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मुगल हरम की पहली ऐसी औरत , जिन्होंने हज किया था और वो बाबर से लेकर अकबर तक, तीन-तीन मुगल पीढ़ियों की गवाह रहीं। उम्र के आखिरी पड़ाव तक हुमायूंनामा लिखने में जिन्होंने अपना अहम योगदान निभाया। जानते हैं वो कौन थीं-उनका नाम था गुलबदन बेगम।
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गुलबदन बेगम मुगल बादशाह बाबर की बेटी थीं और बाबर के बेटे हुमायूं की सौतेली बहन थीं, इतना ही नहीं, उनके पोते अकबर की बुआ थीं। तीन पीढ़ियों की गवाह रहीं गुलबदन इतिहासकार थीं, कवियित्री भी थीं।
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फारसी में पारंगत और साहित्य में खास रुचि रखने वाली गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा लिखने में योगदान दिया और इसी किताब में उन्होंने मुगल काल के बारे में काफी कुछ लिखा, जिससे उन्हें मुगल काल का इतिहासकार कहा गया।
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गुलबदन बेगम काफी खूबसूरत होने के साथ काफी विद्वान भी थीं। उनकी उम्र ज्यादातर काबुल में बीती थी। 17 साल की उम्र में मुगल शहजादी गुलबदन ने अपने चचेरे भाई खिज्र ख्वाजा से शादी कर ली थी।
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गुलबदन पहली मुगल शहजादी थीं, जिन्होंने शाही काफिले के साथ खैबर दर्रा और सिंधु नदी पार कर काबुल से भारत पहुंची थीं। उन्होंने काफी यात्राएं कीं, जिसके कारण उन्हें घुमक्कड़ बेगम कहा जाता है।
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अकबर के सुल्तान बनने के बाद गुलबदन बेगम फतेहपुर सीकरी के नए किले में रहने लगी थीं। उनका निवास बादशाह अकबर के आसपास ही रहता था।
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उनकी यात्राएं हमेशा कहीं ना कहीं होती रहती थीं। सूरत से वो नाव में बैठकर दुबई के लिए निकली थीं। उन्होंने हज यात्रा की थी, जिसे बादशाह अकबर ने आयोजित कराया था।