Syed Saleem Geelani, Jammu and Kashmir, Jammu and Kashmir Elections- India TV Hindi

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सैयद सलीम गिलानी।

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में करीब 40 साल बाद बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कुछ साल पहले तक चुनाव को हराम बताने वाले और इसका बहिष्कार करने वाले लोग अब खुद चुनाव प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं। पहले जमात-ए-इस्लामी के लोग चुनाव प्रक्रिया में शामिल हुए और अब अलगाववादी नेता सैयद सलीम गिलानी ने भी PDP का दामन थाम लिया है। 1989 से अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले, हिंसा, पत्थरबाजी और विरोध के नाम पर कश्मीर में खून-खराबा करने वाले ये नेता अब मुख्यधारा में शामिल होकर लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए लोकतंत्र को सबसे अच्छा मंच मान रहे हैं।

‘मैं इस मंच के जरिए बेहतर काम करूंगा’

अलगाववादियों की इस बदलती सोच पर इंडिया टीवी से बात करते हुए हुर्रियत नेता सैयद सलीम गिलानी ने कहा कि PDP में शामिल होना राजनीति की कनेक्टिविटी है। उन्होंने कहा, ‘पीडीपी मेल-मिलाप की बात करती है। युवाओं की बात करती है, संवाद की वकालत करती है। इसलिए मुझे लगा कि मैं यहां बेहतर काम करूंगा।’ चुनाव बहिष्कार पर सलीम गिलानी ने कहा कि चुनाव बहिष्कार का आह्वान हुर्रियत की नीति थी, लेकिन समय के साथ राजनीति के तरीके भी बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगा कि मैं इस मंच के जरिए बेहतर काम करूंगा।

‘हकीकत से कोई नहीं भाग सकता’

जब गिलानी से पूछा गया कि क्या हुर्रियत से और लोग भी चुनाव प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं, तो उन्होंने कहा, ‘समय का इंतजार करें। हकीकत से कोई नहीं भाग सकता।’ जब उनसे पूछा गया कि 35 साल हुर्रियत में रहने के बाद क्या आपको कश्मीर में हुई घटनाओं पर अफसोस है, तो सलीम गिलानी ने कहा कि कुनन-पोशपोरा की घटना नहीं होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, ‘सोपोर में आग लगी, लोग मारे गए। गावकादल की घटना नहीं होनी चाहिए थी। कोई भी मरे, चाहे वह नागरिक हो, आतंकवादी हो या वर्दीधारी सैनिक हो, वह किसी न किसी मां का बेटा है।’

बीजेपी ने PM मोदी की मेहनत को दिया श्रेय

हुर्रियत और जमात-ए-इस्लामी के नेताओं का चुनाव प्रक्रिया में शामिल होना जम्मू-कश्मीर में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। बीजेपी का मानना ​​है कि यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहनत की वजह से संभव हो पाया है, अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह बड़ा बदलाव साफ तौर पर दिखाता है कि हालात कितने बदल गए हैं। बीजेपी के प्रवक्ता साजिद यूसुफ ने कहा, ‘2019 तक यह संभव नहीं था कि राहुल गांधी अनंतनाग आकर अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार करें या नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता खुलेआम सड़कों पर उतरकर प्रचार कर सकें।’

‘एक समय था जब चुनाव एजेंट नहीं होते थे’

साजिद ने कहा, ‘एक समय था जब चुनाव एजेंट नहीं होते थे। आज एजेंटों की लंबी लाइन है। यह सबसे बड़ा विकास है कि हराम और बहिष्कार का नारा देने वाले लोग आज काम की धारा में शामिल हो रहे हैं।’ वहीं, उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘चुनाव आ गए हैं, वे लड़ने के लिए तैयार हैं। अब तक जब भी हमने चुनाव लड़ा है, उन्होंने चुनाव बहिष्कार के नारे लगाए हैं। अब वे खुद चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। कहीं न कहीं उनकी विचारधारा बदल गई है और हमने जो कहा वह सही साबित हुआ है। हम 90 के दशक से कह रहे हैं कि यहां के हालात खराब होंगे लेकिन हमें निशाना बनाया गया।’

‘…तो हम जमात के खिलाफ कैंडिडेट नहीं उतारते’

PDP युवा अध्यक्ष वाहिद पारा ने कहा, ‘अगर हमें पता होता कि जमात-ए-इस्लामी चुनाव लड़ेगी, तो पीडीपी ने उन्हें अपना निर्वाचन क्षेत्र भी दे दिया होता। हम उन्हें टिकट भी देते। हम उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारते। उन्होंने बहुत कुछ सहा है। हम उनके लिए भी जगह बनाते, लेकिन उन्होंने हमें नहीं बताया।’ अलगाववाद की राह पर चलने और 4 दशकों तक चुनाव बहिष्कार की राजनीति करने के बाद हुर्रियत नेता और जमात के सदस्य भारतीय लोकतंत्र में विश्वास दिखा रहे हैं। यह दर्शाता है कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जमीनी हालात में काफी बदलाव आया है।





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