
S Jaishankar
S Jaishankar China Visit: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन के दौरे पर हैं। जयशंकर ने बीजिंग में चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ मुलाकात की है। पिछले 5 वर्षों में जयशंकर की यह पहली चीन यात्रा है। इस दौरे का मकसद भारत और चीन के संबंधों को मजबूती देना साथ ही 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद खराब हुए रिश्तों को पटरी पर लाना है। जयशंकर मंगलवार को तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होंगे, और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी करेंगे।
चीन ने यहां दिखाई चालबाजी
विदेश मंत्री एस जयशंकर का चीन दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच चीन ने पाकिस्तान को सैन्य समर्थन दिया था। इस बीच 2020 से 2025 के बीच भारत-चीन संबंधों में भरोसे की कमी साफ दिखी है। सीमा विवाद को लेकर तनाव कम जरूर हुआ है लेकिन अब भी इसका गहरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। भारत-चीन के संबंधों में जहां कभी सहयोग की संभावना थी, अब वहां सावधानी और दूरी का माहौल है। दोनों देश अभी भी बातचीत तो कर रहे हैं, लेकिन रिश्ते पहले जैसे नहीं रह गए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि गालवान झड़प ने भारत-चीन संबंधों को ‘सहयोग से टकराव’ की ओर मोड़ दिया है।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात
ऐसा नहीं है कि इन वर्षों में भारत और चीन के संबंध आगे नहीं बढ़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात भी हुई है। रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर हुई इस मुलाकात के बाद चीन की ओर से कहा गया था कि वह दोनों नेताओं के बीच अहम मुद्दों पर बनी आम सहमति को लागू करने के लिए तैयार है। बैठक में पीएम मोदी ने मतभेदों और विवादों को उचित तरीके से निपटाने, सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया था। उन्होंने कहा था कि परस्पर विश्वास, एक-दूसरे का सम्मान और संवेदनशीलता को संबंधों का आधार बने रहना चाहिए। वहीं, शी ने कहा था कि चीन-भारत संबंध इस बात पर निर्भर करते हैं कि दोनों बड़े विकासशील देश एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। उन्होंने कहा था कि चीन और भारत को एक-दूसरे के प्रति अच्छी धारणा बनाए रखनी चाहिए। दोनों देशों को मिलकर काम करना चाहिए।
स्थिर हुए हैं भारत-चीन संबंध
गौर करने वाली बात यह भी है कि, पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के संबंधों में काफी स्थिरता देखने को मिली है। ऐसे माहौल में विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा दोनों देशों के बीच सार्थक संवाद की दिशा में एक अहम पहल बन सकती है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि चीन और भारत दोनों का उदय हो रहा है। उन्होंने कहा था कि भारत और चीन के आर्थिक और राजनीतिक मॉडल काफी अलग-अलग हैं, इसलिए चिंताएं हैं, कुछ लोग सोच सकते हैं कि ये मतभेद एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाएंगे।
गलवान के बाद बदले हालात
बता दें कि, जून 2020 में गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प के बाद भारत और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे भीषण सैन्य झड़प थी। इस झड़प के बाद भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बाकी स्थानों से सैनिकों को हटाने समेत गश्त शुरू करने को लेकर समझौते पर सहमत हुए थे। इस समझौते को पूर्वी लद्दाख में लगभग चार वर्षों से जारी सैन्य गतिरोध के समाधान की दिशा में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया था। दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधि तंत्र की स्थापना 2003 में की गई थी। तब से दोनों पक्षों के बीच 20 दौर की वार्ता हो चुकी है।
रूस ने भी दिए हैं संकेत
भारत और चीन के संबंधों को लेकर हाल ही में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी बड़ा बयान दिया था। लावरोव ने भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार के संकेतों का हवाला देते हुए उम्मीद जताई थी कि रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय वार्ता जल्द फिर से शुरू होगी। लावरोव ने यह भी कहा था कि इस समूह की अब तक ना केवल विदेश मंत्रियों के स्तर पर, बल्कि तीनों देशों की अन्य आर्थिक, व्यापार और वित्तीय एजेंसियों के प्रमुखों के स्तर पर 20 से ज्यादा मंत्रिस्तरीय बैठकें हो चुकी हैं।
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