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राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे।

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे फिर से एक साथ आने की तैयारी कर रहे हैं। हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने का MNS और शिवसेना उद्धव गुट एक साथ विरोध करेगी। शिवसेना UBT के नेता संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी दी है कि महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के विरोध में एकजुट होकर प्रोटेस्ट किया जाएगा। उन्होंने लिखा है कि महाराष्ट्र की पुरानी ग्लोरी वापस लाई जाएगी।

संजय राउत ने पोस्ट की तस्वीर

संजय राउत ने जो पोस्ट लिखा है उसके साथ एक तस्वीर भी लगाई है जिसमें उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि ये संकेत दोनों भाइयों के बीच बढ़ रही नजदीकियों का संकेत है और पुरानी ग्लोरी से मतलब बाला साहेब ठाकरे के शिवसेना की ओर इशारा किया गया है। 

दरअसल, तीन भाषा फॉर्मूले के तहत महाराष्ट्र के स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी को लागू किया जा रहा है जिसका राज ठाकरे विरोध कर रहे हैं और अब उद्धव ठाकरे ने भी इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है। 

ठाकरे परिवार में क्यों हुई थी बगावत?

ठाकरे परिवार में 20 साल पहले बगावत हुई थी। जब राज ठाकरे ने साल 2005 में शिवसेना छोड़ दिया था और 2006 में MNS यानि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से नई पार्टी बना ली थी। तब ये लड़ाई उत्तराधिकार की वजह से हुई थी। राज ठाकरे को बाला साहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता था लेकिन अंतिम समय में बाला साहेब ठाकरे ने अपने भतीजे राज ठाकरे की जगह बेटे उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान सौंप दी। तब राज ठाकरे ने बगावत करते हुए अलग पार्टी बना ली थी। लेकिन अब 20 साल बाद एक बार फिर से ठाकरे परिवार एकजुट होने जा रहा है। इसके संकेत मिलने लगे हैं। दोनों के बीच मुलाकात भी हुई है और अब हिंदी विरोध के नाम पर दोनों एकजुट भी हो रहे हैं।   

ठाकरे परिवार के एकजुट होने की क्या है वजह?

अब सवाल ये है कि आखिर 20 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि ठाकरे फैमिली एकजुट होने जा रही है। उद्धव और राज ठाकरे एक होने जा रहे हैं तो आपको इसकी वजह भी बता देते हैं।

दरअसल, महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार का दबदबा कम होता जा रहा है जिसके बाद शायद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एकजुट हो रहे हैं क्योंकि एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से शिवसेना छीन ली। पार्टी का निशान से लेकर सांसद और विधायक भी छीन लिए। विधानसभा चुनाव में जनता ने भी एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को ही असली शिवसेना मानी। उद्धव ठाकरे की शिवसेना UBT किसी तरह दहाई अंक तक पहुंच पाई तो वहीं, MNS की ताकत भी धीरे-धीरे कम होती गई। राज ठाकरे का दबदबा कम होने लगा। विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुल पाया जिसके बाद माना जा रहा है कि अब दोनों भाई एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं।

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