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भारत में, पारिवारिक विरासत का प्रभाव व्यापार से लेकर राजनीति तक सभी क्षेत्रों में देखने को मिलता है। फिल्मी जगत पर भी अक्सर भाई-भतीजावाद के आरोप लगते आए हैं। फिल्मी दुनिया में ऐसे कई परिवार हैं, जहां एक के बाद एक पीढ़ियां इंडस्ट्री में आती हैं और ये चलन बॉलीवुड से लेकर हर क्षेत्रीय भाषा के सिनेमा में मौजूद हैं। तमिल सिनेमा में तो एक परिवार ऐसा है, जिसने फिल्मी दुनिया को एक निर्देशक, एक कैमरामैन और 7 नायिकाएं दी हैं।
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हम बात कर रहे हैं ‘स्वप्न सुंदरी’ के नाम से मशहूर टीआर राजकुमारी उर्फ तंजावुर राधाकृष्णन राजयी की, जो तमिल सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में से थीं। उनकी एक झलक पाने को लोग पागल रहते थे।
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तंजावुर राधाकृष्णन राजयी की दादी कुजालम्बल अपने समय की प्रसिद्ध कर्नाटक गायिका थीं। यह परिवार तमिलनाडु के सांस्कृतिक केंद्र तंजावुर से आया और 1930 में इस परिवार की पहली सदस्य एस.पी.एल. धनलक्ष्मी ने सिनेमा की दुनिया में कदम रखा।
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1935 में, नेशनल मूवी टोन ने अपनी पहली फिल्म ‘पार्वती कल्याणम’ लॉन्च की और निर्माता मनिकम ने एस.पी.एल. धनलक्ष्मी को खोजा और उन्हें मुख्य भूमिका में लिया। उनकी बहन दमयंती भी उस दौर में कुछ फिल्मों में नजर आईं।
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राजयी के साथ इस परिवार ने नई ऊंचाईयों को छुआ। राजयी की सुंदरता से प्रभावित होकर, डायरेक्टर के सुब्रमण्यम ने उनका नाम बदलकर टी.आर. राजकुमारी रख दिया और उन्हें ‘काचा देवयानी’ (1941) में कास्ट किया। वह अपनी पीढ़ी की सबसे प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से एक बन गईं।
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परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने वाले निर्माता और निर्देशक डी.आर. रमन्ना थे, जो तमिल सिनेमा के दो दिग्गजों एमजीआर और शिवाजी गणेशन को लेकर फिल्म बनाने वाले एकमात्र फिल्म निर्माता थे।
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अगली पीढ़ी से ज्योति लक्ष्मी और जयमालिनी आईं, जो एस.पी.एल. धनलक्ष्मी की बेटियां थीं। 1980 के दशक में दोनों बहनों ने अपने बोल्ड अभिनय और डांस के साथ तमिल और तेलुगु सिनेमा पर अपना दबदबा बनाया। ज्योति लक्ष्मी को एस.पी.एल. धनलक्ष्मी की बहन ने गोद लिया था, जिनकी अपनी कोई संतान नहीं थी।
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ज्योति लक्ष्मी की बेटी ज्योति मीना भी अभिनय के क्षेत्र का जाना-माना नाम रहीं। वह 1990 के दशक में कई फिल्मों में नजर आईं, जिनमें उल्लाथाई अल्लिथा (1996) भी शामिल है। ज्योति मीना ने विजय और अजीत जैसे प्रमुख सितारों के साथ भी अभिनय किया। उनके पिता एक कैमरामैन थे।