Supreme Court notice on petition to increase the age of marriage of girls under Muslim Personal Law


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया नोटिस- India TV Hindi

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय महिला आयोग की एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में कहा गया है कि सभी समुदायों की लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल तय की जाए, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो। याचिका अधिवक्ता नितिन सलूजा ने दायर की, जिसमें कहा गया कि पॉक्सो एक्ट, आईपीसी और बाल विवाह निषेध कानून को सभी के लिए एक ही तरह से लागू किया जाय, चाहे धर्म किसी का कुछ भी हो। इसकी सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

मुस्लिम पर्सनल लॉ को छोड़कर सभी धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र 18

इस याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत उन नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के मौलिक अधिकारों को लागू किया जाए, जिन्होंने उम्र से पहले शादी कर ली है। आयोग ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत ‘विवाह योग्य उम्र’ को दंड कानूनों के अनुरूप लाने के लिए एक निर्देश देने की भी मांग की। याचिका में कहा गया, मुस्लिम पर्सनल लॉ को छोड़कर दूसरे धर्मो के पर्सनल लॉ में शादी की न्यूनतम उम्र एक समान है। भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पुरुष के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 साल और लड़की के लिए 18 साल है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिग लड़कियों की हो रही शादी
याचिका में कहा गया है कि भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत प्यूबर्टी यानि युवावस्था प्राप्त करने करने वाली लड़की की शादी 15 वर्ष की आयु में कर दी जाती है, जबकि वे अभी नाबालिग हैं। याचिका के मुताबिक, यह न केवल तर्कहीन और भेदभावपूर्ण है, बल्कि दंड कानूनों के प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है। नाबालिग लड़कियों को यौन अपराधों से बचाने के लिए पॉक्सो एक्ट बनाया गया है। 

बाल विवाह निषेध अधिनियम के बावजूद मुस्लिम पर्सनल लॉ देता है शादी की इजाजत 
तर्क में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अनुसार, जो बलात्कार के लिए है, 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की सहमति किसी भी यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं मानी जाएगी, यह एक दंडनीय अपराध है। ये भी कहा गया कि 21 साल से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत एक दंडनीय अपराध है। इसके मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल लॉ, जो बच्चों को शादी करने की अनुमति देता है, दंड प्रावधानों के हिसाब से गलत है।

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