
भारत की मिट्टी की सेहत खराब होती जा रही है।
नई दिल्ली: भारत पूरी दुनिया में अपनी उर्वरा भूमि के लिए जाना जाता है जहां तमाम तरह की फसलें और पेड़-पौधे लहलहाते रहते हैं। हालांकि एक नई स्टडी में पता चला है कि अपने वतन की मिट्टी की सेहत खराब हो रही है। इस स्टडी के मुताबिक, हमारी मिट्टी में नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक कॉर्बन जैसे जरूरी तत्वों की भारी कमी है। यह ख़बर किसानों, खेती और जलवायु परिवर्तन के लिए चिंता की बात है। आइए आसान भाषा में समझते हैं कि स्टडी क्या कहती है और क्यों मिट्टी में इन पोषक तत्वों की कमी ने लोगों के होश उड़ा दिए हैं।
स्टडी क्या है और किसने की?
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने यह रिपोर्ट तैयार की है। यह सरकारी सॉइल हेल्थ कार्ड (मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड) के आंकड़ों पर आधारित है। बता दें कि सॉइल हेल्थ कार्ड योजना 2015 में शुरू हुई थी। इसमें मिट्टी के 12 रासायनिक गुणों की जांच होती है और किसानों को खाद के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। 2023 से 2025 के बीच मिट्टी के लगभग 1.3 करोड़ नमूने जांचे गए। रिपोर्ट का शीर्षक है ‘सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स: एन एजेंडा फॉर क्लाइमेट-रिस्क्ड टाइम्स’ और इसे राजस्थान के निमली में अनिल अग्रवाल एनवायरनमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (AAETI) में आयोजित नेशनल कॉन्क्लेव ऑन सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स में जारी किया गया है।
मिट्टी में क्या कमी पाई गई?
- 64% नमूनों में नाइट्रोजन कम था।
- 48.5% नमूनों में ऑर्गेनिक कॉर्बन कम था।
ये दोनों तत्व मिट्टी की उर्वरता और जलवायु सहनशक्ति के लिए ज़रूरी हैं। नाइट्रोजन पौधों की बढ़त के लिए और ऑर्गेनिक कॉर्बन मिट्टी की सेहत और कार्बन संग्रहण के लिए अहम है।
खाद डालने से भी फायदा नहीं?
स्टडी में चौंकाने वाली एक बात यह भी पता चली है कि नाइट्रोजन वाली खादें डालने से भी मिट्टी में नाइट्रोजन नहीं बढ़ रहा। इसी तरह एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) खादों से ऑर्गेनिक कॉर्बन में कोई सुधार नहीं हो रहा। यानी हम जितनी खाद डाल रहे हैं, उसका मिट्टी की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा।
प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो खेती की उत्पादकता घट सकती है।
ऐसा होना चिंताजनक क्यों है?
- खेती की उत्पादकता घटेगी: लंबे समय तक मिट्टी कमजोर रहेगी तो फसलों की पैदावार कम होगी।
- जलवायु परिवर्तन से लड़ाई कमजोर: स्वस्थ मिट्टी कार्बन सोखती है। स्टडी कहती है कि भारतीय मिट्टी हर साल 6-7 टेराग्राम कार्बन सोख सकती है। लेकिन कमी के कारण यह क्षमता घट रही है।
एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
CSE के फूड सिस्टम प्रोग्राम डायरेक्टर अमित खुराना ने कहा, ‘सिर्फ 12 रासायनिक मापदंडों पर ध्यान देना मिट्टी की पूरी सेहत नहीं दिखाता। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की GLOSOLAN सिफारिश करती है कि भौतिक और जैविक संकेतक भी शामिल किए जाएं।’ वहीं, आगा खान फाउंडेशन के ग्लोबल लीड (कृषि) अपूर्व ओझा ने कहा, ‘भारत में 14 करोड़ किसान परिवार हैं। पिछले दो साल में सिर्फ 1.1 करोड़ को ही मिट्टी कार्ड मिला। सवाल यह है कि क्या मापा जा रहा है, क्यों और कौन माप रहा है?’
समाधान के रास्ते क्या हैं?
- बायोचार का इस्तेमाल: बायोमास से पायरोलिसिस से बनने वाला बायोचार मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, नमी रोकता है और कार्बन जमा करता है। लेकिन भारत में इसके मानक उत्पादन प्रोटोकॉल नहीं हैं।
- जैविक खेती को बढ़ावा: सरकारी योजनाएं हैं, लेकिन इनके तहत खेती का क्षेत्र अभी सीमित है।
- मिट्टी की पूरी जांच: रासायनिक के साथ-साथ भौतिक और जैविक मापदंड भी शामिल किए जाएं।
- खाद प्रबंधन में सुधार: बिना सोचे-समझे खाद डालना बंद होना चाहिए।
भारत की मिट्टी हमारी खाद्य सुरक्षा और जलवायु सुरक्षा का आधार है। माना जा रहा है कि अगर अभी सुधार नहीं किया गया, तो आने वाली नस्लें इसकी भारी कीमत चुका सकती हैं। (PTI)