
इजरायल-ईरान युद्ध।
Explainer: इज़रायल और ईरान के बीच चल रही जंग बहुत भीषण हो चुकी है। दोनों देश एक दूसरे के आर्मी बेस और परमाणु ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन हमले कर रहे हैं। इन दोनों देशों के बीच दशकों से तनाव रहा है, लेकिन हालिया समय में यह संघर्ष भयानक युद्ध की युद्ध की ओर उन्मुख हो चला है। इजरायल और ईरान एक दूसरे के शहरों में एयरस्ट्राइक कर आग लगा रहे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि अगर यह संघर्ष लंबा चलता है तो क्या होगा? इजरायल-ईरान युद्ध का सिर्फ क्षेत्रीय राजनीति पर भारत सहित पूरी वैश्विक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और भारत की ऊर्जा सुरक्षा
ईरान और इज़रायल दोनों मध्य-पूर्व में स्थित हैं और यह क्षेत्र वैश्विक तेल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में यदि युद्ध जारी रहता है तो होरमुज जलडमरूमध्य जैसी अहम तेल आपूर्ति मार्गों को खतरा हो सकता है। इसके चलते कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं। इसका असर भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर हो सकता है। बता दें कि भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% तेल खाड़ी देशों से आयात करता है। तेल कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी से भारत की मुद्रास्फीति, करंट अकाउंट डेफिसिट और सब्सिडी बिल पर बुरा असर पड़ेगा। इससे
आम नागरिकों के लिए पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस समेत आवश्यक वस्तुएं महंगी हो सकती हैं।
2.ग्लोबल बिजिनेस और सप्लाई चेन ठप हो सकता है
ईरान-इज़रायल टकराव यदि बड़े स्तर पर जारी रहता है तो खाड़ी क्षेत्र के समुद्री मार्ग प्रभावित हो सकते हैं। ग्लोबल बिजिनेस और सप्लाई चेन ठप हो सकता है। शिपिंग नेटवर्क में बाधा आ सकती है। भारत की खाड़ी देशों के साथ अरबों डॉलर की व्यापार साझेदारी है, जिसमें पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल, मशीनरी आदि शामिल हैं। यदि बंदरगाहों पर युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो यह व्यापार पर असर डालेगा। चाबहार बंदरगाह परियोजना, जिसमें भारत का रणनीतिक निवेश है, वह भी अस्थिर हो सकती है।
3. भारतीय प्रवासियों और छात्रों की सुरक्षा का संकट
जिस तरह से मध्य-पूर्व के दो ताकतवर मुल्क जंग में हैं। उससे पूरे क्षेत्र में अस्थिरता और महंगाई के साथ असुरक्षा का बोलबाला हो सकता है। बता दें कि मध्य-पूर्व में करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं। ईरान में सैकड़ों भारतीय छात्र भी मेडिकल और तकनीकी शिक्षा ले रहे हैं। संघर्ष बढ़ने पर इन लोगों की सुरक्षा की चिंता बढ़ गई है। भारत को बड़े पैमाने पर निकासी अभियान चलाना पड़ सकता है, जैसा कि यूक्रेन युद्ध और अफगानिस्तान संकट के समय हुआ। इससे भारत पर मानवीय और आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा।
भारत के दो दोस्त।
4. भू-राजनीतिक असंतुलन और भारत की विदेश नीति पर प्रभाव
इजरायल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र देश हैं। ऐसे में इन दोनों में जंग छिड़ने से भारत की पश्चिम एशिया नीति संतुलन पर आधारित रही है। वह इज़रायल और ईरान दोनों से रणनीतिक और व्यापारिक संबंध बनाए हुए है। इज़रायल से भारत रक्षा और तकनीक सहयोग करता है, वहीं ईरान से ऊर्जा और क्षेत्रीय संपर्क पर काम करता है। यदि दोनों देशों के बीच तेज युद्ध छिड़ता है, तो भारत के लिए तटस्थता बनाए रखना मुश्किल होगा। किसी एक पक्ष का समर्थन करने पर दूसरा नाराज़ हो सकता है। इससे भारत की “मल्टी-अलाइंमेंट” रणनीति की परीक्षा होगी।
5. वैश्विक राजनीतिक और सैन्य अस्थिरता से तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा
इस संघर्ष में अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियां भी कूद सकती हैं, जबकि ईरान के साथ रूस और चीन की निकटता पहले से स्पष्ट है। ऐसे में यह टकराव नया शीत युद्ध या क्षेत्रीय महायुद्ध का रूप ले सकता है। इसके दुष्परिणाम वैश्विक बाजार, निवेश, खाद्य सुरक्षा और स्थिरता पर भी दिखेंगे। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में विकासशील देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
बिगड़ सकता है वैश्विक संतुलन
इज़रायल-ईरान युद्ध सिर्फ दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह वैश्विक संतुलन को हिला सकने वाली घटना है। ऊर्जा, व्यापार और मानव संसाधन के स्तर पर खाड़ी देशों के साथ से गहराई से जुड़े दुनिया के तमाम देशों पर गंभीर असर डाल सकता है। इसमें भारत जैसे देश इस संघर्ष का सीधा प्रभाव झेल सकते हैं।