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इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

तीन हिन्दीभाषी राज्यों के चुनावों में हार के असर विरोधी दलों पर दिखने लगे हैं। इंडिया अलायन्स के जो नेता मिलकर मोदी को हराने के दावे करते थे, उन्होंने इंडिया अलायन्स पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए। कांग्रेस से साफ कह दिया कि अब कांग्रेस की जमींदारी नहीं चलेगी, कांग्रेस अगर गठबंधन चाहती है, तो सभी छोटी पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टियों को साथ लेकर चलना होगा, सबको सम्मान देना होगा। दरअसल रविवार को जैसे ही चार राज्यों के नतीजे साफ हुए, तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी हार हुई, तो कांग्रेस के नेताओं को इंडिया अलायन्स का ख्याल आया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्विटर पर लिखा कि पार्टी इस हार से हताश नहीं है, हार के कारण खोजेंगे, गलतियों को ठीक करेंगे और 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगेंगे, सभी विरोधी दल मिलकर लड़ेंगे। 6 दिसंबर को इंडिया एलायंस के नेताओं की मीटिंग होगी। सोमवार को कांग्रेस के नेताओं ने गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेताओं से बात करने की कोशिश की। छह दिसंबर को दिल्ली आने का न्योता दिया लेकिन ममता बनर्जी ने मीटिंग में आने से इनकार कर दिया। ममता ने कहा कि उन्हें पहले से इस मीटिंग की कोई जानकारी नहीं हैं, उनके पहले से प्रोग्राम पहले से तय हैं, वह 6 से 12 दिसंबर तक उत्तर बंगाल में होंगी, इसलिए अलायन्स की मीटिंग में शामिल होना संभव नहीं है। अब तय ये हुआ है कि 6 दिसम्बर को इंडिया अलायंस में शामिल पार्टियों के प्रमुख सांसदों की मीटिंग होगी, और दिसम्बर के तीसरे हफ्ते में सभी विरोधी दलों के अध्यक्षों की बैठक होगी।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार के बाद विपक्षी दलों को कुछ सूझ नहीं रहा है। 24 में क्या होने वाला है, जनता किसके साथ जाने वाली है, किस पिच पर लड़ाई लड़ी जाएगी, तीन राज्यों के नतीजों ने ये एकदम स्पष्ट कर दिया है। हार के बाद भी कांग्रेस कुछ सकारात्मक बातें खोजने में लगी है। कांग्रेस के सीनियर नेता जयराम रमेश ने हार को निराशाजनक बताया लेकिन ये कहने से नहीं चूके कि बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में ज्यादा फर्क नहीं है, इस अंतर को मिटाया जा सकता है। दरअसल इन आंकड़ों के जरिए कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में 2024 से पहले एक उम्मीद जगाने की कोशिश कर रही है। तीन राज्यों में एकतरफा जीत के बाद जहां एक ओर बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं, तो वहीं कांग्रेस के लिए 2024 के सेमीफाइनल के ऐसे नतीजे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे चुनौती तो विपक्षी गठबंधन की एकजुटता बनाए रखने की है। ममता बनर्जी ने बैठक में आने से इनकार कर दिया तो कांग्रेस की तरफ से जयराम रमेश ने सफाई देते हुए कहा कि 6 दिसंबर की मीटिंग तो अनौपचारिक है। आगे भी एलायंस की ऐसी मीटिंग होंगी, उसमें ममता बनर्जी भी आएंगी। 

लेकिन बात इतने पर खत्म नहीं हुई। ममता की पार्टी के तमाम नेताओं ने कांग्रेस को नतीजों से सबक लेने की सलाह दे दी। ममता के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस को सबको साथ लेकर चलना नहीं आता, अगर सबका साथ लेना है, तो कांग्रेस को अहंकार छोड़ना होगा। उनकी पार्टी के नेता कुणाल घोष ने सीधे कह दिया कि अब विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस की बजाय TMC को मिलना चाहिए, तभी 2024 में नैया पार लगेगी, वरना कांग्रेस तो अपने अहंकार में सबको डुबा देगी। इंडिया एलान्यस के जितने भी नेता बोले, सबने मध्य प्रदेश की मिसाल दी। कहा कि अगर कांग्रेस समाजवादी पार्टी को थोड़ी बहुत सीटें दे देती तो नतीजे ऐसे न होते। अखिलेश यादव ने भी कहा कि कांग्रेस ने अहंकार का नतीजा देख लिया, अब अगर साथ आना है, तो सभी पार्टियों का सम्मान करना होगा। उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राउत ने थोड़ा और खुलकर कांग्रेस को कोसा। संजय राउत ने कहा कि  देश में जमींदारी ख़त्म हो गई लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता हैं, जो अभी भी ख़ुद को ज़मींदार समझते हैं, ऐसे नेताओं ने ही कांग्रेस को हरवाया है। इस मामले में कांग्रेस पर सबसे तीखा हमला नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने किया। अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस के नेता हवा में उड़ रहे थे, अब ज़मीन पर आए हैं, तीन महीने बाद उन्हें अलायन्स का ख्याल आया है। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस वक्त वो नहीं कह सकते कि विरोधी दलों के गठबंधन का क्या हश्र होगा, बनेगा या नहीं।

उमर अब्दुल्ला की इस बात से सचिन पायलट सहमत नहीं दिखे। सचिन पायलट ने कहा कि कांग्रेस ने निश्चित रूप से कुछ ग़लतियां कीं, तभी पार्टी हारी, अब हार के कारणों का विश्लेषण होगा और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर रणनीति के साथ चुनाव में उतरेगी। वैसे तो कोई खुलकर नहीं बोल रहा है, लेकिन सभी विपक्षी नेता दबे-ढके लफ्ज़ों में कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं और चाहते हैं कि उनकी पार्टी के नेता को विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनाया जाए। जेडीयू ने भी विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व पर अपनी दावेदारी जता दी। नीतीश के बेहद करीबी नेता और मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि 2024 में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व ऐसे नेता के हाथ में होना चाहिए, जो कामयाब हो और जिसको जनता आज़मा चुकी हो। हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेता हैं, जो चार राज्यों में हार के बावजूद ये मानने को तैयार नहीं हैं कि कांग्रेस बैकफुट पर है या फिर उसकी मोलभाव करने की क्षमता कम हुई है। कांग्रेस के सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि उनकी पार्टी को तो बीजेपी से ज़्यादा वोट मिले हैं।  ऐसे में तमिलनाडु, केरल और यूपी जैसे राज्यों को छोड़कर बाक़ी राज्यों में चुनाव कांग्रेस की अगुवाई में ही लड़े जाएंगे।

तीन राज्यों में करारी हार का एक असर ये हुआ है कि विरोधी दलों के एलायंस में कांग्रेस की दादागिरी खत्म हो गई है। ज्यादातर विरोधी दलों के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस बीजेपी को नहीं हरा सकती। राहुल गांधी, मोदी को टक्कर देने में फिसड्डी साबित हुए हैं। कर्नाटक जीतकर कांग्रेस ने जो गुब्बारा फुलाया था, उसकी हवा रविवार को निकल गई। कोई कांग्रेस को अंहकारी बता रहा है, तो कोई उसे नाकारा कह रहा है। तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने तो साफ कह दिया कि विरोधी दलों के एलायंस को ममता बनर्जी ही लीड कर सकती हैं। उधर, दिग्विजय सिंह गिना रहे हैं कि पोस्टल बैलेट में कांग्रेस जीती, पर EVM में हार गई और ये बताने की ज़हमत नहीं उठाते कि पोस्टल बैलेट में चुनाव ड्यूटी पर रहने वाले सरकारी कर्मचारियों के गिने चुने वोट होते हैं। जयराम रमेश तो परसेंटेंज गिनाने में लगे हैं, ये बताने के लिए कि कांग्रेस में अभी भी दम बाकी है। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस आज भी ऐसी पार्टी है जिसका समर्थन करने वाले पूरे देश में हैं पर चुनावी राजनीति के लिहाज से देखें तो कांग्रेस चार लोकसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश के अलावा दक्षिण के दो राज्यों, कर्नाटक और तेलंगाना में सिमटकर रह गई है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में पार्टी कमज़ोर है। इसलिए अब अगर क्षेत्रीय पार्टियों के नेता एलांयस के नेतृत्व पर दावा करने लगे तो कांग्रेस क्या जवाब देगी? लालू फिर से नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की बात करने लगें, तो राहुल गांधी क्या जवाब देंगे? लालू का काम तभी बनेगा जब नीतीश बिहार से बाहर निकलेंगे। लेकिन अब मुश्किल ये है कि नीतीश कुमार पिछले 10 दिन से अपने घर से बाहर नहीं निकले हैं।

नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार पिछले दस दिन से सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखे हैं। इसलिए अब उनकी सेहत को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने ट्विटर पर लिखा कि पिछले 10 दिनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबीयत खराब है, उनको कुछ हुआ भी है या फिर सिर्फ उनके साथ राजनैतिक साजिश चल रही है? जीतन राम मांझी ने कहा कि नीतीश कुमार का हेल्थ बुलेटिन जारी होना चाहिए ताकि उनकी तबीयत के बारे में लोगों को पता चले। मांझी के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी ट्विटर पर लिख दिया कि मांझी की चिंता जायज़ है, इसलिए नीतीश कुमार का हेल्थ बुलेटिन जारी होना चाहिए। मांझी और गिरिराज सिंह की ये बात जेडीयू के नेताओं को बहुत बुरी लगी। जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि किसी की सेहत को लेकर राजनीति ठीक नहीं है। अगर उन्होंने मांझी और उनके परिवार का हैल्थ बुलेटिन जारी कर दिया तो मांझी बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे। बिहार कांग्रेस के नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि गिरिराज सिंह को अपनी चिंता करनी चाहिए, रही बात नीतीश कुमार की, तो उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक है, उन्हें कुछ नहीं हुआ। नीतीश के एक और विरोधी चिराग पासवान ने कहा कि अगर नीतीश कुमार की तबीयत ठीक नहीं है तो उन्हें अच्छा इलाज मिलना चाहिए लेकिन अगर वो यूं ही ऑफिस नहीं आ रहे, तो ये बात सही नहीं है। नीतीश कुमार के बारे में उनके अपने साथी कहते हैं कि वो आजकल अक्सर नाम और चेहरे भूल जाते हैं। कभी-कभी अपने मंत्रियों को भी नहीं पहचान पाते। जिस दिन नीतीश कुमार ने विधाससभा में सेक्स का पाठ पढ़ाया, उस दिन उनकी पार्टी के नेता ने मुझसे कहा था कि प्लीज़, इन बातों को इनग्नोर कर दीजिए, नीतीश कुमार की मेंटल हेल्थ ठीक नहीं है। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि ये सब बातें गलत साबित हों। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाले नेता के बारे में ऐसी बातें सुनकर बिलकुल अच्छा नहीं लगता लेकिन बिहार की राजनीति आजकल ऐसी है कि अगर  नीतीश सामने नहीं आएंगे, तो तरह-तरह की बातें होंगी। इसलिए नीतीश जी के स्वास्थ्य के बारे में औपचारिक रूप से सबको बता दिया जाए तो अच्छा होगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 04 दिसंबर, 2023 का पूरा एपिसोड

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