क्या हैं बिहार के हॉट मुद्दे? PM मोदी बदल पाएंगे गेम? समीकरणों से समझें


Bihar Elections 2025, PM Modi Bihar strategy, Nitish Kumar
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार।

Bihar Elections 2025: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो चुकी है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले इस चुनाव में 243 सीटों के लिए सियासी जंग छिड़ने वाली है। नीतीश कुमार की अगुवाई में NDA (BJP+JDU) और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन (आरजेडी+कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर होने के आसार हैं। इस बीच, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी नया समीकरण बना रही है। बिहार की सियासत में कई मुद्दे चर्चा का केंद्र बने हुए हैं, जैसे लॉ एंड ऑर्डर, वोटर लिस्ट रिवीजन, नीतीश की सेहत, पलायन, रोजगार, और जाति जनगणना। क्या इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सियासी चाल से गेम बदल पाएंगे? आइए, इन मुद्दों और चुनौतियों को विस्तार से समझते हैं।

क्या PM मोदी बदल पाएंगे गेम?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के सबसे बड़े चेहरे हैं। उनकी रैलियों और योजनाओं का बिहार की सियासत पर गहरा असर पड़ता है। नीतीश के साथ मिलकर बीजेपी ने सवर्ण, ओबीसी और दलित वोटरों को साधने की रणनीति बनाई है। हाल ही में नीतीश ने 125 यूनिट मुफ्त बिजली और रबी महाभियान जैसे कदम उठाए, जिन्हें सियासी मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। बीजेपी भी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए अति पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को लुभाने में जुटी है। लेकिन कुछ चुनौतियां ऐसी हैं, जो मोदी के लिए सिरदर्द बन सकती हैं।

क्या हैं बिहार के हॉट मुद्दे?

  1. लॉ एंड ऑर्डर: बिहार में अपराध का मुद्दा हमेशा से सियासत का अहम हिस्सा रहा है। हाल के दिनों में पटना और अन्य शहरों में हत्या, लूट और अपहरण की घटनाओं ने लोगों में खौफ पैदा किया है। तेजस्वी यादव नीतीश सरकार पर अपराध नियंत्रण में नाकामी का इल्जाम लगा रहे हैं। पटना में कारोबारियों की हत्याओं ने सरकार की किरकिरी कराई है। नीतीश कुमार दावा करते हैं कि उनकी सरकार ने 2005 के बाद बिहार को ‘जंगल राज’ से निकालकर भयमुक्त माहौल दिया, लेकिन विपक्ष का कहना है कि क्राइम रेट फिर से बढ़ रहा है। बीजेपी इस मुद्दे पर नीतीश के साथ खड़ी है, लेकिन अगर अपराध की घटनाएं बढ़ती रहीं, तो यह NDA के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है।
  2. वोटर लिस्ट रिवीजन: चुनाव आयोग की ओर से बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का काम जोर-शोर से चल रहा है। 24 जून 2025 से शुरू इस प्रक्रिया में अब तक 5 करोड़ से ज्यादा वोटरों ने अपने गणना फॉर्म जमा किए हैं। लेकिन विपक्ष, खासकर RJD और कांग्रेस, इसे BJP की साजिश बता रहे हैं। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि वोटर लिस्ट से गरीब और दलित वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, जिससे NDA को फायदा हो। दूसरी तरफ, चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी है और डिजिटल हो चुकी है। इस समय पूरे बिहार में यह एक अहम मुद्दा बना हुआ है।
  3. नीतीश की सेहत और उम्र: नीतीश कुमार, जो बिहार की सियासत के धुरी माने जाते हैं, अब 74 साल के हो चुके हैं। उनकी सेहत को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान के दौरान उनके व्यवहार को लेकर विपक्ष ने हंगामा किया। तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश थक चुके हैं। बीजेपी और जेडीयू इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का इल्जाम लगाते हैं। नीतीश की प्रगति यात्रा भी सेहत की वजह से स्थगित हो चुकी है। अगर नीतीश की सेहत सियासत में कमजोरी बनती है, तो बीजेपी को नया चेहरा तलाशना पड़ सकता है। हालांकि, नीतीश अभी भी बिहार में NDA के लिए सबसे बड़े चेहरे बने हुए है।
  4. लोगों का पलायन: बिहार से पलायन का मसला दशकों पुराना है। गांवों से लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों का रुख कर रहे हैं। महंगाई के हिसाब से बिहार की गरीबी और बढ़ी है और इसी के साथ सूबे से पलायन भी बढ़ा है। विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश में है, खासकर तेजस्वी यादव, जो युवाओं को रोजगार का वादा कर रहे हैं। नीतीश सरकार ने 1 करोड़ नौकरियों का दावा किया है, लेकिन पलायन 
  5. बेरोजगारी: बिहार में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। नीतीश कुमार ने लाखों युवाओं को नौकरियों और रोजगार के अवसर देने का वादा किया था। हाल ही में 55 हजार सिपाहियों की भर्ती का ऐलान भी हुआ। लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये वादे हवा-हवाई हैं। तेजस्वी यादव ने अपनी सरकार के दौरान शिक्षक भर्ती को बड़ा मुद्दा बनाया है और युवाओं में उनकी छवि मजबूत हुई है। दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर भी युवाओं और महिलाओं को लुभाने की कोशिश में हैं। अगर रोजगार के मोर्चे पर नीतीश और बीजेपी ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह उनके लिए भारी पड़ सकता है।

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बिहार चुनावों में ये मुद्दे छाए रहेंगे।

मोदी के सामने चुनौतियां

  1. नीतीश की उम्र और सेहत: नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन उनकी उम्र और सेहत पर सवाल उठ रहे हैं। अगर नीतीश कमजोर पड़ते हैं, तो बीजेपी को नया चेहरा तलाशना होगा, जो आसान नहीं है। बीजेपी के पास बिहार में कोई मजबूत जननेता नहीं है, जिसका व्यापक जनाधार हो।
  2. तेजस्वी और पीके की लोकप्रियता: तेजस्वी यादव युवाओं और मुस्लिम एवं यादव वोटरों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उनकी शिक्षक भर्ती और जाति जनगणना की मांग ने वंचित वर्ग में उनकी पकड़ मजबूत की है। दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 40 सीटों पर महिलाओं को टिकट देकर नया समीकरण बना रही है। पीके का तटस्थ रुख और नीतीश-बीजेपी पर हमले उन्हें नया विकल्प बना रहे हैं।
  3. एंटी-इनकंबेंसी का खतरा: नीतीश 2005 से सत्ता में हैं। लंबे समय तक सत्ता में रहने से जनता में नाराजगी बढ़ सकती है। हाल के सर्वे में तेजस्वी सीएम पद के लिए पहली पसंद बने, जबकि नीतीश तीसरे स्थान पर खिसक गए। अगर जनता बदलाव चाहेगी, तो यह एनडीए के लिए मुश्किल होगी।
  4. जाति जनगणना और आरक्षण की मांग: बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा गरमाया हुआ है। 2023 के सर्वे में यादव, कुर्मी, और कोइरी की आबादी सामने आई। नीतीश ने अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को 18% और अन्य वर्गों को आरक्षण दिया, लेकिन अब 50% की सीमा तोड़कर ज्यादा आरक्षण की मांग उठ रही है। अगर यह मांग बढ़ी, तो नीतीश और बीजेपी के लिए इसे संभालना मुश्किल होगा।
  5. बढ़ता क्राइम रेट: अपराध की बढ़ती घटनाएं नीतीश सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी बन रही हैं। विपक्ष इसे ‘जंगल राज’ बता रहा है। अगर बीजेपी और नीतीश इसे काबू नहीं कर पाए, तो यह उनके खिलाफ भारी पड़ सकता है।
  6. रोजगार, पलायन, स्वास्थ्य और शिक्षा: बिहार में बेरोजगारी, पलायन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। नीतीश ने साइकिल योजना, कन्या विवाह योजना और मुफ्त बिजली जैसे कदम उठाए, लेकिन अगर युवा और ग्रामीण वोटरों को ठोस नतीजे नहीं दिखे, तो वे विपक्ष की तरफ जा सकते हैं।

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बिहार में पीएम मोदी के सामने कई बड़े चैलेंज हैं।

क्या है बिहार का सियासी समीकरण?

बिहार की सियासत में जाति और गठबंधन का खेल अहम है। पीएम मोदी की रैलियां और कल्याणकारी योजनाएं एनडीए को मजबूती दे सकती हैं, लेकिन नीतीश की सेहत, क्राइम रेट और एंटी-इनकंबेंसी जैसे मुद्दे चुनौती बन सकते हैं। अगर मोदी और नीतीश मिलकर युवाओं, महिलाओं और EBC वोटरों को साध लेते हैं, तो एनडीए की राह आसान हो सकती है। लेकिन तेजस्वी और पीके की बढ़ती लोकप्रियता और विपक्ष के हमले इस जंग को रोमांचक बनाएंगे। इन चुनावों में मोदी का करिश्मा कितना काम आएगा, यह जनता के मिजाज पर निर्भर करता है।





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