कभी ऐश्वर्या राय-सुष्मिता को दी टक्कर, अब चकाचौंध से मोह भंग, बौद्ध भिक्षु बनकर जीने लगीं संन्यासी वाला जीवन


Barkha madan
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बरखा मदान।

एक वक्त था जब रैंप की रोशनी, कैमरों की चमक और बॉलीवुड की भीड़ में एक नाम अपनी पहचान बना रहा था। ये नाम था बरखा मदान। एक ऐसी महिला, जिनकी आंखों में स्टारडम के सपने थे और आत्मविश्वास इतना कि वो मिस इंडिया 1994 जैसी प्रतियोगिता में देश की सबसे खूबसूरत महिलाओं के बीच सिर उठाकर खड़ी रहीं। सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय जैसी दिग्गजों के साथ मंच साझा करना कोई मामूली बात नहीं थी, लेकिन जो बात सबसे असाधारण है, वो यह कि जहां बाकी लोग आगे चलकर शोहरत और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए, वहीं बरखा ने उसी सीढ़ी से उतरकर एक और ही दिशा की ओर रुख कर लिया, जो ध्यान, साधना और आत्मिक शांति का मार्ग था।

मॉडल से मोक्ष की ओर

बरखा ने अपने करियर की शुरुआत ग्लैमर की चकाचौंध से की। एक मॉडल के रूप में, एक ब्यूटी क्वीन के तौर पर वो सफल रहीं। मिस इंडिया प्रतियोगिता में उन्हें मिस टूरिज्म इंडिया का खिताब मिला और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने मलेशिया में तीसरा स्थान भी प्राप्त किया। यह किसी के भी करियर का स्वर्णिम आरंभ हो सकता था और उनके लिए भी ऐसा ही था, लेकिन किसे पता था कि यह तेज शुरुआत, एक शांत अंत की भूमिका लिख रही थी? फिल्मी पर्दे की सजी हुई जिंदगी छोड़ उन्होंने जीवन बदलने का फैसला किया। बरखा मदान ने 1996 में ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ जैसी हिट फिल्म में अभिनय किया, जहां उन्होंने अक्षय कुमार, रेखा और रवीना टंडन जैसे सितारों के साथ स्क्रीन साझा की। 

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टीवी के पर्दे पर भी किया काम

फिर 2003 में राम गोपाल वर्मा की ‘भूत’ में उनकी भूमिका ‘मंजीत खोसला’ ने उन्हें एक यादगार किरदार में ढाल दिया, वो आत्मा जिसने दर्शकों को डरा भी दिया और सोचने पर भी मजबूर किया। छोटे पर्दे पर भी उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवाया। ‘न्याय’, ‘1857 क्रांति’ (जहां उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का दमदार किरदार निभाया) और ‘सात फेरे – सलोनी का सफर’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में उन्होंने खुद को एक बेहतरीन कलाकार के रूप में स्थापित किया।

लेकिन कुछ अधूरा था…

बाहर से यह जिंदगी जितनी परफेक्ट दिखती थी, अंदर से उतनी ही बेचैनी से भरी थी। बरखा एक सवाल से जूझ रही थीं – क्या यही जीवन है? कैमरों की चमक, तालियों की गूंज और तारीफों की बौछार के बीच एक गहरा सन्नाटा था जिसे सिर्फ वही सुन सकती थीं। यही सवाल उन्हें आत्मा की तलाश की ओर ले गया। बरखा लंबे समय से दलाई लामा की शिक्षाओं से प्रभावित थीं। वह सिर्फ पढ़ नहीं रही थीं, वह अंदर तक बदल रही थीं और फिर साल 2012 में उन्होंने वो कर दिखाया जो लाखों लोग सोचते हैं, पर कर नहीं पाते। उन्होंने ग्लैमर की दुनिया को पूरी तरह अलविदा कह दिया और बौद्ध भिक्षु बनने का फैसला किया।

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बदल दिया नाम

अपने नए जीवन के साथ उन्होंने अपना नाम भी त्याग दिया। अब वे बरखा नहीं रहीं, वे बन गईं ग्यालटेन समतेन। यह सिर्फ एक नाम का परिवर्तन नहीं था, यह पूरे अस्तित्व का पुनर्जन्म था। अब वे हिमाचल और लद्दाख जैसे शांति से भरे इलाकों में एक संन्यासी के रूप में जीवन जीती हैं। न कोई मेकअप, न कोई स्पॉटलाइट, न कोई स्क्रिप्ट। बस सच्चाई और आत्मा से संवाद। जो महिला कभी ब्यूटी पेजेंट की दुनिया में थी, जिसने बॉलीवुड की परतें देखी थीं वो अब एक बौद्ध भिक्षु के रूप में ध्यान, सेवा और साधना में मग्न है। वह सादगी और शांति का जीवंत उदाहरण हैं। इस बात की मिसाल कि असली सौंदर्य भीतर की शांति में छिपा होता है, न कि बाहरी आभा में।

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