
खाड़ी देशों के साथ ईरान के रिश्ते खट्टे मीठे रहे हैं।
Iran Gulf Relations: ईरान पश्चिमी एशिया का एक महत्वपूर्ण देश है। यह अपनी रणनीतिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों के कारण क्षेत्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाता है। खाड़ी देशों (Gulf Countries) यानी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान के साथ ईरान के रिश्ते जटिल और उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। ये रिश्ते धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक और भू-रणनीतिक मुद्दों से प्रभावित होते हैं। आज हम एक-एक खाड़ी देश के साथ ईरान के रिश्तों को आसान भाषा में समझेंगे।
ईरान के जानी दुश्मन की तरह है सउदी अरब
ईरान और सऊदी अरब के बीच रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण हैं। दोनों देश इस्लामी दुनिया में अपनी-अपनी विचारधाराओं (शिया और सुन्नी) को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं, जिससे दोनों के बीच टकराव रहता है। सऊदी अरब, जो सुन्नी बहुल है, ईरान को क्षेत्र में शिया प्रभाव बढ़ाने के लिए जिम्मेदार मानता है। 2016 में, सऊदी अरब ने एक शिया धर्मगुरु निम्र अल-निम्र को फांसी दे दी थी, जिसके बाद ईरान में सऊदी दूतावास पर हमला हुआ था। इसके बाद दोनों देशों ने राजनयिक रिश्ते भी तोड़ लिए। यमन और सीरिया जैसे क्षेत्रीय संघर्षों में भी दोनों एक-दूसरे के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर लड़ते हैं। हालांकि, 2023 में चीन की मध्यस्थता से दोनों ने रिश्ते बहाल करने की कोशिश शुरू की, लेकिन पूर्ण विश्वास अभी बाकी है।
चीन ने सउदी अरब और ईरान के बीच शांति स्थापित करने की शुरुआत की थी।
ईरान और यूएई में बिजनस भी, शंकाएं भी
ईरान और UAE के रिश्ते आर्थिक सहयोग और राजनीतिक सतर्कता का मिश्रण हैं। UAE, खासकर दुबई, ईरान के लिए एक बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा है। ईरानी व्यापारी वहाँ सक्रिय हैं, और दोनों देशों के बीच व्यापार अरबों डॉलर का है। लेकिन दोनों के बीच भरोसे के रिश्ते की बात करें तो UAE, ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव और परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित रहता है। UAE, सऊदी अरब और अमेरिका का करीबी सहयोगी है, जिससे ईरान के साथ उसका रुख थोड़ा सख्त रहता है। इसके अलावा, 3 द्वीपों (अबू मूसा, ग्रेटर तुन्ब, लेसर तुन्ब) पर दोनों देशों के बीच विवाद है, जो रिश्तों में तनाव का एक कारण है। फिर भी, व्यापारिक हितों के कारण दोनों देश टकराव से बचने की कोशिश करते हैं।
कुवैत के साथ संतुलित हैं ईरान के रिश्ते
कुवैत और ईरान के रिश्ते अपेक्षाकृत संतुलित रहे हैं। कुवैत, एक छोटा लेकिन तेल समृद्ध देश है, और वह क्षेत्रीय तनाव में फंसने से बचता है। ईरान के साथ उसके व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते हैं, क्योंकि कुवैत में शिया समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। लेकिन कुवैत, सऊदी अरब और अमेरिका के साथ भी गठबंधन में है, जिसके कारण वह ईरान के साथ वह बहुत करीबी रिश्ते नहीं रखता। 2016 में, जब सऊदी-ईरान तनाव बढ़ा, तो कुवैत ने भी अपने राजनयिक रिश्ते कम कर किए थे, लेकिन हाल के वर्षों में उसने मध्यस्थता की भूमिका निभाने की कोशिश की है। कुवैत की नीति है कि वह न तो ईरान का खुलकर विरोध करता है और न ही उसका बहुत करीबी बनता है।
धार्मिक रूप से यूं जुड़े हुए हैं ईरान और इराक
ईरान और इराक के रिश्ते ऐतिहासिक, धार्मिक और भू-राजनीतिक रूप से जटिल हैं। दोनों देश शिया-बहुल हैं, जो उन्हें धार्मिक रूप से जोड़ता है। 1980-88 का इरान-इराक युद्ध आपसी संबंधों में तनाव का प्रमुख बिंदु रहा, जिसमें लाखों लोग मारे गए। युद्ध के बाद, संबंध धीरे-धीरे सुधरे, खासकर सद्दाम हुसैन के पतन के बाद। ईरान ने इराक में शिया मिलिशिया और सरकार पर प्रभाव बढ़ाया, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में उसकी भूमिका मजबूत हुई। दोनों देश आर्थिक और सैन्य सहयोग करते हैं, विशेष रूप से ISIS के खिलाफ। हालांकि, इराक की संप्रभुता और ईरान का प्रभाव कभी-कभी तनाव का कारण बनता है। क्षेत्रीय स्थिरता के लिए दोनों देशों के संबंध महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
अब तक दोस्ताना रहे हैं कतर और ईरान के रिश्ते
कतर और ईरान के रिश्ते खाड़ी देशों में सबसे दोस्ताना रहे हैं, लेकिन ईरान द्वारा कतर में स्थित अमेरिकी एयरबेस पर हमले के बाद यह किस तरफ जाते हैं, ये देखने वाली बात होगी। बता दें कि दोनों देश दक्षिण पार्स/नॉर्थ डोम गैस क्षेत्र साझा करते हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है। इस साझेदारी ने उनके आर्थिक रिश्तों को अब तक मजबूत रखा है। 2017 में, जब सऊदी अरब, UAE और अन्य देशों ने कतर का बहिष्कार कर दिया था, तब ईरान ने कतर को खाद्य सामग्री और हवाई मार्ग प्रदान कर उसकी मदद की थी। कतर, ईरान के साथ संतुलित रिश्ते रखता आया है और क्षेत्रीय मुद्दों पर मध्यस्थता की कोशिश करता है। हालांकि, कतर भी अमेरिका का सहयोगी है, इसलिए मौजूदा परिस्थितियों में देखने वाली बात होगी कि ईरान के साथ उसके रिश्ते कैसे आगे बढ़ते हैं।
कतर के साथ अब तक ईरान के दोस्ताना रिश्ते रहे हैं।
ईरान और बहरीन के बीच जरा भी नहीं बनती
अगर कहा जाए कि ईरान और बहरीन के रिश्ते सबसे खराब हैं तो गलत नहीं होगा। बहरीन एक छोटा सा सुन्नी शासित देश है, जबकि वहां की आबादी शिया बहुल है। बहरीन अपनी शिया बहुल आबादी के कारण ईरान पर शक करता है। बहरीन का मानना है कि ईरान उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है और शिया समुदाय को भड़काता है। 2011 के अरब स्प्रिंग आंदोलन के दौरान, बहरीन ने ईरान पर प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने का आरोप लगाया था। सऊदी अरब के समर्थन से बहरीन ने इन प्रदर्शनों को किसी तरह दबाया था। इसके बाद से दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते लगभग खत्म हैं। बहरीन, अमेरिका और सऊदी अरब का करीबी सहयोगी है, जिसके कारण वह ईरान का खुलकर विरोध करता है।
ओमान के साथ ठीक-ठाक हैं ईरान के रिश्ते
ओमान और ईरान के रिश्ते मैत्रीपूर्ण और तटस्थ हैं। ओमान खाड़ी देशों में अपनी तटस्थ नीति के लिए जाना जाता है। वह न तो ईरान का विरोध करता है और न ही सऊदी गठबंधन का हिस्सा बनने में रुचि रखता है। ओमान और ईरान के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत हैं। ओमान ने कई बार ईरान और पश्चिमी देशों के बीच मध्यस्थता की है, खासकर 2015 के परमाणु समझौते के दौरान। ओमान के सुल्तान हैतम बिन तारिक की नीति है कि उनका देश क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने का काम करता रहे, जिसके कारण ईरान सुल्तान और उनके देश का सम्मान करता है।
मौजूदा हालात के अंजाम पर बहुत कुछ निर्भर
ईरान और खाड़ी देशों के रिश्ते एकसमान नहीं हैं। सऊदी अरब और बहरीन के साथ तनाव, UAE और कुवैत के साथ सतर्क सहयोग, कतर के साथ दोस्ती, और ओमान के साथ तटस्थ मैत्री इन रिश्तों की विविधता को दर्शाती है। धार्मिक मतभेद, क्षेत्रीय प्रभाव की होड़, और बाहरी शक्तियों (जैसे अमेरिका और रूस) का हस्तक्षेप इन रिश्तों को जटिल बनाता है। फिर भी, आर्थिक हित और क्षेत्रीय स्थिरता की जरूरत के कारण ये देश टकराव से बचने की कोशिश करते हैं। भविष्य में ईरान और इन देशों के रिश्तों का क्या होगा, यह बहुत कुछ इजरायल-अमेरिका और ईरान के बीच जारी तनाव के अंजाम पर निर्भर करता है।