विचलित कर देने वाली खबरें और तस्वीरें सामने आ रही हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नवादा जिले के 2 गांवों में आज 15 नीलगायों को गोली मार दी गई। बताया जा रहा है कि बंदूकों से लैस शिकारी गांव-गांव घूम रहे हैं और किसान खुद इन शिकारियों की मदद कर रहे हैं। दरअसल, बिहार में नीलगायों का शिकार सरकार की अनुमति से हो रहा है। नीलगाय किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रही हैं। किसानों ने सरकार से इस समस्या से छुटकारा दिलाने की अपील की थी। इसके बाद सरकार ने कई जिलों के जिलाधिकारियों को नीलगायों को मारने का आदेश जारी करने का निर्देश दिया।

नीलगाय को मारने के लिए शिकारी को दिए जाते हैं पैसे

नवादा के डीएम ने 13 शिकारियों को इस काम के लिए नियुक्त किया है। हर नीलगाय को मारने पर शिकारी को 2 हजार रुपये दिए जाते हैं, जबकि उसके शव को ठिकाने लगाने के लिए 7 हजार रुपये का बजट जारी किया गया है। बिहार के 34 जिलों में नीलगायों का आतंक फैला हुआ है। वैशाली, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, गया, बक्सर समेत कई जिलों में ये जानवर हजारों हेक्टेयर में खड़ी फसलों को बर्बाद कर देते हैं। बिहार सरकार किसानों को फसल के नुकसान पर मुआवजे के रूप में प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये देती है, लेकिन नीलगायों की संख्या इतनी ज्यादा है कि मुआवजे से भी किसानों के नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। सिर्फ नवादा में ही एक साल में 50 लाख रुपये की फसल नीलगायों की वजह से खराब हो गई।

नीलगायें मारने के बाद भी नहीं कम हुआ आतंक

किसानों की बर्बादी को देखते हुए बिहार सरकार ने नीलगायों को मारने का आदेश जारी किया। 2024-25 के वित्तीय वर्ष में राज्य के अलग-अलग जिलों में 4 हजार से ज्यादा नीलगायों को मारा गया। इस साल अब तक 2 हजार से ज्यादा नीलगायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है, इसके बावजूद नीलगायों का आतंक कम नहीं हुआ है। वैशाली जिले के गौसपुर इजरा गांव में किसानों ने फसलों को नीलगायों से बचाने के लिए कई उपाय आजमाए। उन्होंने खेतों के चारों तरफ जाल लगाया, लेकिन नीलगाय उसे फांदकर अंदर घुस जाती हैं। कुछ किसानों ने खेतों के आसपास बिजली का करेंट वाला बाड़ा भी लगाया। इससे कुछ गांव वाले खुद करंट का शिकार हो गए, लेकिन नीलगायों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

आलू और गेहूं जैसी फसलों से किया तौबा

किसानों ने बताया कि नीलगायों के डर से उन्होंने मक्का, आलू और गेहूं जैसी फसलें लगाना ही बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर बिहार में फसलों को बचाना है, तो नीलगायों को मारने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। वहीं, पशु अधिकार कार्यकर्ता सरकारी आदेश से नीलगायों को मारने का विरोध कर रहे हैं। इसी मुद्दे पर आज बिहार के वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रमोद चंद्रवंशी ने कहा कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे सरकार को कोई दूसरा विकल्प बताएं। उन्होंने कहा कि अगर कोई बेहतर तरीका मिला, तो सरकार नीलगायों को मारने का आदेश तुरंत वापस ले लेगी।

क्या नीलगाय का गाय से कुछ लेना-देना है?

बता दें कि नीलगाय सिर्फ नाम की गाय है। न तो इसका रंग नीला होता है और न ही यह गौमाता की जाति से है। नीलगाय स्लेटी रंग की होती है, जो देखने में घोड़े जैसी लगती है, लेकिन छलांग हिरण की तरह लगाती है। कानून इसे एक संरक्षित जीव मानता है, इसलिए इसे मारने के लिए प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ती है। समस्या यह है कि नीलगाय से किसानों की फसलों को बहुत नुकसान होता है। नीलगाय जंगलों में रहना पसंद नहीं करती, बल्कि घास के मैदानों में इसके झुंड रहते हैं। लोगों की भावनाएं आहत न हों, इसलिए नीलगाय का नाम बदलने की मांग उठती रही है।





Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *