
‘आप की अदालत’ में स्मृति ईरानी
Aap Ki Adalat : पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी ने आप की अदालत में झारखंड की बीजेपी कार्यकर्ता आशा की कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे नक्सलियों ने उसके पति को मार दिया और उसे फोन करके कहा कि तेरे पति को मार दिया है, जाओ बॉडी उठा लाओ। उसके बाद वहीं आशा अपनी हिम्मत और उम्मीद के बल पर रांची की मेयर बनीं।
क्या हुआ था आशा के साथ?
आप की अदालत में रजत शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने आशा की पूरी कहानी बताई। स्मृति ईरान ने कहा-“आशा विद्यार्थी परिषद में थी। मैं महिला मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थी। 2011 में वह मुझसे मिली थी। वह पॉलिटिकल स्टूडेंट एक्टिविस्ट थी। 26 साल की उम्र में वह राष्ट्रीय मंत्री बनी। शादी की पहली सालगिरह पर उसका पति उसे शॉपिंग कराने के लिए ले गया। बोला कि चलो आज कुछ तोहफा दिलवाता हूं। आशा को दुकान पर छोड़कर वह अपने लिए कुछ लेने गया। फिर आशा को फोन आया। फोन नक्सलियों का था। उन्होंने कहा कि तेरे पति को मार दिया है तो बड़ी नेता बनती है। आकर डेडबॉडी उठा ले।”
मुंबई में आशा मेरे साथ रही
पूर्व केंद्रीय मंत्री ईरानी ने कहा. “आप कल्पना करिए कि 26 साल की लड़की को फोन आए कि तूने नक्सलवाद के खिलाफ झारखंड की गलियों में आवाज उठाई। गांव में आवाज उठाई। तेरे पति को मार दिया है, डेड बॉडी उठा ले। वह लड़की गुमला, दुमका ऐसी जगह में वह काम करती थी। वह शॉक में चली गई थी और अपने कार्यकर्ता को हम इस तरह से बर्बाद होते नहीं देख सकते थे। मैंने आशा को कहा चल मेरे साथ मुंबई। वह मेरे साथ मुंबई में रही। जब तक मुझे लगा कि आशा मजबूती से वापस अपने पैरों पर खड़ी ना हो वह मेरे साथ रही। मैंने उसे बोला क्या बनना है? उसने कहा कि जीवन में नेता बनना है ताकि मेरे साथ जो हुआ किसी और के साथ ना हो।”
आशा रांची की मेयर बनी, अब बंगाल की प्रभारी है
स्मृति ईरान ने बताया, “मैंने कहा आशा हम तुम्हारे लिए लड़का ढूंढे, दुबारा ब्याह करवा दें। लेकिन वह शादी के लिए बिल्कुल राजी नहीं हुई। उसने कहा कि मेरी वजह से मेरे परिवार का कोई और व्यक्ति मरना नहीं चाहिए। मैं जीवन भर शादी नहीं करूंगी। उसने चुनाव लड़ा। रांची सेदो बार मेयर बनी। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री बनी। अब कमीशन में मेंबर है। मैं बताना चाहती हूं कि राजनीति में आपको बहुत सारे नेता दिखते होंगे। लेकिन अगर आप परते उतारें तो पाएंगे कइयों का जीवन ऐसे संघर्षों से भरा है। और आशा को पार्टी ने बंगाल का प्रभारी भी बनाया।”