‘वो मुझे मार सकते हैं, मेरे विचारों को नहीं’, भगत सिंह के विचार, जिन्होंने उन्हें अमर कर दिया


Bhagat Singh- India TV Hindi
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भगत सिंह की मूर्ति

आजाद शहीद भगत सिंह का जन्म आज के दिन ही पंजाब के लायलपुर में हुआ था। भारत माता के लाडले पुत्र के जन्मदिवस के रूप में हमेशा इस दिन को याद किया जाएगा। भगत सिंह देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए 23 साल की छोटी सी उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे। भगत सिंह का जन्म अविभाजित पंजाब के लायलपुर में साल 1907 में हुआ था। यह जगह अब पंजाब का हिस्सा है। भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत ब्रिटिश हुक्मरान ने 23 मार्च 1931 को 23 बरस के भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया।

भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरू को भी फांसी दी गई थी। भगत सिंह ने आज से लगभग 100 साल पहले कहा था कि वह मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। उनकी यह बात आज तक सही साबित होती है। भगत सिंह अब नहीं हैं, लेकिन उनके विचार कायम हैं और हमेशा रहेंगे। भारत के अलावा पाकिस्तान में भी भगत सिंह को बेहद सम्मान और आदर दिया जाता है। पिछले साल एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी ने भगत सिंह पर अमर्यादित टिप्पणी की थी। ऐसे में वकील ने उसे 50 करोड़ का मानहानि नोटिस भेज दिया था। 

आजाद शहीद भगत सिंह के विचार

  • बम और पिस्तौल क्रांति नहीं करते। क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है।
  • मैं जीवन में महत्वाकांक्षा, आशा और आकर्षण से भरा हुआ हूं, लेकिन मैं जरूरत के समय सब कुछ त्याग सकता हूं।
  • मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
  • वो मुझे मार सकते हैं, लेकिन वो मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वो मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वो मेरी आत्मा को कुचल नहीं सकते। 
  • अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए। इस विचार के आधार पर ही उन्होंन असेंबली में बम फेंका था, लेकिन उनका उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था। इसी वजह से किसी को कोई खास नुकसान नहीं हुआ था।
  • राख का हर एक कण, मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है। 
  • जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा, तथा उसे चुनौती देनी होगी।
  • जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।

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