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19वीं और 20वीं सदी में भारत से कई मजदूरों को मॉरीशस लाया गया था।

हिंद महासागर में स्थित अफ्रीकी देश मॉरीशस अपनी खूबसूरती और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। मॉरीशस दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है जहां हिंदू समुदाय के लोग आबादी में सबसे ज्यादा हैं। इस द्वीपीय देश में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार यानी कि पूर्वांचल से सदियों पहले हजारों की संख्या में लोगों को लाया गया था। आधुनिक मॉरीशस के इतिहास में पूर्वांचल के लोगों की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है, और उनके वर्चस्व का प्रभाव इस देश की सियासत, समाज और अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

मॉरीशस कैसे पहुंचे भारत के लोग?

19वीं से लेकर 20वीं सदी की शुरुआत तक ब्रिटिश साम्राज्य अफ्रीकी, चीनी और भारतीय मजदूरों को यहां कृषि कार्य और अन्य उद्योगों में काम करने के लिए लेकर आया था। भारतीय समुदाय के लोग मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड के विभिन्न इलाकों से लाए गए थे। दरअसल, पूर्वांचल और आसपास के इलाकों में गन्ने की खेती सदियों से बड़े पैमाने पर होती रही है, और यह वजह है कि मॉरीशस में गन्ने से जुड़े कृषि कार्यों के लिए ब्रिटिश यहां के लोगों को ले गए। समय के साथ भारतीय श्रमिकों की जनसंख्या बढ़ी और उनके वंशज अब मॉरीशस के विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा-खासा दखल रखते हैं।

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मॉरीशस में भारतीय समुदाय के लोग मुख्य रूप से कृषि कार्य करने के लिए लाए गए थे।

मॉरीशस का सामाजिक तानाबाना

मॉरीशस में भारतीय मूल के लोग कुल आबादी का 67 फीसदी हैं। इनके अलावा क्रिओल 28 फीसदी, चीनी 3 फीसदी और फ्रेंच 2 फीसदी हैं। वहीं, धार्मिक आधार पर बात करें तो इस देश में हिंदू 47.9 प्रतिशत, ईसाई 32.3 फीसदी और मुस्लिम 18.2 फीसदी हैं। बाकी के लोग विभिन्न मतों और धर्मों को मानते हैं। इस तरह देखा जाए तो हिंदुस्तान से आए लोगों का मॉरीशस में पूरा वर्चस्व नजर आता है। यहां पर मुख्य भाषा तो मॉरीशन क्रिओल है लेकिन आपको लोग भोजपुरी बोलते भी मिल जाएंगे। वहीं, मॉरीशस में आपको जगह-जगह पर मंदिर और अच्छी खासी संख्या में मस्जिदें भी मिलेंगी।

मॉरीशस की सियासत में छाए पूर्वांचली

1960 के दशक में, मॉरीशस में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूर्वांचल के नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा और इसके बाद वे यहां की सियासत में छाते गए। सर शिवसागर रामगुलाम को ‘मॉरीशस का राष्ट्रपिता’ कहा जाता है और उनके पुरखे भी बिहार से ताल्लुक रखते थे। सर शिवसागर मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री थे और उनके बाद अनिरुद्ध जगन्नाथ, प्रविंद जगन्नाथ और मौजूदा प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने भी इस पद को सुशोभित किया। वहीं, मॉरीशस के राष्ट्रपति रहे कासम उत्तीम, कैलाश परयाग और पृथ्वीराजसिंह रुपन समेत तमाम राजनेताओं की जड़े भारत और खासकर पूर्वांचल में मिलती हैं। इसके अलावा सरकार और प्रशासन में पूर्वांचली अन्य पदों पर अहम भूमिका निभाते रहे हैं।

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2018 में एक बैठक के दौरान मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ और पीएम नरेंद्र मोदी।

पूर्वांचलियों के बिना मॉरीशस की कल्पना नहीं

इस तरह देखा जाए तो मॉरीशस में पूर्वांचल के लोगों का वर्चस्व एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम है। इन लोगों ने न केवल मॉरीशस की सियासत और अर्थव्यवस्था को आकार दिया है, बल्कि अपनी संस्कृति और धरोहर को भी इस द्वीप में मजबूती से स्थापित किया है। मॉरीशस की राजनीति में इनकी भागीदारी और सांस्कृतिक प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यदि कहा जाए कि पूर्वांचलियों के बिना आज के मॉरीशस की कल्पना करना भी असंभव है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।





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