Bangladesh minorities atrocities- India TV Hindi
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बांग्लादेशियों ने खुद अपना भविष्य दांव पर लगा दिया है।

Bangladesh Crisis: बांग्लादेश आज जिस जगह खड़ा है, वह केवल एक देश की समस्या नहीं, बल्कि पूरे साउथ एशिया की राजनीति, सुरक्षा और भविष्य से जुड़ा प्रश्न बन चुका है। सेक्युलर पहचान से कट्टरपंथ की तरफ बढ़ते कदम, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, महिलाओं की आजादी पर लगाम और डगमगाती इकॉनमी, इन सबके बीच सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि बांग्लादेश आखिरकार किस दिशा में चल पड़ा है। इन्हीं कठिन सवालों के जवाब जानने के लिए INDIA TV ने एक्सक्लूसिव बातचीत की साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट डॉक्टर श्रीश पाठक से, जिन्होंने बांग्लादेश की तारीख, सियासत और मौजूदा हालात को गहराई से समझाया। उन्होंने बताया कि आज ये संकट अचानक पैदा नहीं हुआ, बल्कि इसकी जड़ें इतिहास में गहराई तक फैली हैं। पढ़िए साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट से खास बातचीत।

सवाल- सेक्युलरिज्म छोड़कर कट्टरपंथ की राह पकड़ने से बांग्लादेश को आखिर क्या हासिल हुआ, आने वाले समय में उसके सामने और क्या मुश्किलें आ सकती हैं?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि बांग्लादेश की जो स्थिति है आज, जाहिर सी बात है कि इतिहास उसमें बहुत बड़ा रोल प्ले करता है। अगर हम बांग्लादेश का थोड़ा सा इतिहास देखें तो वह पाकिस्तान का पार्ट हुआ करता था और जब बांग्लादेश अस्तित्व में आया, तो उस वक्त लगभग 20 प्रतिशत की आबादी जरूर ऐसी थी जो लिबरेशन वॉर के अगेंस्ट थी और वह पाकिस्तान का पार्ट बना रहना चाहती थी तो यह कोई नई स्थिति तो नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश में हमेशा से जरूर ऐसे लोग रहे हैं, ऐसा विचार रहा है जो कट्टरपंथ की तरफ रहा है और प्रो-पाकिस्तानी रहा है। और बांग्लादेश का जो राजनीतिक इतिहास है, वह भी कुछ ऐसा रहा कि शेख मुजीबुर्रहमान के सत्ता में आने के बावजूद अगर आप थोड़ा इतिहास देखें तो उन्होंने इतनी सारी सीटें जीतने के बाद यानी 300 में से 293 सीटें जीतने के बावजूद भी सभी विपक्षी पार्टियों को बैन कर दिया था और फिर ‘वन पार्टी सिस्टम’ की शुरुआत कर दी थी।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि करीब 12 इलेक्शन्स हुए हैं बांग्लादेश में और अगला 13वां इलेक्शन फरवरी में होना है, लेकिन कहते हैं कि उसमें से केवल चार या पांच ‘फ्री एंड फेयर’ इलेक्शन्स हुए हैं, बाकी सारे ही चाहे वह मुजीबुर्रहमान के जमाने में हों या शेख हसीना के जमाने में हों या जिया के जमाने में हों या खालिदा जिया के जमाने में हों, वह धांधली वाले रहे हैं। तो बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिति हमेशा से ही बहुत ही वोलेटाइल रही है। कट्टरपंथ की जड़ें तो हमेशा से ही रही हैं। तो आज जैसी परिस्थितियां बदली हैं, उन्हें सिर उठाने का मौका थोड़ा तेजी से मिल रहा है और जो आपने घटनाएं गिनाईं, वह सतह पर आ रही हैं जितनी हम तक पहुंच पा रही हैं, उन्हीं के बारे में हम जान रहे हैं।

सवाल- बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, हाल में दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की मॉब लिंचिंग हो गई, ऐसी घटनाओं से बांग्लादेश पर रीजनल ट्रस्ट कैसे कमजोर होगा?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि यह बहुत जरूरी सवाल है। यह वही नोआखाली है जहां गांधी पहुंचे थे और उसी नोआखाली के अमृत मंडल को जिस तरह से लिंच किया गया, और जब भारत सरकार ने इस पर आपत्ति जताई तो जिस तरह से उसे काउंटर किया गया ऑफिशियल रिकॉर्ड्स में कि ‘नहीं ऐसा नहीं है, यह नैरेटिव है, यह फेक नैरेटिव है’। तो अब आप देखें कि इस मॉब लिंचिंग से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है।

उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश की जो इमेज पहले रही है साउथ एशिया में वह एक इस्लामिक कंट्री रहा है, जिसका स्टेट रिलिजन इस्लामिक जरूर रहा है, लेकिन वह लिबरल था अपने मेनिफेस्टेशन में, अपने आउटपुट में। उसकी लिबरल पॉलिसीज रही हैं और दक्षिण एशिया में उनकी सिविल सोसाइटी की बहुत चर्चा होती है, उनके ग्रोथ रेट की बहुत चर्चा होती है। मैं आपको बताऊं कि जो लिबरल वर्ल्ड ऑर्डर है, उसमें नेशन ब्रांडिंग की बहुत अहमियत होती है और नेशन ब्रांडिंग से लिबरल पॉलिसीज को बहुत इनफोर्समेंट मिलता है, बहुत बल मिलता है।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि अभी अगर सब कुछ ठीक होता तो बांग्लादेश अभी नवंबर में LDC स्टेटस यानी Least Developed Countries की लिस्ट से बाहर आने वाला था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह चीज 2032 तक टलने वाली है। तो बांग्लादेश की नेशन ब्रांडिंग, उसकी जो सॉफ्ट इमेज थी, जो उसकी इकोनोमिक पॉलिसीज को स्ट्रेंथ करतीं, दक्षिण एशिया में एक बड़ा उदाहरण बनती भारत के बाद, वह संभावना तो डेफिनेटली बहुत खतरे में है।

सवाल- जब कट्टरपंथी महिलाओं के कपड़ों, आवाज और आवाजाही पर सवाल उठाते हैं तो क्या यह बांग्लादेश को 21वीं सदी से पीछे नहीं धकेल रहा?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि हां बिल्कुल, मैं कोई रिपोर्ट पढ़ रहा था, उसमें ऐसा लिखा गया है कि जो बांग्लादेश की आज की स्थिति है, उससे फिर रिकवर करने में तीन से चार साल तो कहीं नहीं जा रहे। वह तीन से चार साल भी तब लगेंगे जब हम यह उम्मीद करें कि फरवरी में इलेक्शन बहुत अच्छे से होंगे और जो सरकार बनेगी, वह एक डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) सरकार होगी और लिबरल पॉलिसीज को आगे बढ़ाएगी। हालांकि, मुझे लगता नहीं है कि ऐसा हो पाएगा, उसके बहुत सारे कारण भी हैं। लेकिन जो महिलाओं वाली बात आपने कही, बांग्लादेश में आप देखें तो टेक्सटाइल सेक्टर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है और जो रेडीमेड सेक्टर है, रेडीमेड क्लोथिंग का, उसका बहुत बड़ा हब है। बहुत सारी यूरोपीय कंपनियां और वेस्टर्न कंपनियां वहां पर मैन्युफैक्चरिंग करती हैं और वह जो पूरा लेबर फोर्स है, उसमें लगभग 65 से 70 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं।

उन्होंने कहा, ‘महिलाओं का जो एक कल्चर बना है वहां पर काम करने का, जिस पर बांग्लादेश को गर्व था, अगर आप महिलाओं को लिंच करना शुरू करेंगे, मोरल पुलिसिंग करना शुरू करेंगे, तो आप अपने पेट पर लात मार रहे हैं। आप अपने इकोनोमिक प्रॉस्पेक्ट पर लात मार रहे हैं। बहुत दुखद है, एक भारतीय होने के नाते भी मैं कहूंगा कि बांग्लादेश हमारा पड़ोसी है और हमारा बहुत जबरदस्त पड़ोसी रहा है, बहुत चीजों में भागीदारी रही है। दक्षिण एशिया सार्क (SAARC) की जो शुरुआत है, जो उनका विचार है, वह बांग्लादेश से आया। लेकिन आज का बांग्लादेश अगर अपनी महिला लेबर फोर्स पर मॉब लिंचिंग करेगा, कल्चरल मोरल पुलिसिंग करेगा, तो उनके सोसाइटल लेवल पर डिमिनिशिंग इम्पैक्ट आएगा और इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट भी डाउनग्रेड होगा। पॉलिटिकल इंस्टेबिलिटी तो आप देख ही रहे हैं, वह काफी डाउनग्रेड हो रही है।’

सवाल- अब जैसे हाल में म्यूजिक कॉन्सर्ट पर कट्टरपंथियों ने हमला किया। सिंगर को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। ऐसे में आप कैसे बताएंगे कि कट्टरता से वहां की क्रिएटिव इंडस्ट्री यानी फिल्म, थिएटर और साहित्य को नुकसान पहुंचेगा?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि बांग्लादेश की जब शुरुआत हुई, उस मूवमेंट की शुरुआत भाषा के सवाल पर हुई थी और भाषा बहुत बड़ा पुल है किसी भी कल्चर का और सोसाइटीज के बीच में ब्रिज बनाने का। तो कल्चरल लॉस अगर बांग्लादेश का होता है, तो यह बांग्लादेश के ‘आइडिया ऑफ नेशन’ पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा। क्योंकि आप देखें कि बांग्लादेश अपने ‘इन्सेप्शन’ में पाकिस्तान नहीं है। धर्म के नाम पर ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान जरूर बना था, लेकिन बांग्लादेश धर्म के नाम पर नहीं बना था। वह संस्कृति और भाषा के ही सवाल पर और अस्मिता के ही सवाल पर बना था।

उन्होंने कहा, ‘आज के बांग्लादेश में अगर रवींद्रनाथ टैगोर स्वीकार्य नहीं हैं, तो फिर यह बहुत कठिन है। और मुझे बहुत दुख होता है कि बांग्लादेश क्यों पाकिस्तान बनने पर आमादा है। पाकिस्तान कोई बहुत शानदार नजीर नहीं है उनके सामने। लेकिन हां, कारण हैं इसके और मैं आपके सवाल के साथ जाऊं तो अगर बांग्लादेश अपनी ‘सॉफ्ट पावर’ खोएगा, तो अपनी ‘रियल पावर’ खो देगा।’

सवाल- बांग्लादेश का जो टूरिज्म है उसे इससे कितना बड़ा झटका लगा है? पहले लोग सुंदरबन, कॉक्स बाजार और अन्य जगहों पर घूमने जाते थे लेकिन अब इससे कितना नुकसान होगा, इससे बांग्लादेश की छवि पर क्या असर पड़ेगा?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि बहुत खासा नुकसान हुआ है। अभी तो बहुत पक्की रिपोर्ट तो नहीं आ सकती ऐसी सिचुएशन में, लेकिन जो रिपोर्ट मुझे पढ़ने को मिली, उसमें यह दावा किया गया है कि पिछले एक साल में लगभग 80 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट हुई है टूरिज्म में। और बांग्लादेश का जो एक कंपोजिट कल्चर रहा है, और ठीक है वहां पर 75 से 80 परसेंट मुस्लिम हैं, वह मुस्लिम बहुल देश जरूर है, लेकिन बांग्लादेश अपने मेनिफेस्टेशन में थोड़ा कंपोजिट कल्चर की तरफ जाता था और ये टूरिज्म को बहुत अट्रैक्ट करता है। वेस्टर्न कंट्रीज जो हैं, जहां से आप FDI की उम्मीद लगाते हैं, जहां से आप टूरिस्ट की उम्मीद लगाते हैं, जहां से आप अपने को सॉफ्ट पावर होने की धमक बताते हैं, वो पूरा प्रॉस्पेक्ट आपका डिमिनिश हो जाता है।

उन्होंने कहा, ‘अभी जैसे तारिक रहमान जिया पहुंचे हैं बांग्लादेश में। अब वो 17 साल UK में रहकर आए। वे नए खिलाड़ी तो नहीं हैं बांग्लादेश पॉलिटिक्स में, लेकिन उनके ऊपर जरूर ये दबाव होगा कि जब वो UK से आए हैं तो उन्हें पता है कि बांग्लादेश, राष्ट्र के तौर पर तभी आगे बढ़ पाएगा जब वेस्टर्न फोर्सेस उनको कॉम्प्लीमेंट करेंगी, उनके डेवलपमेंट पॉलिसीज में वो कॉन्ट्रिब्यूट करेंगी। और ये नहीं हो पाएगा अगर आपके यहां ह्यूमन राइट्स वायलेशन होंगे, अल्पसंख्यकों के साथ इस तरह से ज्यादतियां की जाएंगी, मॉब लिंचिंग की जाएगी। तो उन्हें वो जो एक रियायतें मिलती हैं ग्लोबल ट्रेड में, जो कि बांग्लादेश को मिलती हैं, अभी कई बार घोषणाएं हुई हैं लेकिन कन्फर्मेशन नहीं है, लेकिन एक अल्टीमेटम दिया जा रहा है बांग्लादेश को कि अगर ये हालात ऐसे ही बने रहे तो व्यापार में, समझौतों में हम ये रियायतें कंटिन्यू नहीं कर पाएंगे। तो मेरे ख्याल से तारिक रहमान आए हैं तो उनके ऊपर ये भी एक दबाव होगा उनको लिबरल दिखना है।’

सवाल- क्या आप इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि धार्मिक हिंसा और अस्थिरता ने बांग्लादेश की इकॉनमी और नौकरियों पर सीधी चोट की है, इससे उनका सुनहरा भविष्य खतरे में पड़ गया है, जो बांग्लादेश पिछले दशक में 6-7 फीसदी के औसत GDP ग्रोथ रेट से आगे बढ़ रहा था, अब कैसे इससे वंचित हो सकता है?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि किसी समाज में अगर विकास हो रहा हो, तो वह सारी असमानताओं की खाई धीरे-धीरे पाट देता है। बांग्लादेश में ठीक वैसा हुआ। सिविल सोसाइटी बहुत रोबस्ट थी, महिलाएं काम पर जाती थीं और बांग्लादेश की जो बुनियाद बनी वो धर्म नहीं था। माना कि वहां पर मुस्लिम्स सबसे ज्यादा हैं, लेकिन बंगाली अस्मिता वहां पर डोमिनेट करती थी। और ये बंगाली अस्मिता की वजह से जो एक तरह का ब्रिज बना हुआ था कम्युनिटीज के बीच में, उससे इकोनॉमी को डायरेक्ट फायदा होता था।

उन्होंने कहा, ‘अब धार्मिक पहचान के नाम पर हालांकि ये भी कोई नई कोशिश नहीं है बांग्लादेश में, अगर आप थोड़ा सा इतिहास देखें तो शुरुआत जरूर हुई थी बांग्लादेश की एक सेक्युलर स्टेट से, लेकिन बहुत जल्द ही जिया के आने के साथ ही फिर वो सेक्युलरिज्म वर्ड हटाया गया और उसके बाद जनरल इरशाद के टाइम पर फिर इस्लामिक स्टेट उसको किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में सेक्युलरिज्म अगर लाने की बात की भी, तो भी इस्लामिक स्टेट तो वो बना ही रहा।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि आर्थिक नुकसान बांग्लादेश को इसलिए होगा कि जब आपकी कम्युनिटी एक साथ बैठकर काम नहीं कर पाएगी, जब लेबर फोर्स के लिए एक सिक्योर माहौल नहीं होगा, जब राजनीति एक स्टेबल एनवायरनमेंट नहीं दे पाएगी, जब इकोनॉमिक पॉलिसीज इस तरह से स्ट्रेंथ न करें जिनको कंट्री के अंदर भी और ग्लोबल फोर्सेस भी सपोर्ट करें, जब ये सारी चीजें एक साथ आप नहीं दे पाओगे तो फिर इकोनॉमी डेफिनेटली लॉस में जाएगी। और ये बहुत-बहुत बड़ा नुकसान है बांग्लादेश का, क्योंकि साउथ एशिया में कहते हैं, कई बार भारत से भी बेहतर बताते हैं सिविल सोसाइटी को बांग्लादेश की। सिविल सोसाइटी जो बांग्लादेश की रही है वो पॉलिटिकली पार्टिसिपेट करती रही है, सोसाइटल नॉर्म्स पर खरी उतरती है और कम्युनिटी सर्विस बहुत शानदार काम करती रही। ये फैब्रिक बनने में टाइम लगता है और इसको बस एक उन्माद के लिए ढहा देना आसान है, लेकिन इसे बनाने में बांग्लादेश को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

सवाल- अगर बांग्लादेश के हाथों से बिजनेस फिसला तो वह किन देशों में जाएगा, ये सारा FDI किसको मिलेगा और तेजी से बदलते दौर में बांग्लादेश उनसे कैसे मुकाबला नहीं कर पाएगा या पीछे छूट जाएगा?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि बांग्लादेश में मेन तो उसका टेक्सटाइल सेक्टर है। लेकिन कोई एक ऐसा देश नहीं होगा जहां पर ये चीजें छिटककर जाएंगी, लेकिन सेक्टर वाइज डिस्ट्रीब्यूशन हो सकता है। जैसे टेक्सटाइल में वियतनाम, क्योंकि उनके यहां पर EU के साथ पहले से EVFTA है – फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, तो शायद गार्मेंट्स वाली चीजें तो सबसे पहले वियतनाम के पास पहुंचेंगी। उनके पास बहुत रोबस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर है और आउटपुट इंडस्ट्री भी बहुत शानदार है, तो मेरे ख्याल से वियतनाम को सबसे बड़ा फायदा होगा। उसके बाद इंडोनेशिया को भी फायदा होगा। भारत को भी फायदा हो सकता है। भारत में क्योंकि प्रोडक्ट लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम चली है, तो वो काफी फायदा पहुंचाएगा भारत को।

उन्होंने कहा, ‘मैं इसको इस नजरिए से न देखकर, बाकी छोटे-मोटे और भी इंडस्ट्री हैं इकोनॉमिक्स में, जैसे कुछ इंजीनियरिंग के टूल्स होते हैं, कुछ अलग-अलग छोटी-छोटी इंडस्ट्री हैं, तो अलग-अलग कंट्रीज में उसका लाभ पहुंचेगा। लेकिन आपकी जो मंशा थी ये पूछने से कि अगर ऐसा होता है तो भारत एक बड़े पड़ोसी के देश में, हम उसे लाभ की दृष्टि से नहीं देखेंगे, न देखना चाहेंगे। हमारे हित में तो यही होगा कि बांग्लादेश जैसे फल-फूल रहा था, वो फलता-फूलता रहे, क्योंकि एक स्वस्थ, एक विकसित पड़ोसी अगर होगा तो हमारा पड़ोस बहुत ही अच्छा एन्वायरनमेंट हमें दे पाएगा। और हमारा जो इंजन है, हमारी इकोनॉमी का इंजन है, उसका बहुत बड़ा फोकस हम सिक्योरिटी पर फिर नहीं लगाएंगे। लेकिन अगर बांग्लादेश स्टेबल नहीं रहेगा, तो हमें जितना फायदा होगा इंडस्ट्री से उससे ज्यादा हमें फिर अपनी सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करना पड़ेगा। तो हम तो हमेशा चाहेंगे कि बांग्लादेश एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर फ्लॉरिश करे, वहां की जनता आगे बढ़े और लोकतांत्रिक मूल्यों को निभा पाए।’

सवाल- अभी हाल में पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात की। इसमें उन्होंने बताया कि पिछले 1 साल में पाकिस्तान और बांग्लादेश का बिजनेस 20 फीसदी बढ़ा है। आप इसे कैसे देखते हैं कि बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे गरीब देश से ट्रेड बढ़ाने पर काम कर रहा है, जबकि उन Opportunites को इग्नोर कर रहा है जो उसके पास हमेशा से मौजूद हैं?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि कई बार राजनीति आर्थिक नीतियों को सपोर्ट करती है, और कई बार राजनीति, आर्थिक नीतियों के लिए कुआं बन जाती है। बहुत पहले एक छोटा सा संदर्भ मैं देना चाहूंगा। भारत में हरित क्रांति आई हुई थी और गेहूं के मामले में हम काफी सेल्फ-सफिशिएंट हो रहे थे। उसी वक्त बांग्लादेश में ऐसी सरकार थी कि उन्होंने भारत से गेहूं के बीज नहीं मंगाए, उन्होंने मेक्सिको से मंगाए और ब्राजील से होते हुए वो गेहूं के बीज पहुंचे। लेकिन वहां की कंडीशन के हिसाब से वो गेहूं के बीज ठीक नहीं थे, और नतीजा ये हुआ कि बांग्लादेश में ‘व्हीट ब्लास्ट’ नामक एक बीमारी फैल गई। और बांग्लादेश की गेहूं की खड़ी-खड़ी फसलों में आग लगा दी गई।

उन्होंने कहा, ‘भारत ने भी अपने पांच किलोमीटर बाउंड्री पर गेहूं की खेती खत्म की ताकि वो वायरस हवा से ना आ पाएं। उस वक्त भी भारत ने पेशकश की थी और बांग्लादेश के लिए सबसे अच्छा था कि वो भारत से गेहूं के बीज ले लेता। लेकिन मैंने आपसे कहा ना कि राजनीति कई बार आर्थिक नीतियों के लिए कुआं भी बन जाती है। तो आपने बिल्कुल ठीक कहा, वो पाकिस्तान जो दर-दर घूम रहा है कि उसे कुछ आर्थिक बख्शीश मिल जाए वेस्टर्न कंट्रीज से, उनके साथ अगर आपने 20 परसेंट अपना ट्रेड बढ़ा भी लिया तो क्या हासिल किया? ये बहुत शर्मनाक है, मुझे शायद ऐसे नहीं बोलना चाहिए, लेकिन ये बहुत शर्मनाक है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान के साथ ट्रेड बढ़ाकर मेरे ख्याल से इकोनॉमिक्स से ज्यादा वो पॉलिटिकल मैसेजिंग करना चाह रहे हैं।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि बांग्लादेश जहां कि EU के साथ ट्रेड कर रहा है, बांग्लादेश जहां कि US के साथ ट्रेड कर रहा है, UK के साथ उसके बड़े शानदार संबंध हैं, उन्हें वेस्टर्न पावर के साथ लिबरल वर्ल्ड ऑर्डर के साथ गलबहियां मिलाते हुए बांग्लादेश को चलने का प्रॉस्पेक्ट है। आप पाकिस्तान के साथ ट्रेड बढ़ा भी लेंगे तो खुद पाकिस्तान का मुस्तकबिल कितना सेफ है हमें कंफर्म नहीं है अभी। ये व्यक्तिगत तौर पर भी मैं एक राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी के तौर पर देखता हूं तो बहुत दुखद है। हम बांग्लादेश को जब भी देखते हैं, समझते हैं तो हम एक ऐसे पड़ोसी के तौर पर समझते हैं जो एक हमारे सपोर्ट पार्टनर के तौर पर खड़ा रहता है, उसका बढ़ना हमारा बढ़ना होगा। लेकिन अभी बहुत दुखद है और जितना मैं सोच पा रहा हूं, ये आगे और दिक्कतें बढ़ने वाली हैं।

सवाल- बांग्लादेश में अभी पहचान की राजनीति पर जोर ज्यादा है। महंगाई, ग्रोथ, रोजगार और शिक्षा पर फोकस कम हो गया है, ऐसे में अभी जो अंतरिम सरकार है या फरवरी के चुनाव के बाद जो सरकार आएगी, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि ये थोड़ा आगे का सवाल हो गया। उसके पहले मैं थोड़ा सा पॉलिटिकल सिनेरियो क्लियर करूं यहां पर। इसी साल के फरवरी में ये तय किया गया कि अगले फरवरी में इलेक्शन होगा। अभी तक वहां दो पार्टीज रही हैं, हम जानते हैं- अवामी लीग और बीएनपी। अब जो दौर चल पड़ा है, कुछ विचारक कहते हैं कि ये ‘डी-अवामाइजेशन’ का दौर चल रहा है वहां पर। ठीक है, बांग्लादेश में इसका भी इतिहास है। लेकिन लगातार जो सत्ता का खेल है बांग्लादेश में, या तो वो अवामी लीग के पास पहुंचता है या बीएनपी के पास।

उन्होंने कहा, ‘लेकिन इस्लामिक छात्र शिविर नाम का छात्र संगठन जो जमात-ए-इस्लामी का है। जमात-ए-इस्लामी हमेशा पॉलिटिकल पार्टी की तरह काम करती है, लेकिन उसे अभी तक ये छूट नहीं दी गई थी कि वो चुनाव लड़े। इस सरकार ने, यूनुस गवर्नमेंट ने ये छूट दिला दी है उन्हें। लेकिन मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में जमात-ए-इस्लामी काम नहीं कर रही थी, लेकिन विद्यार्थियों की राजनीति में वो पहले से सक्रिय थी। और ये जो इस्लामिक छात्र शिविर है, वो बांग्लादेश के सारे बड़े कॉलेजेस और यूनिवर्सिटीज में बहुत डोमिनेट रहे हैं। हर बार चुनाव नहीं भी जीते हैं, तो उनकी उपस्थिति रही है, सेकंड पोजीशन पर जरूर रहे हैं, कहीं-कहीं जीते भी हैं। पिछले एक साल के अगर आप आंकड़े उठाकर देख लें, तो इस्लामिक छात्र शिविर ने ढाका यूनिवर्सिटी सहित लगभग सब जगह पर चुनाव जीता है।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि अभी जो तीसरा विकल्प, बांग्लादेश में देखा जा रहा है, वो ‘नेशनल सिटीजन पार्टी’ है। उसमें भी जो फैक्शन है लगभग 50 फीसदी, वो ‘इस्लामी छात्र शिविर’ वाला फैक्शन है। और अब तो हम खुलकर भी कह सकते हैं कि इन्होंने चुनाव के लिए आपस में फॉर्मल गठबंधन कर लिया है। तो अब आप देखें प्रॉस्पेक्ट बांग्लादेशी राजनीति का कि एक तरफ अवामी लीग लगभग नहीं है; वोटर जरूर होंगे, सपोर्टर जरूर होंगे लेकिन पार्टी गायब है। पार्टी इस हालत में नहीं है कि वो कॉन्टेस्ट कर पाए। और बीएनपी को बिल्कुल नई फोर्स मिल गई है। आज जब हम बात कर रहे हैं तो बेगम खालिदा जिया नहीं रहीं और तारिक रहमान जिया क्रिसमस में सांता क्लॉज बनकर पहुंचे हैं बांग्लादेश में, देखते हैं वो क्या उम्मीद लाते हैं। तो एक तरफ बीएनपी है जिसमें कई फैक्शन हैं। एक फैक्शन है जो प्रो-लिबरल है और एक फैक्शन है जो उसी जमात-ए-इस्लामिक प्रो-माइंडसेट से आता है।

डॉक्टर श्रीश पाठक के मुताबिक, बीएनपी के पास, जिसे कहते हैं न इंग्लिश में Moment of Reckoning है। मतलब अभी जो अवामी लीग थी, मतलब जुलाई वाले अपराइजिंग के पहले जो अवामी लीग थी, जिस तरह से डोमिनेट कर रही थी, बीएनपी का यही मानना होगा कि अब हमें अगर सत्ता मिलेगा तो हमें भी ऐसे डोमिनेट करना है। ऑलमोस्ट वो सारी चीजें वो कर रहे हैं अभी या करेंगे या पहले भी किया है, जिसके लांछन आप अवामी लीग पर लगाते थे। तो मेरे ख्याल से बीएनपी के मन में ये होगा कि अब अगर हमें सत्ता मिले तो हमारा एकछत्र राज हो और फिर कोई अवामी लीग सर ना उठाए। ऐसा करने के लिए आपको वो सारे वोट बैंक लेने पड़ेंगे।

उन्होंने कहा, ‘बीएनपी का एक परंपरागत वोटर है, प्रो-लिबरल जो फेस है- जिसमें आपने बहुत अच्छा बताया कि वो जब आए तो उन्होंने बोला कि नहीं, बांग्लादेश सबका है। हिंदुओं का भी है, इस्लामिक लोगों का भी है, बुद्धिस्ट का भी है। तो वो एक प्रो-लिबरल फेस उनको यूके को भी दिखाना है, यूएस को भी दिखाना है, ईयू को भी दिखाना है। प्लस हमारे यहां, बांग्लादेश के उस फैक्शन को भी टारगेट करना है कि ये एक पार्टी है जो लिबरल फेस के साथ जाती है, पढ़े-लिखे लोग हैं। उन्हें पता है कि हमारा जो बेस है उसमें इस्लामिक लोग भी हैं, तो उनके साथ तो रिलेशन उनके जगजाहिर ही हैं। हालांकि पिछले साल में रिफ्ट हुई है।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि अब आप देखें एक तरफ बीएनपी है, दूसरी तरफ जमात-ए-इस्लामी अब चुनाव लड़ सकती है और तीसरी ओर जो स्टूडेंट धड़ा है वो अब काफी मैच्योर हो गया है, इस पर्टिकुलर अपराइजिंग का उसको श्रेय देते हैं। वो भी अब कॉन्टेस्ट करेंगे। अगर हम एक सर्वे पर यकीन कर लें, तो मेरे ख्याल से अभी भी बीएनपी का सबसे बड़ा वहां पर शेयर है और उसके बाद जमात-ए-इस्लामी और नेशनल सिटीजन पार्टी का रहेगा। लेकिन जमात-ए-इस्लामी, नेशनल सिटीजन पार्टी अगर आपस में मिल जाते हैं और उसके बाद चुनाव लड़ते हैं तो ये देखने वाली बात होगी कि डोमिनेट कौन करेगा, सेकंड पर कौन आएगा, थर्ड पर कौन आएगा, क्योंकि अवामी लीग कहीं होगी नहीं।

डॉक्टर श्रीश पाठक के अनुसार, उसमें भी ये बात है कि यूनुस गवर्नमेंट जो कार्यवाहक गवर्नमेंट है वो कितना फ्री एंड फेयर इलेक्शन करा पाएगी। तो ये बहुत दूर की कौड़ी है अभी। मतलब चुनाव किस तरीके से होंगे, कौन किसके पाले में जाएगा, किसको कितनी सीटें मिल पाएंगी, कौन फर्स्ट पर आएगा, सेकंड पर आएगा, थर्ड आएगा, वो दिखाएगा कि गवर्नमेंट का नेचर कैसा होगा, फिर उसका मैनिफेस्टेशन समझ में आएगा। फिर हम शायद इस अच्छे और जरूरी सवाल पर बात कर पाएं कि अब बांग्लादेश के सामने चुनौतियां क्या होंगी।

उन्होंने कहा, ‘अगर आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करूं, चुनौती तो सबसे पहले ये होगी देश को एक करना, क्योंकि लेबर फोर्स अगर एक नहीं होगा, मतलब ऐसा नहीं हो सकता कि एक हिंदू महिला बैठी है, एक बुद्धिस्ट महिला बैठी है और एक मुस्लिम महिला बैठी है और वो आपस में लड़ाई कर रही हों, तो रेडीमेड गारमेंट्स का काम तो ऐसे नहीं चल पाएगा। तो सबसे पहली चुनौती तो यही होगी कि दोबारा ये विश्वास दिलाना बांग्लादेश एक उदारवादी इस्लामिक राष्ट्र हैं। हम लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन करते हैं और हम इकोनॉमिक फोर्स जहां से हमने छोड़ा था या छूट गया था वहां से हम लेने को तैयार हैं। ये अंदर विश्वास दिलाना है और फिर बाहर भी ये क्रेडिबिलिटी बनानी है।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने माना कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में, क्रेडिबिलिटी का सिक्का चलता है। एक देश के रूप में अगर आपकी ब्रांडिंग आपसे लूज हो गई, तो फिर कोई कन्वेंशन और कोई भी ट्रीटी काम नहीं आती। तो बांग्लादेश ने वो क्रेडिबिलिटी लूज की है। अगर पॉलिटिकली आप स्टेबल नहीं हैं, तो आपके प्रॉस्पेक्ट हमेशा डेंजरस हो जाएंगे, हमेशा खतरे में रहेंगे। बांग्लादेश की इकोनॉमिक पॉलिसीज को फिर से इंक्लूसिव बताते हुए आगे बढ़ना है, जो बहुत चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि जमात-ए-इस्लामी तड़प रही है सत्ता में आने के लिए, सिर्फ इन चार सालों में नहीं बल्कि पिछले कई सालों से।

डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा, ‘छात्र समाज अब पॉलिटिकल फोर्स बनकर उभरा है, तो वहां भी आज फैक्शन है। अगर आज ही आप थोड़ा सा पता कर लें, तो आपको नेशनल सिटीजन पार्टी में भी फैक्शन दिख जाएंगे, जमात-ए-इस्लामी में भी फैक्शन दिख जाएंगे, इनफैक्ट जो उनकी स्टूडेंट विंग है वहां भी फैक्शन दिख जाएंगे, बीएनपी के फैक्शन तो जगजाहिर हैं। तो ये एक तरह से मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है, तुलना नहीं करनी चाहिए लेकिन बांग्लादेश जहां जा रहा था वहां से अब वो थोड़ा सा पॉलिटिकल क्राइसिस नेपाल से मैं कंपेयर करूं, तो नेपाल में जो एक अनसर्टेनिटी है पॉलिटिकल स्टेबिलिटी है, कॉन्स्टिट्यूशन को लेकर, लोकतंत्र को लेकर, बांग्लादेश उस इनसिक्योरिटी में, उस अनसर्टेनिटी में पहुंच रहा है। और ये पूरे दक्षिण एशिया के लिए बहुत खतरनाक बात होगी।’

सवाल- बांग्लादेश की राजनीति बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी है, ये बिल्कुल सीधी रेखा में नहीं चलती। अगर वहां से किसी का निर्वासन होता है, तो आप ये मत समझिए कि उस आदमी का पॉलिटिकल करियर खत्म हो गया। हो सकता है जितने दिन वो निर्वासन में रहा, उसने बैठकर अपनी रणनीति बनाई हो और आगे के लिए काम कैसे करना है ये सोचा हो। शेख हसीना ऐसा करके दिखा चुकी हैं, क्या तारिक रहमान भी ऐसा कुछ कर पाएंगे?

जवाब- डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि तारिक रहमान जिया, हो सकता है आने वाले समय में हम तारिक जिया ज्यादा सुनें अब, क्योंकि नैरेटिव की ही तो पॉलिटिक्स होती है। वे नए खिलाड़ी नहीं हैं राजनीति के और आपने बिल्कुल ठीक कहा बांग्लादेश के लिए कि वहां पर निर्वासन को लेकर कई पॉलिटिकल सिचुएशंस आती हैं और कई बार खुद निर्वासन लिए जाते हैं, और वो एक तरह से ‘टाइम ऑफ प्रिपेयर्डनेस’ होता है।

उन्होंने कहा, ‘इसमें एक छोटी सी बात जोड़ना चाहूंगा कि डी-कोलोनाइजेशन फेज के बाद, 1950 के बाद की जो दुनिया बनी है, अब वो कोई भी ऐसा देश नहीं है जो बहुत आइसोलेशन में रहता है। सब कुछ सरफेस पर नहीं आता, बाद में काफी समय गुजर जाता है तो किताबें लिखी जाती हैं तो रियल अकाउंट सामने आते हैं। हम सिर्फ रिपोर्टिंग पर अभी विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि वो थोड़ा सा नैरेटिव बेस्ड हो जाते हैं क्योंकि सोर्स ऑफ इंफॉर्मेशन कई बार आपके कंट्रोल में नहीं होता।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने बताया कि दुनियाभर के देशों में अब ये आराम से कहा जा सकता है डी-कोलोनाइज़ेशन फेज के बाद कोई भी देश एकदम से सॉवरेन स्टेट तो होता है, लेकिन वर्ल्ड पॉलिटिक्स में वो आइसोलेशन में काम नहीं करता। बहुत सारे इंटर-कनेक्टेडनेस चीजें हो रही होती हैं जो पर्दे के पीछे हो रही होती हैं। कोई अकेला देश अपने लिए सारे फैसले नहीं लेता। मैं ये नहीं कहूंगा वो हमेशा दबाव में लेता है लेकिन इंप्रेशन्स होते हैं, उसकी मजबूरियां होती हैं।

उनका मानना है कि बांग्लादेश में भी जो निर्वासन है, वहां से वो कौन से असाइलम में जाते हैं- भारत आते हैं, यूके जाते हैं, किसी और कंट्री में जाते हैं, ये सब कुछ कैलकुलेटेड है और ये स्ट्रैटेजिक पॉइंट ऑफ व्यू से ही किया जाता है। कुछ लोगों ने कहा कि अभी जो अपराइजिंग हुई थी जुलाई में, शेख हसीना का सुरक्षित भारत आ जाना एक बहुत असंभव बात है। तो इसमें बहुत सारे ऐसे प्लेयर्स हो सकते हैं जिनके बारे में हमें आज ठीक से पता नहीं है। हो सकता है वो यूनुस गवर्नमेंट में बैठे हों, बांग्लादेशी आर्मी में बैठे हों या बीएनपी में बैठे हों, लेकिन उनमें से जरूर उन लोगों का हाथ रहा कि शेख हसीना बहुत सेफली भारत में आईं।

उन्होंने कहा, ‘क्योंकि पॉलिटिकल प्रॉस्पेक्ट कभी भी आप नहीं मान सकते कि किसी का खत्म हो गया आजकल की राजनीति में, क्योंकि सिर्फ एक देश की राजनीति नहीं होती, वर्ल्ड पॉलिटिक्स भी उसमें रोल प्ले कर रही होती है। मैं इसमें बहुत यकीन नहीं करता कि कोई एक इकलौता देश- कोई भारत, कोई चीन या कोई अमेरिका- बांग्लादेश की राजनीति को या नेपाल की राजनीति को बिल्कुल टर्न कर देगा या बिल्कुल चेंज कर देगा। ऐसा तो मैं नहीं मानता, ये कहना तो किसी देश को अंडरएस्टिमेट करना होगा।’

तो एक तो ये वजह मैं मानता हूं कि आपने बिल्कुल ठीक कहा कि निर्वासन में उनको एक प्रिपेयर्डनेस की तैयारी मिलती है, क्योंकि हम फॉरेन पॉलिसी की किताबों में भी पढ़ते हैं कि एक फैक्टर होता है International Milieu, वो डिटरमिनेंट की तरह काम करता है। तो बांग्लादेश की राजनीति और उसकी विदेश नीति अगर समझनी है, तो उस इंटरनेशनल मिल्यू को आप कैंसिल नहीं कर पाएंगे और वही निर्वासन में सपोर्ट कर रहा होता है।

डॉक्टर श्रीश पाठक ने कहा कि अब आते हैं तारिक रहमान पर। जैसे मैंने बार-बार कहा कि ये नए खिलाड़ी नहीं हैं। पिछले दो टेन्योर में जब जिया सरकार में थीं, बेगम जिया सरकार में थीं, तो भी वो बहुत डिसाइसिव प्लेयर थे। और उन पर भी मुकदमे चल रहे थे, अब इस सरकार ने वो मुकदमे ड्रॉप किए। वो बहुत पुराने खिलाड़ी रहे हैं और खासकर भारत के लिहाज से मैं कहूं तो जैसे अपना जो कोलकाता है, कोलकाता से 100 किलोमीटर के अंदर की दूरी है बांग्लादेश बॉर्डर की और हमें पता है कि जब खालिदा जिया का लास्ट टेन्योर था 2006 तक, तो बहुत एंटी-इंडियन जो मिलिटेंट कैंप थे उनको कोवर्टली ही सही लेकिन सपोर्ट जा रहा था। कहते हैं कि उसमें भी तारिक रहमान साहब की रजामंदी थी।

उन्होंने कहा, ‘आज जरूर दबाव है बहुत लिबरल दिखने का क्योंकि मैंने जैसे समझाने की कोशिश की कि आपको इलेक्शन में जीतना है और सारे वोट फैक्शंस को आपको इन्फ्लुएंस करना है। लेकिन तारिक रहमान साहब बहुत पुराने मंझे हुए खिलाड़ी हैं। अभी वो इस चुनाव में आए हैं, मुझे लगता है कि अगर फरवरी में चुनाव हो सकें और चुनाव के परिणाम आएं, चाहे वो नंबर वन पर आएं, नंबर टू पर आएं या नंबर थ्री पर आएं, लेकिन वो बांग्लादेश की राजनीति में डिसाइसिव तो रहेंगे।’

साउथ एशिया के मामलों के एक्सपर्ट ने कहा कि ये तुलना बहुत सही तो नहीं है लेकिन शायद अभी तात्कालिक तौर पर कर देता हूं- जैसे तालिबान 2.0 है, जिसको अपनी एक्सेप्टेंस दिखाने की गरज है, और धीरे-धीरे इंटरनल पॉलिसीज उनकी आज भी बहुत क्रिटिसाइज आप कर सकते हैं, लेकिन वर्ल्ड पॉलिटिक्स में, फॉरेन पॉलिसी में वो अपनी एक्सेप्टेंस बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, एक फेस वो प्रोजेक्ट कर रहे हैं। ठीक ऐसे ही तारिक रहमान की सरकार आती है या सरकार में भागीदार होते हैं वो, तो वो एक लिबरल फेस दिखाएंगे। सबसे बड़े लिबरल फेस वही होंगे। और अवामी लीग ने जो वैक्यूम क्रिएट किया है, तारिक रहमान साहब ये कहने की कोशिश करेंगे कि हमारी जो बीएनपी पार्टी है वो एक अखिल बांग्लादेश पार्टी है- मतलब वो एक पैन-बांग्लादेशी पार्टी है जहां पर सभी तरह के लोगों का स्वागत है। और मॉडर्न एजुकेशन के साथ, पुरानी हिस्ट्री के साथ, हम बांग्लादेश को ठीक से प्रोजेक्ट कर पाएंगे।

तो उनके साथ वो सारे फैक्शन चलेंगे। तो मेरे ख्याल से रहमान का फाउंडेशन बहुत स्ट्रॉन्ग है। अचानक कोई बहुत सनसनीखेज घटना अगर नहीं होती है, तो वो राजनीति में बहुत ही रिलेवेंट बने रहेंगे। और अभी तो उनकी माता जी का देहावसान हुआ है, एक पहले से ही सिंपैथी चल रही थी उनके लिए, अब तो ये और भी उनके फेवर में जाएगी।

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