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महाराष्ट्र चुनाव रिजल्ट-महायुति की बड़ी जीत

महाराष्ट्र में 288 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे लगभग आ चुके हैं., जिसमें महायुति (भाजपा, शिवसेना, एनसीपी) गठबंधन को प्रचंड जीत मिली है और गठबंधन सत्ता में वापसी कर रहा है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को करारी हार मिली है। भाजपा की जीत की आंधी ऐसी चली कि पूर्व मुख्यमंत्री और खुद को असली शिवसेना बताने वाले उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। इस गठबंधन की इस चुनाव में हालत ऐसी हो गई है कि दिग्गज नेता विपक्ष के नेता बनने लायक भी नहीं रह गए हैं। कैसे महायुति को इतनी बड़ी जीत मिली और महाविकास अघाड़ी कैसे हार गई।

जानिए 10 बड़ी वजहें

  1. महाविकास अघाड़ी में सीटों के लिए अनबन और अपना वर्चस्व दिखाने के साथ ही पार्टियों में अंदरूनी कलह और गुटबाजी हावी रही। मतभेद इतना हुआ कि सबकुछ जनता के सामने आ गया। वहीं महायुति को मिली जीत न केवल गठबंधन की ताकत और एकता को दिखाता है। भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे की जोड़ी के साथ मजबूत चुनावी जमीन काम किया और नेताओं ने जनता के सामने किसी भी मतभेद को उजागर नहीं किया।

     

  2. ​पिछले कुछ सालों में महाविकास अघाड़ी के प्रमुख दल कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी की महाराष्ट्र में लोकप्रियता घटी है। खासकर मतदाताओं के बीच विश्वसनीयता को भी इन पार्टियों ने खो दिया है। दूसरी तरफ भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है और विश्वास भी बढ़ा है जिसका उदाहरण लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दिया था।
     
  3. शिवसेना का विभाजन और फिर एनसीपी का विभाजन महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बड़ी बात थी। दोनों पार्टियों के दो फाड़ होने का फायदा भाजपा को मिला, दोनों पार्टियों का एक भाग भाजपा के साथ खड़ा  हुआ और भाजपा ने पूरा सम्मान दिया। वहीं विपक्षी एकता का प्रदर्शन करते हुए इंडिया गठबंधन की नींव रखी गई जिसमें महाराष्ट्र की अहम भूमिका रही लेकिन यह गठबंधन कमजोर निकला।
     
  4. कांग्रेस में नेतृत्व का संकट जिसका खामियाजा उसे लोकसभा और कई राज्यों की विधानसभाओं में भी भुगतना पड़ा, इस चुनाव में भी महाविकास अघाड़ी में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस का तुरंत फैसला ना ले पाना भी हार की बड़ी वजह रही। जबकि भाजपा का कुशल नेतृत्व चुनाव प्रबंधन उसकी जीत की अहम वजह रही।
     
  5. महाविकास अघाड़ी में नेतृत्व वरिष्ठ नेताओं के हाथ में है और परिवारवाद का आरोप को भी झेलना पड़ा है जबकि महायुति में नेतृत्व युवा हाथों में है और वहां संगठन, गठबंधन को तवज्जो दी गई। युवा नेताओं े भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई, ये भी फैक्टर रहा।
     
  6. महाविकास अघाड़ी की जब सरकार थी तो जनता ने विकास कार्यों को सुचारू रूप से नहीं चलने का आरोप लगाया था और सरकार की विफलता सामने रख दी थी। जनता ऐसी सरकार की वापसी नहीं चाहती थी। जबकि शिंदे सरकार के विकास कार्य और सरकार की योजनाओं को खासकर लाडकी बहन योजना को सराहा है और जीत के लिए वोट दिया है।
     
  7. महाविकास अघाड़ी ने चुनाव से पहले मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए ना तो कोई खास योजनाओं को पेश नहीं किया, ना ही उनका चुनाव अभियान ही असरदार था। भाजपा ने गठबंधन के साथ मिलकर अपना मजबूत नैरेटिव जनता के सामने रखा और आपसी तालमेल के साथ कई वादे किए। 
     
  8. महायुति ने जातीय समीकरणों और विकास की राजनीति का संतुलन बनाने के साथ ही सोशल मीडिया इंजीनियरिंग पर भी काम किया। भाजपा ने जहां अपने संगठित कैडर और मजबूत प्रचार के जरिए बढ़त बनाई, वहीं महाविकास अघाड़ी जातीय समीकरणों को साधने में विफल रही।
     
  9. महायुति के नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं का उत्साह भी चरम पर रहा जबकि महाविकास अघाड़ी में नेताओं के बीच समन्वय की कमी से कार्यकर्ता हतोत्साहित हो गए।
     
  10. महाविकास अघाड़ी में उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे बड़े नेताओं के लिए अब हार मिलने के बाद उसके लिए आत्ममंथन करने का है। विपक्षी राजनीति के बड़े चेहरों की कमजोरी उजागर हो चुकी है तो वहीं महायुति को मिली इस बड़ी जीत से उत्साह चरम पर है। पीएम मोदी के नेतृत्व और चुनाव की बेहतर रणनीति से मिली जीत और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे के नारे का प्रभाव स्पष्ट दिख रहा है।

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